नई दिल्ली: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की तारीख नजदीक आने के साथ राज्य के एक प्रमुख धार्मिक नेता ने लोगों से बड़ी संख्या में बाहर आने और अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने की अपील की है. सिद्धगंगा मठ के मुख्य महंत सिद्धलिंगा महास्वामी ने समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में कहा, 'चुनाव लोकतंत्र का उत्सव है और प्रत्येक नागरिक को संविधान से मतदान का अधिकार मिला है. यह लोगों का कर्तव्य है कि वे अपने मताधिकार का प्रयोग करें और अपने इच्छा के अनुरूप अपने नेता का चुनाव करें.' आपको कर्नाटक की सियासत में श्री सिद्धगंगा मठ और लिंगायत समुदाय की अहमियत समझाते हैं.
लिंगायत समुदाय का मुख्य मठ माना जाता है श्री सिद्धगंगा मठ
कर्नाटक के सामाजिक इतिहास में लिंगायत समुदाय का एक महत्वपूर्ण स्थान है. कहा जाता है कि कर्नाटक की आबादी में लगभग 17 प्रतिशत लिंगायत हैं और कुल 224 निर्वाचन क्षेत्रों में से 100 में इनका प्रभुत्व है. श्री सिद्धगंगा मठ लिंगायत समुदाय का मुख्य मठ माना जाता है. सिद्धगंगा मठ बेंगलुरु से लगभग 80 किलोमीटर दूर तुमकुरु में है. ऐसा दावा किया जाता है कि इस मठ का समर्थन भाजपा के साथ रहता है.
श्री सिद्धगंगा मठ बेहद शांत और सुंदर है और ये पुराने तरह का एक गुरुकुल है. जरूरतमंदों और गरीबों की सेवा करने के लिए इस मठ की काफी सराहना होती रही है. 5 से 16 वर्ष के बीच के 8 हजार से भी अधिक बच्चों को मुफ्त शिक्षा, भोजन और आश्रय देता है. कहा जाता है कि इस मठ में किसी के साथ कोई भी भेदभाव नहीं होता है. जहां सभी धर्म और समुदाय के बच्चे आते हैं. बताया जाता है कि इस मठ की स्थापना 15वीं शताब्दी में श्री गोशाला सिद्धेश्वर स्वामी ने की थी. सिद्धगंगा मठ के प्रमुख डॉक्टर शिवकुमार स्वामी का वर्ष 2019 में 111 साल की उम्र में निधन हो गया था, इसी के बाद से सिद्धलिंगा महास्वामी इसके प्रमुख हैं.
कर्नाटक में कितना अहम है लिंगायत समुदाय
12वीं शताब्दी में एक अलग विचार प्रक्रिया के कारण इसका उद्भव हुआ. इस विचार के लोगों ने मौजूदा परंपराओं पर सवाल उठाए, समाज सुधारक बासवन्ना और अन्य ‘वचनकारों’ ने जाति व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह किया और इसे उन सभी लोगों का समर्थन मिला, जो भेदभाव के शिकार थे, विशेष रूप से कामकाजी वर्ग. इसने आगे चलकर एक संप्रदाय का रूप लिया जो लिंगायत के रूप में जाना गया.
इनमें से अधिकांश सीटें उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र की हैं. वोक्कालिगा भी कर्नाटक का एक प्रभावी समुदाय है. एक आकलन के मुताबिक इनकी संख्या कुल आबादी का 15 प्रतिशत है. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 35 प्रतिशत, अनुसूचित जाति व जनजाति 18 प्रतिशत, मुस्लिम लगभग 12.92 प्रतिशत और ब्राह्मण लगभग तीन प्रतिशत हैं. हालांकि, 2013 और 2018 के बीच की गई एक जाति जनगणना, जिसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, के अनुसार लिंगायत और वोक्कालिगा की आबादी क्रमशः नौ और आठ प्रतिशत से बहुत कम है.
54 लिंगायत विधायकों में 37 भाजपा के हैं
वर्तमान विधानसभा में सभी दलों के 54 लिंगायत विधायक हैं, जिनमें से 37 सत्तारूढ़ भाजपा के हैं. इसके अलावा, 1952 के बाद से कर्नाटक के 23 मुख्यमंत्रियों में से 10 लिंगायत रहे हैं, इसके बाद छह वोक्कालिगा, पांच पिछड़ा वर्ग से और दो ब्राह्मण. आगामी 10 मई को होने वाले मतदान में जीत के लिए लिंगायतों का समर्थन हासिल करना कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी से समझा जा सकता है कि सभी राजनीतिक दल इस प्रभावशाली समुदाय को लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
साल 1989 तक लिंगायत कांग्रेस के पाले में थे और इस वजह से पार्टी का राज्य में एक मजबूत जनाधार भी था, लेकिन राजीव गांधी द्वारा 1990 में तत्कालील मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को बर्खास्त किए जाने के बाद से यह समुदाय उसके खिलाफ हो गया. पाटिल के नेतृत्व में 1989 के चुनाव में कुल 224 सीटों में से 178 सीटें जीतने वाली कांग्रेस अगले चुनाव में 34 सीटों पर सिमट गई थी. जनता परिवार के विघटन और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में बी एस येदियुरप्पा के उभरने के साथ, समुदाय का एक बड़ा हिस्सा भगवा पार्टी की ओर स्थानांतरित हो गया, और फिर कर्नाटक इसका दक्षिणी गढ़ बन गया.
यह तब और मजबूत हो गया जब पूर्व मुख्यमंत्री और जद (एस) नेता एच डी कुमारस्वामी ने 2007 में येदियुरप्पा को सत्ता हस्तांतरित करने से इनकार कर दिया. इससे भाजपा-जद (एस) गठबंधन के सत्ता साझेदारी समझौते का उल्लंघन हुआ और फिर इसके परिणामस्वरूप सरकार गिर गई. अगले विधानसभा चुनावों में भाजपा को सहानुभूति मिली. नतीजा हुआ कि 2008 के विधानसभा चुनावों के बाद, भाजपा ने येदियुरप्पा के नेतृत्व में 110 सीटें जीतकर अपनी पहली सरकार बनाई.
10 को वोटिंग और 13 मई को वोटों की गिनती
गौरतलब है कि कर्नाटक विधानसभा के लिए 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को मतों की गिनती होगी. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक कर्नाटक के मठ खुद को राजनीति से दूर रखने का दावा करते हैं, लेकिन यह भी तथ्य है कि इन धार्मिक केंद्रों का अनुपालन खास जातियां करती हैं और समुदाय के मतों का रुख उनके विचार से मुड़ सकता है क्योंकि ये स्थान अस्पतालों और शिक्षण संस्थानों का भी संचालन करते हैं और अन्य सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हुए हैं.
पहाड़ियों से घिरा सिद्धगंगा मठ लिंगायत समुदाय का प्रमुख मठ है जो समाज के कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए वृहद पैमाने पर शिक्षण संस्थानों का परिचालन पूरे राज्य में करता है जिसमें छात्रों को मुफ्त में भोजन और शिक्षा प्रदान की जाती है. सिद्धगंगा मठ के मुख्य महंत ने कहा, 'लोग अपनी इच्छा से सरकार का चुनाव करेंगे. चुनाव के बाद बहुमत हासिल करने वाली पार्टी सरकार बनाएगी. मैं लोगों को केवल यह संदेश देना चाहता हूं कि वे बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए घरों से निकलें.'
महास्वामी ने कहा, 'मठ सेवा कर रहा है और वे (नेता) आशीर्वाद लेने आते हैं. वे केवल चुनाव के समय ही नहीं बल्कि जब भी इच्छा होती है, आते हैं. हम लोगों से केवल अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मतदान करने को कह रहे हैं.' उन्होंने कहा, ' कर्नाटक के लोग सौभाग्यशाली हैं कि पूरे राज्य में मठ हैं और आप देख सकते हैं कि मठ समाज सेवा कर रहे हैं, खासतौर पर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में. इसलिए कर्नाटक की साक्षरता दर अधिक है. मठ भोजन प्रदान कर रहे हैं और छात्रावास युक्त स्कूल सुविधा की शुरुआत की है.'
सिद्धगंगा मठ में गत 18 साल से देखभाल का कार्य कर रहे मुबारक ने कहा कि मठ सभी धर्मों से परे सभी लोगों के लिए है. उन्होंने कहा, ' विभिन्न धर्मों के करीब 10 हजार छात्र मठ के संस्थानों में पढ़ रहे हैं और हजारों को रोज खाना मिल रहा है. गुरुजी सभी धर्मों को समान रूप से देखते हैं.'
(इनपुट- भाषा)
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