One Country One Surname: हर किसी का एक ही सरनेम, इस देश में 2531 तक हो सकता है ऐसा
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One Country One Surname: हर किसी का एक ही सरनेम, इस देश में 2531 तक हो सकता है ऐसा

Surname Law: तोहोकू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिरोशी योशिदा के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि यदि विवाहित जोड़ों पर एक ही उपनाम चुनने के लिए दबाव डालना जारी रहा, तो वर्ष 2531 तक प्रत्येक व्यक्ति को ‘सातो’ कहा जाएगा.

One Country One Surname: हर किसी का एक ही सरनेम, इस देश में 2531 तक हो सकता है ऐसा

Japan Surname Law: जापान में लगभग 500 वर्षों के बाद हर किसी का एक ही सरनेम ‘साटो’ (Sato) होगा. एक अध्ययन के मुताबिक ऐसा उस कानून की वजह से होगा जो विवाहित जोड़ों को साझा सरनेम रखने के लिए मजबूर करता है.

तोहोकू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिरोशी योशिदा के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि यदि जापान विवाहित जोड़ों पर एक ही उपनाम चुनने के लिए दबाव डालना जारी रखता है, तो वर्ष 2531 तक प्रत्येक जापानी व्यक्ति को ‘सातो’ कहा जाएगा.

क्या कहते हैं आंकड़े?
2023 में 1.5 प्रतिशत से अधिक जापानी लोगों ने साटो सरनेम रखा. जनगणना से पता चलता है कि 2022 से 2023 तक यह अनुपात 1.0083 गुना बढ़ गया.

लोगों द्वारा नाम रखे जाने की यह रफ्तार रही तो 2446 में जापानी आबादी का लगभग आधा हिस्सा ‘सातो’ सरनेम से जाना जाएगा, जो 2531 में 100 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। यानी हर किसी का सरनेम साटो होगा.

रिपोर्ट के मुताबिक अगर जापान सलेक्टिव सरनेम पॉलिसी नहीं अपनाता और 1800 के दशक में लागू वर्तमान नागरिक संहिता को समाप्त नहीं करता तो साटो सरनेम का प्रचलन खत्म नहीं होगा.

हमें नंबरों से बुलाना होगा
प्रोफेसर योशिदा ने कहा, ‘अगर हर कोई साटो बन जाता है, तो हमें हमारे पहले नाम या अंकों से बुलाना होगा और ऐसी दुनिया में रहना आदर्श नहीं होगा।

योशिदा ने कहा कि हालांकि अध्ययन और इसके अनुमान कई धारणाओं पर आधारित हैं,  लेकिन इस विश्लेषण के पीछे का विचार समाज पर जापानी विवाह कानूनों के पड़ने वाले संभावित प्रभावों पर ध्यान केंद्रित करना है.

जापान का सरनेम कानून क्या है?
जापान दुनिया का एकमात्र देश है जो जोड़ों के लिए एक ही सरेनम रखना अनिवार्य है. हालांकि पति-पत्नी में से कोई भी अपने साथी का उपनाम अपना सकता है, लेकिन 95 प्रतिशत मामलों में महिलाएं ही अपने पति का उपनाम अपनाती हैं.

यह कानून पहली बार 1898 में मीजी युग के दौरान पेश किया गया था. इस अवधि के दौरान, महिलाओं के लिए अपना विवाहपूर्व नाम त्यागना आम बात थी।

सदियों पुराने इस कानून का खासा विरोध हो रहा है. कई लोग इसमें संशोधन की मांग कर रहे हैं.

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