Raj Thackeray: कहानी उस मर्डर केस की, जिसने राज ठाकरे के सियासी करियर पर लगाया ब्रेक!

Raj Thackeray Political Journey: राज ठाकरे ने साल 2006 में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई. जबकि एक जमाने में वे बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाते थे. लेकिन एक मर्डर केस ने राज ठाकरे की पूरी सियासत बदल दी.

Written by - Ronak Bhaira | Last Updated : Mar 19, 2024, 12:19 PM IST
  • माने जाते थे बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी
  • फिर बनानी पड़ी खुद की नई पार्टी
Raj Thackeray: कहानी उस मर्डर केस की, जिसने राज ठाकरे के सियासी करियर पर लगाया ब्रेक!

नई दिल्ली: Raj Thackeray Political Journey: राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) जल्द ही NDA में शामिल हो सकती है. दावा है कि भाजपा राज ठाकरे की पार्टी को एक-दो सीटें दे सकती है. इए राज ठाकरे का राजनीति में कमबैक भी माना जा रहा है. बीते कई सालों से राज राजनीतिक वनवास झेल रहे थे. आइए, जानते हैं कि राज ठाकरे ने शिवसेना क्यों छोड़ी और उद्धव ने उनकी पकड़ कैसे कमजोर की?

हु-ब-हू बाल ठाकरे जैसे
शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे हू-ब-हू उनके जैसे ही दिखते हैं. उनके तेवर भी बिलकुल वैसे ही हैं, जैसे जवानी में बाल ठाकरे के हुआ करते थे. एक जमाने में लोगों को लगने लगा था बाल ठाकरे के राजनीतिक उत्तराधिकारी राज ठाकरे ही हैं. खुद राज ठाकरे भी यही मानकर बैठे थे, इसी कारण वे अपने चाचा बाल ठाकरे के साथ परछाई की तरह रहते थे. लेकिन 1995 में कुछ ऐसा हुआ, जिससे राज ठाकरे का सियासी सपना टूट गया. 

उद्धव ने मानी मां की बात
उद्धव ठाकरे की मां बाल ठाकरे की पत्नी मीणा ठाकरे चाहती थीं कि उनका बेटा सियासत में आए. बड़े बेटे बिंदू माधव की पहले ही सड़क हादसे में मौत हो गई थी. दूसरे बेटे जयदेव अक्सर अपने पिता से खफा रहते थे. इसलिए मीना उद्धव को बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी के तौर पर देखना चाहती थीं. उस दौरान उद्धव ठाकरे को फोटोग्राफी का बड़ा शौक था. लेकिन मां के कहने पर 1995 के आसपास उन्होंने शिवसेना के कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया.  

रमेश किनी का मर्डर
तभी साल 1996 में बंबई में रमेश किनी का मर्डर हुआ. इस मामले में राज ठाकरे का नाम सामने आया. दावा किया जाता है शिवसैनिक रमेश किनी का फ्लैट हथियाना चाहते थे. पहले रमेश को धमकाया गया, फिर उसकी सिनेमा हॉल में डेडबॉडी मिली. मृतक रमेश की पत्नी ने राज ठाकरे पर हत्या का आरोप लगाया. इस मामले में राज ठाकरे की छवि को भारी नुकसान पहुंचा. इसी दौरान उद्धव ने पार्टी पर अपनी पकड़ जमा ली. राज को धीरे-धीरे साइडलाइन किया जाने लगा. हालांकि, फिर CBI ने राज ठाकरे को इस मामले में बरी कर दिया. 

उद्धव पर कार्यकर्ताओं को भरोसा
लेकिन तब तक उद्धव पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं का भरोसा जीत चुके थे. 1997 के BMC चुनाव में शिवसेना ने उद्धव के कहे अनुसार टिकट दिए, जिसका राज ने विरोध किया. लेकिन शिवसेना BMC चुनाव जीत गई और उद्धव ठाकरे के राजनीतिक कौशल पर लोगों को भरोसा होने लगा. साल 2003 में उद्धव ठाकरे शिवसेना के अध्यक्ष बन गए. धीरे-धीरे राज ठाकरे अलग-थलग पड़ गए. 

MNS बनाई, लेकिन सफल नहीं हुए
साल 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर नई पार्टी बनाई, जिसका नाम महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) रखा. 2009 के विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी ने 13 सीटें जीतीं. लेकिन इसके बाद प्रदर्शन लगातार गिरता गया आलम ये रहा कि 2014 में राज ठाकरे की पार्टी मुश्किल से एक सीट ही जीत पाई.

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