सपा के 6 बागी कांग्रेस को 0 पर आउट कर सकते हैं, समझें लोकसभा चुनाव का पूरा गणित

विधायकों की ये बगावत समाजवादी पार्टी के लिए इसलिए बड़ा झटका है क्योंकि जिन विधायकों ने ये बगावत की है वो सभी अखिलेश के करीबी माने जाते हैं और सपा के मजबूत स्तंभों के रूप में उनकी गिनती होती रही है. 

Written by - Akash Singh | Last Updated : Feb 28, 2024, 05:02 PM IST
  • समझें लोकसभा चुनाव का गणित
  • अखिलेश को भी बड़ा झटका
सपा के 6 बागी कांग्रेस को 0 पर आउट कर सकते हैं, समझें लोकसभा चुनाव का पूरा गणित

नई दिल्लीः यूपी में उस वक्त सियासी हलचल तेज हो गई जब राज्यसभा चुनाव में मतदान के वक्त सपा के 7 विधायकों ने पार्टी लाइन से हटकर बीजेपी के पक्ष में मतदान किया. विधायकों की ये बगावत समाजवादी पार्टी के लिए इसलिए बड़ा झटका है क्योंकि जिन विधायकों ने ये बगावत की है वो सभी अखिलेश के करीबी माने जाते हैं और सपा के मजबूत स्तंभों के रूप में उनकी गिनती होती रही है. लेकिन ये झटका अखिलेश से कहीं ज्यादा कांग्रेस को भी चुभ रहा होगा. 

बागी विधायकों ने क्यों बढ़ाई कांग्रेस की टेंशन
लोकसभा चुनाव को लेकर इस वक्त सभी पार्टियां तैयारियों में जुटी हैं. यूपी में सबसे ज्यादा लोकसभा की 80 सीटें हैं. कांग्रेस और सपा ने हाल ही में गठबंधन का ऐलान किया है और राहुल के साथ अखिलेश ने रोड शो भी किया है. लेकिन सपा विधायकों की इस बगावत ने कांग्रेस को इसलिए मुश्किल में डाल दिया है क्योंकि इन बागी विधायकों पर अगर नजर डालेंगे तो इससे कांग्रेस को उसके गढ़ रायबरेली से भी झटका लग सकता है साथ ही अमेठी में फिर पार्टी को नुकसान हो सकता है.

पहले डालते हैं अमेठी लोकसभा पर नजर
2019 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा अमेठी को लेकर हुई क्योंकि बीजेपी ने राहुल गांधी को मात देकर कांग्रेस का किला ढहाया था. लेकिन जब 2022 में यूपी विधानसभा के चुनाव हुए तो सपा ने अमेठी और गौरीगंज दोनों सीटें अपने नाम की. समीकरणों को देखेंगे तो अगर कांग्रेस के साथ सपा का गठबंधन होता है तो बीजेपी को इस गठबंधन से सीधी चुनौती मिलती दिख रही थी.

लेकिन अब गौरीगंज के विधायक राकेश प्रताप सिंह की बगावत और महाराजी देवी के 'मौन'से बीजेपी की राह आसान हो सकती है. महाराजी देवी पूर्व कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी हैं. अमेठी  विधानसभा में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. वहीं, राकेश का अपने क्षेत्र में खासा दबदबा है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह लगातार तीन बार से विधायक हैं और पिछले विधानसभा में तमाम सियासी उठापटक के बावजूद वह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे. हालांकि, कहा ये भी जाता है कि 2019 के लोकसभा में भी राकेश प्रताप ने स्मृति ईरानी का साथ दिया था.

क्या ढह जाएगा रायबरेली का किला
अमेठी से सटी लोकसभा रायबरेली भी कांग्रेस का गढ़ है. सोनिया इस क्षेत्र से सांसद हैं लेकिन इस बार वो चुनाव नहीं लड़ेंगी. ऐसे में अब बीजेपी जहां रायबरेली को अपने कब्जे में लेना चाहती है वहीं कांग्रेस के सामने इस किले को बचाने की चुनौती है. अब अगर रायबरेली पर नजर डालें तो अदिती सिंह जो सदर से विधायक हैं वो पहले ही कांग्रेस को झटका देकर बीजेपी के टिकट पर विधायक बन चुकी हैं. वहीं, मनोज पांडे जो ऊंचाहार से विधायक हैं उन्होंने भी अब सपा को झटका दे दिया है. मनोज भी तीन बार से विधायक हैं और मंत्री रह चुके हैं. ऐसे में अब रायबरेली का किला भी बीजेपी ढहा सकती है.

एक बात ध्यान देने वाली ये है कि अमेठी और रायबरेली में ज्यादातर समय ये सियासी परंपरा रही है कि सपा ने कांग्रेस के सामने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं. ऐसे में अब गठबंधन से पहले सपा के ही विधायकों की बगावत बीजेपी को राहत देती दिख रही है.  

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