Ekadashi Vrat Katha: आज जरूर पढ़ें देवउठनी एकादशी व्रत कथा, भगवान विष्णु पूरी करेंगे हर मुराद!

Devuthani ekadashi vrat katha: आज देवउठनी एकादशी है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी के तौर पर जाना जाता है. माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी 4 महीने की निद्रा से जागते हैं. उनके आज योग निद्रा से जागने के बाद चातुर्मास खत्म हो जाता है. पढ़ें देवउठनी एकादशी व्रत कथा क्या हैः

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 12, 2024, 11:01 AM IST
  • देवउठनी एकादशी व्रत कथा
  • एकादशी व्रत का पारण कब करें
Ekadashi Vrat Katha: आज जरूर पढ़ें देवउठनी एकादशी व्रत कथा, भगवान विष्णु पूरी करेंगे हर मुराद!

नई दिल्लीः Devuthani ekadashi vrat katha: आज देवउठनी एकादशी है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाए जाने वाली एकादशी को देवउठनी एकादशी के तौर पर जाना जाता है. माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी 4 महीने की निद्रा से जागते हैं. उनके आज योग निद्रा से जागने के बाद चातुर्मास खत्म हो जाता है और सभी मंगल कार्य शुरू हो जाते हैं. 

एकादशी व्रत का पारण कब करें

देवउठनी एकादशी पर पूजा का शुभ मुहूर्त आज शाम 6.42 बजे से है. देवउठनी एकादशी का पारण का समय 13 नवंबर को सुबह 8.51 बजे तक है. जानिए देवउठनी एकादशी की व्रत कथा क्या है?

देवउठनी एकादशी व्रत कथा

देवउठनी एकादशी से जुड़ी एक पौराणिक कथा है. इसके मुताबिक, प्राचीन समय में एक नगर में राजा रहता था. उसके राज्य में सब एकादशी का व्रत रखते थे. एकादशी के दिन उस राज्य में जानवरों को भी अन्न नहीं दिया जाता था. वहीं एक बार की बात है, राजा के दरबार में बाहर से एक व्यक्ति आया और काम मांगने लगा. उसे काम तो मिल गया लेकिन राजा ने उससे कहा कि हर महीने दो एकादशी होती हैं और दोनों ही दिन तुमको अन्न नहीं मिलेगा. 

नौकरी मिलने के बाद वह व्यक्ति अपने काम में जुट गया. एकादशी का दिन आया तो उसको सिर्फ फलाहार दिया गया. उस व्यक्ति का फलाहार से पेट नहीं भरा तो वह चिंता में पड़ गया और राजा के सामने पहुंच गया. उसने राजा के सामने अपनी बात रखी कि फल से उसका पेट नहीं भरेगा और वह बिना अन्न के मर जाएगा. वह राजा से प्रार्थना करने लगा. तब राजा ने उससे कहा कि तुम्हें पहले ही शर्त बता दी गई थी. लेकिन वह राजा से मिन्नतें करने लगा तो उसे अनाज दे दिया गया. वह अनाज लेकर नदी के किनारे गया वहां उसने स्नान के बाद भोजन बनाया. भोजन के बाद उसने भोग के लिए भगवान विष्णु का आह्वान किया. आह्वान के बाद भगवान विष्णु वहां पहुंचे. उसने उनके लिए भोजन निकाला और फिर खुद भोजन किया.

अगली एकादशी आई तो उसने राजा से दोगुना अन्न मांगा क्योंकि पिछली बार भगवान भी भोजन करने आए थे जिससे उसका पेट नहीं भर पाया था. राजा को उस पर भरोसा नहीं हुआ. राजा ने जब कहा कि मुझे इस पर विश्वास नहीं है कि भगवान ने भी तु्म्हारे साथ खाना खाया तो उसने कहा कि राजन आप खुद आकर देख लीजिए. 

वह फिर से नहीं किनारे पहुंचा. यहां स्नान ध्यान के बाद भोजन बनाया और भगवान विष्णु का आह्वान किया. इस बार राजा भी वहां पहुंचा था और वह पेड़ के पीछे छिपकर सब कुछ देख रहा था. वह व्यक्ति भगवान विष्णु को बुलाता रह गया लेकिन इस बार भगवान नहीं आए. इस पर उसने कहा कि अगर भगवान आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर जान दे दूंगा लेकिन तब भी भगवान नहीं पहुंचे तो वह नदी में छलांग लगाने लगा. इस पर भगवान विष्णु ने उसे पकड़कर कूदने से बचा लिया. 

इसके बाद भगवान विष्णु ने भोजन किया और उसे अपने साथ वैकुंठ धाम लेकर चले गए. ये सब राजा की आंखों के सामने हुआ. उसे बाद में समझ आया कि सच्चे मन और शुद्ध आचरण से एकादशी व्रत करने से व्रत का लाभ मिलता है. इसके बाद राजा ने भी पवित्र मन और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की और एकादशी का व्रत लिया. इससे राजा के सभी पाप दूर हो गए और उसे स्वर्ग मिल गया.  

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