भगवान शिव के 3 पैरों वाले भक्त भृंगी ऋषि,जिनके हठ से उपजा अर्धनारीश्वर रूप

एक बार की बात है, भृंगी ने शिव की परिक्रमा करने की इच्छा जताई. शिव ध्यान में लीन थे. भृंगी वहां पहुंचे. माता पार्वती शिव के बगल में बैठी थीं. भृंगी ने कहा माता मैं केवल शिव की ही परिक्रमा करना चाहता हूं. आप बाबा से अलग बैठ जाएं. पार्वती ने भृंगी को सबक सिखाने के लिए शिव की गोद में अपना आसन लगा लिया. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 14, 2022, 07:05 AM IST
  • भगवान शिव के 3 पैरों वाले भक्त भृंगी ऋषि
  • जिनके हठ से उपजा अर्धनारीश्वर रूप
भगवान शिव के 3 पैरों वाले भक्त भृंगी ऋषि,जिनके हठ से उपजा अर्धनारीश्वर रूप

नई दिल्ली: शिव के इस महाजिद्दी भक्त की कहानी शिवपुराण में मिलती है.भृंगी नाम के एक ऋषि शिव के हठी भक्त थे. हठी भक्त इसलिए कि वह अपने और शिव के बीच में मां पार्वती तक को नहीं आने देना चाहते थे. भृंगी ने शिव की इतनी तपस्या की कि शिव ने खुश होकर उन्हें कैलाश में रहने का वरदान दे दिया.शिव ने वरदान दिया तो सवाल उठता है कि पार्वती ने फिर श्राप क्यों दिया?

जब पार्वती ने शिव भक्त को दिया श्राप 
एक बार की बात है, भृंगी ने शिव की परिक्रमा करने की इच्छा जताई. शिव ध्यान में लीन थे. भृंगी वहां पहुंचे. माता पार्वती शिव के बगल में बैठी थीं. भृंगी ने कहा माता मैं केवल शिव की ही परिक्रमा करना चाहता हूं. आप बाबा से अलग बैठ जाएं. पार्वती ने भृंगी को सबक सिखाने के लिए शिव की गोद में अपना आसन लगा लिया. 

भृंगी ने अपना हठ नहीं त्यागा. उन्होंने सांप का रूप धर लिया. शिव और पार्वती के बीच से वो निकलकर परिक्रमा पूरी करने लगे.पार्वती जी को और क्रोध आया.उधर शिव के ध्यान में भी बाधा पैदा हुई तो ध्यान टूट गया. शिव ने भृंगी की आंखें खोलने के लिए माता पार्वती को अपने में विलीन कर लिया. 

भृंगी के हठ से ही उपजा अर्धनारीश्वर का रूप  
भृंगी ने हठ फिर भी नहीं त्यागा. उन्होंने चूहे का रूप धर लिया. माता पार्वती के शरीर को भृंगी कुतर-कुतर कर अलग करने की कोशिश करने लगे.वो शिव के भक्त थे सो शिव चुपचाप सब सह रहे थे. लेकिन माता को गुस्सा आ गया. उन्होंने  तभी श्राप दिया.

क्या था श्राप ?
पार्वती ने कहा-तुम जिस मां के स्वरूप का अनादर कर रहे हो. उस मां से ही हर व्यक्ति को मांस और रक्त मिलता है.पिता हड्डी और पेशियां देता है. दोनों मिलकर ही शरीर बनता है. मैं जगत की माता तुमसे खून और मांस वापस लेती हूं. उसी पल भृंगी केवल हड्डियों और पेशियों का पिंजरा भर बनकर रह गये. बिना खून और मांस के वह धराशायी हो गए. खड़े रहने में भी वह असमर्थ थे.वह अर्धनारीश्वर रूप से क्षमा मांगने लगे.उन्हें गलती समझ में आ गई.लेकिन श्राप वापस लिया नहीं जा सकता.माता ने उनसे कहा-मैं श्राप से पूरी तरह तुम्हें मुक्त नहीं कर सकती. खून और मांस तो नहीं दे सकती. लेकिन तुम अपना जीवन चला सको, इसके लिए तुम्हें दो की जगह 3 पैर देती हूं.इसी तीसरे पैर के सपोर्ट से भृंगी ऋषि चलने फिरने में समर्थ हो पाए.

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