नई दिल्ली: Sushma Swaraj Vs Sonia Gandhi: सुषमा स्वराज देश के उन नेताओं में रही हैं, जिन्हें हर दल के लोग याद करते हैं. सुषमा अटल स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स की सबसे मेधावी स्टूडेंट रही हैं. बोलने की दक्षता से लेकर उदारवादी राजनीति का दृष्टिकोण उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी का सच्चा शागिर्द बनाता है. सुषमा स्वराज की भाषा जितनी सौम्य थी, उनके फैसले उतने ही कठोर हुआ करते थे. इसका सबसे बड़ा नमूना 2004 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला है.
सोनिया ने सेफ सीट चुनी
साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर चुकी थी. देश में एक बार फिर लोकसभा के चुनाव हो रहे थे. 18 अगस्त, 1999 को अखबारों में छपा की कांग्रेस की नव निर्वाचित अध्यक्ष सोनिया गांधी दो सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ेंगी. पहली अमेठी, जहां से उनके पति राजीव चुनाव जीतते थे. दूसरी कर्नाटक की बेल्लारी सीट. यह सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. पार्टी यहां 1952 के बाद से कभी चुनाव नहीं हारी.
सुषमा ने सोनिया को ललकारा
जब सोनिया कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं, तब कई नेता ऐसे थे जो इस बात से खुश नहीं थे. शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने कहा कि हमें विदेशी मूल की महिला अध्यक्ष पद पर स्वीकार नहीं है. तीनों नेता कांग्रेस से अलग हो गए और अपनी पार्टी बना ली. फिर भाजपा ने भी ये मुद्दा लपक लिया. जोरशोर से कहा गया कि विदेश मूल की महिला PM पद पर स्वीकार नहीं. विरोध का आलम यहां तक पहुंचा कि भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने ऐलान कर दिया कि वे सोनिया के खिलाफ बेल्लारी से चुनाव लड़ेंगी.
हार गईं सुषमा स्वराज
बेल्लारी में 'देसी बेटी वर्सेस विदेशी बहू' का चुनाव हुआ. लेकिन सुषमा को कामयाबी नहीं मिली. सोनिया गांधी ने सुषमा स्वराज को करीब 56 हजार वोटों से चुनाव हराया. कांग्रेस की प्रत्याशी सोनिया गांधी को चुनाव में 4.14 लाख वोट मिले. जबकि भाजपा प्रत्याशी सुषमा स्वराज को 3.58 लाख मत मिले. हालांकि, इस चुनाव से सुषमा स्वराज राष्ट्रीय स्तर की नेता बन गई थीं. अटल सरकार में वे मंत्री भी बनीं.
सोनिया को PM बनाने की मांग उठी
इसके बाद आया 2004 का लोकसभा चुनाव. भाजपा ने समय से पूर्व चुनाव कराने का फैसला किया. 'इंडिया शाइनिंग' का नारा भी दिया. लेकिन पार्टी का भ्रम उस वक्त चकनाचूर हुआ जब नतीजों में कांग्रेस सबसे बड़ा दल बनकर उभरी. चारों ओर सोनिया के चुनावी मैनेजमेंट के चर्चे हो रहे थे. कई प्रदेशों से मांग उठी कि सोनिया देश की प्रधानमंत्री बनें.
सुषमा की बात सुन सब रह गए सन्न
सुषमा स्वराज को यह बात बिलकुल नागवार गुजरी. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर ऐलान कर दिया कि सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनती हैं, तो मैं अपने पद से त्याग पत्र दे दूंगी और अपना सिर मुंडवाकर पूरा जीवन भिक्षुक के रूप में व्यतीत करूंगी. सुषमा की यह बात सुनकर सब सन्न रह गए. कई बड़े नेताओं ने सुषमा को अपने शब्द वापस लेने की सलाह दी. लेकिन सुषमा अपने शब्दों और फैसले पर अटल रहीं. इसके बाद कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना. लिहाजा, सुषमा ने जो कहा, उन्हें वह नहीं करना पड़ा.
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