नई दिल्ली: अखिलेश यादव ने जब मुख्यमंत्री योगी को 'बुलडोजर बाबा' कहकर तंज कसा था, तब शायद सोचा भी नहीं होगा कि योगी आदित्यनाथ इसी को अपनी पहचान बना लेंगे और यही बुलडोजर सपा सुप्रीमो के अरमानों को कुचल डालेगा. आज यूपी से लेकर हिंदुस्तान के दूसरे शहरों में भी बुलडोजर अब ब्रांड बन गया है.
जीत की पहचान बना बुलडोजर
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की जीत की पहचान बन गया है बुलडोजर.. बाबा और बुलडोजर एक नया ब्रांड बन चुके हैं. आयोध्या, एक्सप्रेस वे और काशी के विकास के साथ योगी हिंदुत्व और विकास की राजनीति के सरताज साबित हुए हैं, तो दूसरी तरफ बाबा का बुलडोजर है जिसने सिर्फ माफिया राज को चूर चूर ही नहीं किया बल्कि यूपी की जनता के अंदर कानून के राज का भरोसा दिलाया है.
अगले 5 साल के लिए यूपी की जनता ने योगी आदित्यनाथ को एक बार फिर अपना सीएम चुन लिया है और योगी आदित्यनाथ के फिर से सीएम बनने की खबर से ख्वाबों में खोए माफियाओं, गुंडों और बदमाशों की बत्ती गुल है.
ये माना जा रहा है कि शपथ ग्रहण करने के साथ ही योगी आदित्यनाथ जो फैसले लेने वाले हैं. उसमें सबसे बड़ा और सबसे पहला फैसला होगा यूपी से माफिया, गुंडे, बदमाशों का सफाया.. जीत के बाद के अपने विजयी सम्बोधन में योगी ने साफ कहा कि "ये जीत हमें जवाबदेही का एक नया संकेत देता है, हमें जोश के साथ साथ होश को बनाए रखना है. इससे भी मजबूती के साथ हमें आम जनमानस के आकांक्षाओं के अनुरूप एक बार फिर हमें साबित करना होगा."
माफियाओं का सफाया योगी का संकल्प
दरअसल, उत्तर प्रदेश से गुंडों और माफियाओं का सफाया योगी का संकल्प है और योगी ने इसे साबित भी किया है. बीजेपी और योगी भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं कि गोरखपुर के बाबा को इसीलिए वापस इतना बड़ा जनादेश मिला है, क्योंकि उन्होंने वादे के मुताबिक गुंडे, बदमाशों की ऐसी हालत कर दी कि वो खुद तख्तियां लटकाए घूमने लगे.
यूपी में माफिया सरगना के छाती पर योगी बुलडोजर पिछले 4 सालों से चल रहा है. गैरकानूनी साम्राज्य को चकनाचूर कर रहा है, लेकिन 2022 की प्रचंड विजय के बाद माफिया के साथ अब यूपी में इसकी सियासत करने वालों का भी हलक सूख रहा है.
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चुनाव से पहले यूपी में 25 टॉप माफिया सरगनाओं पर योगी बुलडोजर चला है. इस लिस्ट में मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद से लेकर बृजेश सिंह, बबलू श्रीवास्तव जैसे बाहुबली शामिल हैं. योगी सरकार अबतक माफिया सरगनाओं की 1600 करोड़ से ज्यादा की चल-अचल संपत्ति पर शिकंजा कस चुकी है. यही नहीं, अवैध कब्जा हटाने और संपत्तियों को ढहाने में जो खर्च आ रहा है, वह भी सरकार इन माफियाओं से ही वसूल रही है.
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