उस दिन आरा शहर खामोश था. सर्दियों में सूरज से गर्मी हासिल करने की कोशिश में लोग घर के बाहर ही रहना पसंद करते थे, इन सब से अलग शहर के अंदर ही बने दीवानी न्यायालय में चहल पहल थी, आम लोगों से ज़्यादा काले कोट में वकील नज़र आ रहे थे और अचानक सुबह 11 बजकर 35 मिनट पर होता है एक ब्लास्ट. तारीख थी 23 जनवरी 2015, बिहार में आरा शहर. कोर्ट में जो ब्लास्ट हुआ था वो मामूली ब्लास्ट नहीं था, पहली बार बिहार में मानव बम का इस्तेमाल हुआ था. एक महिला ने ख़ुद को उड़ा लिया था और दो लोग मारे गए थे. इस ब्लास्ट का मकसद किसी को मारना नहीं था बल्कि कुछ और था और इस धमाके को प्रायोजित करने का आरोप जिस पर लगा उसका नाम है. सुनील पाण्डेय..
दोस्त के ख़ून से शुरू किया क्राइम का सफर
1966 में नरेंद्र पाण्डेय का जन्म एक आर्मी ऑफिसर के घर हुआ लेकिन समय के साथ उसके पिता कामेश्वर पाण्डेय ने आर्मी छोड़ बिहार में सोन नदी के किनारे बालू खनन का काम करने लगा. कामेश्वर पाण्डेय ने ठेकेदारी में दबदबा कायम करने के लिए अपनी गैंग बनाई, बेटे नरेंद्र को बेंगलुरू पढ़ने के लिए भेजा, वो अपनी तरह बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे लेकिन ख़ून ने रंग दिखाया और उसने गुनाह के पहले पायदान पर कदम रखा.
बेंगलुरू में पढ़ने गए नरेंद्र पाण्डेय ने एक झगड़े में अपना तेवर दिखाया और चाकू से दूसरे छात्र को ज़ख़्मी कर दिया. नरेंद्र पाण्डेय अपने गांव वापस आया और बाप की ठेकेदारी को संभालने की कोशिश में लग गया. हाथ जुर्म की मेंहदी से लाल हो चुका था और नरेंद्र पाण्डेय को नया नाम भी मिल चुका था सुनील पाण्डेय.
शहाबुद्दीन का शागिर्द बना सुनील का उस्ताद
सुनील ने जुर्म की सीढ़ियां लांघने के लिए अपने उस्ताद सिल्लू मियां को रास्ते से हटा दिया. सिल्लू मियां सिवान के डॉन शहाबुद्दीन का गुर्गा था और शहाबुद्दीन की शह पर सिल्लू मियां रोहतास से लेकर आरा तक अपनी गुंडई चलाता था, उसने सुनील को अपना शागिर्द बनाया. हथियारों की कोई कमी नहीं थी, सिल्लू मियां और सुनील बिहार से लेकर यूपी तक में क्राइम करने लगे, हत्याओं और लूट को अंजाम देने लगे थे लेकिन इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सुनील ने सिल्लू मियां को निपटा दिया और रोहतास में सोन नदी का शहंशाह बन गया. उसके एक साथी नंद गोपाल फौजिया ने कभी पुलिस की गिरफ़्त में आने पर जो इक़बालिया बयान दिया, उसी को पढ़कर अंदाज़ा हो जाएगा कि सुनील पाण्डेय किस कदर खुंखार बन चुका था, और कैसे रोहतास का अदना सा गुंडा बिहार का बाहुबली बन गया.
सुनील पाण्डेय के ममेरे भाई नंद गोपाल फौजी का इक़बालिया बयान
"मेरे पिताजी और सुनील पाण्डेय के पिता कामेश्वर पाण्डेय जी ममेरा-फुफेरा भाई थे, इसी संबंध के चलते सुनील पाण्डेय से परिचय है. साल 1987 में सुनील पाण्डेय ने बनारस में एक बड़े अपराध को अंजाम दिया और मेरे घर छिपने चले आए. इसी लिए उनसे घनिष्ठता हो गई. साल 1988 में सुनील पाण्डेय, शेखर, सिल्लू मियां और चुनमुन सिंह के साथ बोकारो में राम मंदिर के पास स्टेट बैंक को लूटा जिसमें मुझे दो लाख रुपया मिला. इसी साल बराकर सेंट्रल बैंक को लूटा जिसमें करीब 4 लाख रुपया मिला. इस काण्ड में भी मेरे साथ सुनील पाण्डेय, सिल्लू मियां, शेखर और चुनमुन सिंह थे. इसी साल इन्हीं लोगों के साथ आरा में लालबाबू नेता की हत्या की. उसके बाद छपरा में साढा ढाला के पास एक व्यक्ति की हत्या की, जिसका नाम अभी याद नहीं है, इसमें सिल्लू मियां, सुनील पाण्डेय और जुनैद अंसारी मेरे साथ शामिल थे. बीच में असलहे को लेकर झगड़ा हुआ और मैं और सिल्लू मियां सुनील पाण्डेय से अलग हो गए और बनारस को अपना ठिकाना बना लिया. सुनील पाण्डेय ने कुछ वक़्त के बाद मेरे पास संदेशा भिजवाया कि सिल्लू मियां उनकी यानी सुनील पाण्डेय की हत्या करना चाहते हैं और मुझसे ये कहकर मदद मांगी कि मेरा उनसे ख़ून का रिश्ता है, मैं सुनील पाण्डेय से मिल गया और सिल्लू मियां की हमने मिलकर हत्या कर दी. हमारे गैंग के सरगना सुनील पाण्डेय हैं और उनके पास ए.के. 47, एक चायनीज़ एसएलआर, 0.30 बोर के 6 पिस्टल और 4.15 बोर के दो पिस्टल हैं. सिल्लू मियां का सुनील पाण्डेय के गांव नावाडीह में एक लड़की से नाजायज़ संबंध था जिससे सुनील पाण्डेय नाराज़ थे. सुनील पाण्डेय, मैं और रॉकी ने मिलकर सिल्लू मियां और जुनैद अंसारी की हत्या कर दी और लाश को नहर में फेंक दिया, जिसका आज तक पता नहीं चला. इसके अलावा सुनील पाण्डेय और मैंने मिलकर नावाडीह के रामाधार यादव की हत्या की, इसके बाद सुनील पाण्डेय ने रॉकी के साथ मिलकर डालमियानगर के स्प्रिट के कारोबारी राजकुमार की हत्या की."
रणबीर सेना का कमांडर बना सुनील पाण्डेय
90 के दशक में जातियों में बंटे बिहार में, जाति के हिसाब से सेनाएं भी बनीं और उनके पास हथियारों का ज़खीरा भी पहुंचा. इन्हीं में शामिल होती थी रणबीर सेना, जो भूमिहारों के हक़ में जंग के लिए निकले थे, नरेंद्र कुमार पाण्डेय उर्फ सुनील पाण्डेय इस सेना का कमांडर बना. जाति के हक़ के लिए बनी सेना समय के साथ हथियार का दम दिखाने लगी और फिर बिहार ने वो दौर भी देखा जब बिहार के लोगों की किस्मत बैलट से नहीं बंदूक से लिखी जाती थी. सिर्फ सियासी पार्टियों के लिए नहीं बल्कि रसूख रखनेवालों के लिए भी ये सेना प्रोटेक्शन चार्ज वसूला करती थी.
ज़ी मीडिया को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में ऐसी ही एक सेना के लड़ाकों ने बताया कि उन्हें गोलियां और हथियार नेता लोग देते हैं और इसके बीचे उनकी मंशा होती है कि उन्हें इलेक्शन में मदद मिले. इसके लिए तब गोलियों और हथियारों की होम डिलिवरी होती थी. इतना ही नहीं इसी इंटरव्यू में ये भी बात सामने आई थी कि ठेकेदारों से ये हथियारबंद लड़ाके प्रोटेक्शन चार्ज वसूलते थे और उनसे 5 से लेकर 10% तक कमीशन वसूल करते थे.
साल 2000 में बना विधायक, विधानसभा से हुआ अरेस्ट
रणबीर सेना का लीडर था ब्रह्मेश्वर मुखिया, सुनील पाण्डेय कमांडर बना तो एक भूमिहार की हत्या को लेकर मुखिया के सामने खड़ा हो गया, दोनों के बीच अदावत की जंग होने लगी. पुलिस लगातार सुनील पाण्डेय की तलाश में थी, लेकिन वो फरार चल रहा था और अचानक साल 2000 के चुनाव में पाण्डेय समता पार्टी के टिकट पर चुवावी मैदान में उतर गया. रोहतास के पीरो विधानसभा सीट पर उसने आरजेडी के कैंडिडेट काशीनाथ को मात दी और पहुंच गया विधानसभा.
विधानसभा के भीतर शपथ ग्रहण का कार्यक्रम चल रहा था और बाहर बिहार पुलिस इंतज़ार में खड़ी थी. सालों से फरार चल रहा सुनील पाण्डेय विधायकी की शपथ लेकर जैसे ही बाहर निकला, पुलिस ने उसे गिरफ़्तार कर लिया. उस पर मध्य बिहार में दलितों का नरसंहार करने का आरोप था. सुनील पाण्डेय को आरा जेल भेज दिया गया.
हालांकि माना जाता है कि साल 2000 में नीतीश की सरकार बनाने के लिए बिहार के बाहुबलियों की फिल्डिंग सुनील पाण्डेय ने ही की थी. हालांकि नीतीश की सरकार 7 दिनों में ही गिर गई और विश्वास मत हारने के बाद राबड़ी देवी की सरकार फिर से बिहार में आ गई थी.
जेल में रहते हुए अय्याशी और दबंगई
सुनील पाण्डेय जेल पहुंच चुका था लेकिन साल 2001 में ज़ी मीडिया पर तस्वीरें आईं. करीब 50 मामलों का इल्ज़ाम इस शख़्स पर था लेकिन तकनीकी तौर पर जेल में क़ैद सुनील पाण्डेय पटना मेडिकल कॉलेज के क़ौदी वार्ड में भी अय्याशी कर रहा था और इसकी दबंगई में कोई कमी नहीं थी. सुनील पाण्डेय के पास मोबाइल फोन था और जब उससे पूछा गया कि मोबाइल फोन कहां से आया तो उसका साफ जवाब था कि “जब लालू प्रसाद यादव को फोन मिल सकता है तो बाकी क़ैदियों को क्यों नहीं और ये व्यवस्था की कमी है कि क़ैदियों के पास मोबाइल फ़ोन है”
इतना ही नहीं क़ैदी वॉर्ड में रहते हुए और पुलिसवालों की मौजूदगी में सुनील के साथी के पास हथियार भी मौजूद रहता था. ज़ी की टीम ने ये भी देखा कि जब इच्छा होती थी सुनील पाण्डेय जेल से निकलकर घर तक चला जाता था ताकि घर का खाना खा सके.
डॉक्टर रमेश चंद्रा किडनैपिंग केस
बिहार के पहले न्यूरोसर्जन डॉक्टर रमेश चंद्रा को 17 मई 2003 को पटना से उठा लिया गया. वो अपनी गाड़ी में निकले थे लेकिन घर वापस नहीं आए, 18 मई 2003 को इसकी रिपोर्ट लिखवाई गई और बताया गया कि किसी अज्ञात फोन से फिरौती की डिमांड की गई और डॉक्टर रमेश चंद्रा को छोड़ने के एवज़ में 50 लाख रूपए की मांग की गई.
इस किडनैपिंग में मुख्य रूप से जिसका नाम था, उसका नाम था नरेंद्र कुमार पाण्डेय उर्फ सुनील पाण्डेय. हालांकि 20 मई 2003 को ही यानी घटना के 3 दिन बाद ही पटना पुलिस ने बिना फिरौती दिए डॉक्टर रमेश चंद्रा को ढूंढ निकाला. 17 सितम्बर 2008 को पटना के एडिशनल सेशंस जज की अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया और सुनील पाण्डेय के साथ 5 आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई. हालांकि सुनील पाण्डेय पहले से ही रोहतास की ज़िला जेल में बंद था, इस मामले में 13 जुलाई 2010 को हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में सुनील पाण्डेय को बरी कर दिया.
2005 में फिर बना ‘पावरफुल’ विधायक
साल 2005 में बिहार में दो बार चुनाव हुए और फरवरी और नवंबर दोनों बार जेडीयू के टिकट पर सुनील पाण्डेय ने जीत दर्ज करते हुए और मध्यावधि चुनावों के बाद अपनी ताक़त दिखाते हुए उसने बिहार के बाहुबलियों को साथ लाकर नीतीश के सामने अपनी पावर एक बार फिर पेश की.
बिहार में सुनील पाण्डेय की अपनी सरकार थी, रुआब ये था कि सरकार गिराने और बनाने की बातें करता था. यही वजह थी की हर जगह अपनी हनक दिखाता था. 28 जून 2006 को पटना के मौर्या होटल में सुनील ने हंगामा काटा और एक पत्रकार को जान से मारने की धमकी भी दे डाली. उसने एक पत्रकार को कहा “ए सुना, ठोक देब, मरवा देब” ये बात कैमरे पर रिकॉर्ड हुई और नशे में धुत सुनील पाण्डेय को पूरे देश ने टीवी चैनल्स के माध्यम सुना.
दरअसल सुनील पाण्डेय पटना के मौर्य होटल में परिवार के साथ रुका था, वहां खाना जमकर खाया, जमकर शराब पी और जब बिल भरने की बात आई तो दबंगई दिखाने लगा. होटल वालों ने रोका तो तमाशा करने लगा और मीडिया आई तो मीडिया को भी धमकाने लगा. सुनील पाण्डेय का कहना था कि उसका होटल के मालिक के ऊपर 47 लाख रूपए उधार है.
नीतीश की नाराज़गी का शिकार
16 जुलाई 2006 को सांसद आनंद मोहन सिंह को पटना के एसएसपी ने हंगामे के बाद गिरफ़्तार किया था. आनंद मोहन सिंह भी एक बिहार का एक बाहुबली है और उसे एक केस के सिलसिले में सहरसा जेल से देहरादून में पेशी के लिए ले जाया गया जहां जज साहब ने डांटकर भगा दिया और कहा कि वो अपने जेल वापस जाए, इस तरह घूमने के लिए ना निकले. जब पेशी करानी होगी तो वहीं से करा लेंगे. आनंद मोहन देहरादून से दिल्ली गया और दिल्ली से वापस पटना पहुंचा था. इस कवायद में करीब 5 दिन का समय लिया गया था. पटना में पहुंच कर आनंद मोहन सिंह एक होटल में रुका और वहां प्रेस कांफ्रेंस करने के लिए मीडिया को बुलाया, इतने में पटना के एसएसपी फोर्स के साथ वहां पहुंचे और धक्के मारकर आनंद मोहन को पुलिस की गाड़ी में बिठाया और पहले कोतवाली ले गए और फिर उसे सहरसा की जेल भेज दिया.
आनंद मोहन न्यायिक हिरासत में सहरसा जेल में ही बंद था. इस घटना ने नीतीश सरकार को शर्मसार किया, आनंद मोहन के साथ ड्यूटी पर लगे पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया गया और डिपार्टमेंटल इंक्वॉयरी लाद दी गई लेकिन 20 अगस्त 2006 को इसी घटना को लेकर विधायक सुनील पाण्डेय ने एक सनसनीखेज़ बयान दे दिया. सुनील पाण्डेय ने कहा कि, “नीतीश सरकार सही से काम नहीं कर रही है और नीतीश राज में अफसरशाही बढ़ने लगी है. अगर जिस तरह से आनंद मोहन सिंह के साथ एसएसपी ने व्यवहार किया मेरे साथ किया होता तो उसे गोली मार देता” इस वाक्ये के बाद नीतीश कुमार ने सुनील पाण्डेय को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.
साल 2010, नीतीश का प्यार एक मजबूरी
राजनीतिक मजबूरी कहें या फिर कुछ और नीतीश को साल 2010 के चुनाव में सुनील को टिकट देना पड़ा और बाहुबली सुनील पाण्डेय ने तरारी विधानसभा सीट पर करीब एक लाख 40 हज़ार वोटों से जीत दर्ज की.
बिहार के कसाई का क़त्ल
1 जून 2012 को बिहार का आरा शहर जल रहा था उसके साथ भोजपुर से लेकर पटना तक मानो क़ानून नाम की कोई चीज़ नहीं थी. आधा बिहार सुलग उठा था. ये हिंसा, ये आगजनी उस आवेश का नतीजा थी, जो रणबीर सेना के लीडर रहे ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या से उपजी थी. 277 लोगों की हत्या का आरोपी और सितंबर 1994 में रणबीर सेना का गठन करनेवाला और बिहार के कसाई के नाम से जाना जानेवाला ब्रह्मेश्वर मुखिया उर्फ बरमेसर मुखिया को क्लोज रेंज से 5 गोलियां दागी गई थीं. सुबह की सैर पर निकले 6 फुट के ब्रह्मेश्वर मुखिया की मौके पर ही मौत हो गई. मुखिया 8 जुलाई 2011 को जेल से छूटा था और 5 मई 2012 को किसानों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन की स्थापना की थी. भूमिहार समाज उसे अपना रहनुमा मानता था और यही वजह थी कि पुलिस भी उसके समर्थकों के आगे बेबस थी.
इस हत्या को लेकर शक की सुई सीधे नरेंद्र कुमार पाण्डेय उर्फ सुनील पाण्डेय पर गई थी लेकिन पुलिस ने कभी सुनील पर हाथ नहीं डाला. हालांकि उसका भाई हुलास पाण्डेय और उसके कुछ गुर्गे ज़रूर गिरफ़्तार हुए लेकिन बाद में छूट भी गए.
नीतीश को छोड़ राम विलास पासवान का साथ
जिस सुनील पाण्डेय पर कभी 50 से ज़्यादा संगीन मामलों में मुकदमे दर्ज थे वो धीरे-धीरे मुकदमों में बरी होता चला गया. साल 2014 के लोकसभा चुनावों में जब जेडीयू को महज़ 2 सीटें मिलीं तो 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले उसने जेडीयू का दामन छोड़ दिया और राम विलास पासवान की पार्टी ज्वाइन कर ली.
आरा कोर्ट में ब्लास्ट का मामला
23 जनवरी 2015 को आरा कोर्ट में धमाका हुआ और आरोप लगा कि सुनील पाण्डेय के कहने पर धमाके को मानव बम के ज़रिए अंजाम दिया गया ताकी दो मुजरिमों को भगाया जा सके. अखिलेश उपाध्याय और लम्बू शर्मा. कुछ दिनों में ही अखिलेश उपाध्याय पुलिस के हत्थे चढ़ गया था लेकिन लम्बू शर्मा को दिल्ली पुलिस के साथ एक ज्वाइंट ऑपरेशन में 24 जून 2015 को पकड़ा गया और आरा लाया गया. आरा में उससे पूछताछ की गई तो कई सनसनीखेज़ खुलासे हुए. उसने ना सिर्फ अपना जुर्म कबूल किया बल्कि सुनील पाण्डेय पर गंभीर आरोप भी लगाए.
11 जुलाई 2015 को एसपी आरा ने सुनील पाण्डेय को अपने ऑफिस में मिलने के लिए बुलाया और वहीं लम्बू शर्मा के इकबालिया बयान के आधार पर सुनील पाण्डेय को गिरफ़्तार कर लिया गया. दरअसल लम्बू शर्मा ने ना सिर्फ आरा ब्लास्ट मामले में सुनील को दोषी बताया बल्कि यहां तक कहा कि सुनील पाण्डेय ने उसे 50 लाख रूपए में यूपी के बाहुबली नेता और गैंगस्टर मुख़्तार अंसारी को मारने की सुपारी दी थी. लम्बू ने बाद में बताया कि कैसे उसने अपनी गर्लफ्रेंड को मानव बम के तौर पर इस्तेमाल किया था.
सुनील पाण्डेय को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. ये वो बाहुबली है जिसकी आधी ज़िंदगी या तो फरारी में बीती है, या फिर पुलिस कस्टडी या जेल में. और जब जब ये बाहर आया तब सियासत में हलचल पैदा करने की कोशिश की.
बिहार का ‘डॉक्टर’ डॉन
सुनील पाण्डेय ने भले ही गुनाह में कदम रखा था अपनी इंजीनियरिंग की तैयारी के दौरान लेकिन सुनील ने एमए किया और बाद में महावीर पर पीएचडी कर के डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की. जेल में रहकर ही सुनील पाण्डेय, डॉक्टर सुनील पाण्डेय बना लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि सुनील पाण्डेय का वर्चस्व कभी कम हुआ हो. उसकी ही ज़ुबान में कहें तो वो पहले भी बाहुबली था और आज भी है, जिसका मुजाहिरा हुआ अक्टूबर 2018 में जब बिहार में जहां तहां कुओं से, तालाबों से, घर की दीवारों से, बोरों से एके-47 रायफले निकलने लगीं.
इतनी बड़ी संख्या में प्रतिबंधित एके-47 मिलने पर मामला NIA के पास पहुंचा और 20 जून 2019 को नेशनल इनवेस्टिगेटिव एजेंसी ने यूपी में वाराणसी और बिहार में 7 जगहों पर छापेमारी की, सुनील के भाई पूर्व एमएलसी हुलास पाण्डेय के घर में एके-47 मिली.
सुनील पाण्डेय का सियासी पतन
साल 2015 के नवम्बर महीने में विधानसभा के चुनाव होने थे, एलजेपी में जा चुके सुनील पाण्डेय को टिकट की उम्मीद थी लेकिन सुनील को टिकट नहीं मिला. इस बार सुनील की पत्नी को एलजेपी ने तरारी सीट से उतारा लेकिन वो महज़ 272 वोटों से हार गईं.
सुनील पाण्डेय ने साल 2020 के चुनाव में भी एलजेपी से काफी उम्मीद रखी थी लेकिन इस बार लोक जनशक्ति पार्टी ने ना तो सुनील को और ना ही उनकी पत्नी को टिकट दिया, हालांकि सुनील एलजेपी का तमगा लिए प्रचार प्रसार कर रहे थे लेकिन जब टिकट नहीं मिला तो तरारी सीट से निर्दलीय मैदान में कूद पड़े हैं.
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