India Maldives: मालदीव के लिए तुर्किए से निगरानी ड्रोन खरीद रहे मुइज्जू, देश की सुरक्षा की चिंता या भारत को चिढ़ाने की कोशिश?
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India Maldives: मालदीव के लिए तुर्किए से निगरानी ड्रोन खरीद रहे मुइज्जू, देश की सुरक्षा की चिंता या भारत को चिढ़ाने की कोशिश?

India Maldives Issue: अपनी हरकतों से भारत को चिढ़ाने की कोशिश कर रही मालदीव की मुइज्जू सरकार एक बार फिर उकसावे वाली कार्रवाई कर रही है. भारतीय सेना के खिलाफ अभियान चलाकर वहां की सेना तुर्किए से निगरानी ड्रोन खरीद रही है. 

 

India Maldives: मालदीव के लिए तुर्किए से निगरानी ड्रोन खरीद रहे मुइज्जू, देश की सुरक्षा की चिंता या भारत को चिढ़ाने की कोशिश?

Maldives buying drones from Turkey: मालदीव में भारत विरोधी देशों को लाने की साजिश हो रही है. मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अपने पहले विदेशी दौरे के लिए तुर्किये गए. इसके बाद उन्होंने तुर्किये से ड्रोन खरीदने का फैसला किया. मालदीव ने इसके बाद चीन के साथ कई समझौते किए और अब मालदीव में विदेशी सेना पहुंच सकती है.

मालदीव बन सकता है भारत विरोधी मोर्चे का केंद्र

पिछले साल मालदीव में चीन समर्थक मोहम्मद मोइज्जू की सरकार आने के बाद पहली बार हिंद प्रशांत क्षेत्र में तुर्किए का सैनिक दखल होने की संभावना है. मालदीव के तुर्की से निगरानी के लिए ड्रोन खरीदने के फैसले के बाद भारत के लिए रणनैतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण इस देश में ऐसे देश का प्रवेश होने जा रहा है, जो कभी भी भारत विरोधी मोर्चे का केंद्र हो सकता है. 

मालदीव की नई सरकार ने वहां तैनात भारतीय सैन्यकर्मियों को 15 मार्च तक देश छोड़ने के लिए कहा है. ये सभी भारतीय सैनिक वहां भारत सरकार द्वारा मालदीव की मदद के लिए चलाए जा रहे सैनिक और नागरिक कार्यवाहियों से जुड़े हुए हैं. भारत सरकार ने मालदीव को 2 स्वदेशी ध्रुव हेलीकॉप्टर दिए हैं और समुद्र की सुरक्षा के लिए एक डोर्नियर एयरक्राफ्ट दिया है. इसके अलावा भारत सरकार मालदीव को निगरानी के लिए कोस्टल रडार लगाने में भी मदद करता है. 

तुर्किए का बढ़ सकता है सैन्य दखल

अब मालदीव अपनी समुद्री सुरक्षा के लिए तुर्किए से ड्रोन खरीद रहा है और ज़ाहिर है उसके साथ ही तुर्किए के सैनिक विशेषज्ञों का भी यहां दखल बढ़ेगा. भारत के आसपास के देशों में चीन की घुसपैठ और हिंद महासागर में बढ़ती सैनिक प्रतिद्वंदिता के बीच ये भारत का नया सिरदर्द है. 

मालदीव की हिंद महासागर के बीचोंबीच मौजूदगी उसे रणनैति रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है. भारत के मालदीव के साथ पुराने संबंध रहे हैं और 1966 में मालदीव की आज़ादी के बाद भारत पहले देशों में था जिन्होंने उसे मान्यता दी थी. 1976 में दोनों देशों में समुद्री सीमा को लेकर समझौता हुआ और 1981 में दोनों ने व्यापार संधि पर हस्ताक्षर किए. 

हर वक्त मदद के लिए खड़ा रहा है भारत

भारत लगातार मालदीव को आर्थिक मदद देता रहा और राजधानी मारे में वहां सबसे बड़ा अस्पताल बनाया. 1988 में भारत ने मालदीव पर कब्ज़ा करने की कोशिश को नाकाम किया और वहां वापस लोकतांत्रिक सरकार की बहाली की. 1914 में मालदीव के इकलौते पानी साफ़ करने के संयंत्र के खराब होने के बाद भारत ने ही वहां वायुसेना के बड़े ट्रांसपोर्ट विमानों से पानी पहुंचाया और नौसेना के जहाज़ों की मदद से खारे पानी को पीने लायक बनाया. 

लेकिन मालदीव की रणनैतिक स्थिति पर चीन की नज़रें गड़ी हैं. श्रीलंका को अपने कर्ज़ के जाल में फंसाकर आर्थिक गुलाम बनाने के साथ-साथ चीन मालदीव को भी जाल में फंसाना चाहता है ताकि हिंद महासागर में उसके लिए एक और महत्वपूर्ण ठिकाना बन जाए. चीन समय-समय पर मालदीव में अपनी समर्थक सरकार बनाता है जैसा उसने इस बार भी किया. 

जेहादी भावनाएं भड़काने का चल रहा काम

मालदीव के राष्ट्रपति ने अपनी पहली विदेश यात्रा तुर्किए और उसके बाद चीन की की है. चीन यहां इस्लाम का पत्ता भी चलना चाहता है और इसके लिए वो लगातार पाकिस्तानी कट्टरपंथियों की मदद ले रहा है. मालदीव में जेहादी भावनाएं भड़काने का ये काम उसे 2000 के दशक में ही शुरू कर दिया था जिसके साथ भारत विरोधी जनसमर्थन जुटाना आसान है. 

चीन ने भारत की घेराबंदी के लिए तीन दशक पहले स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति शुरू की थी. इसके तहत उसने पाकिस्तान, नेपाल, बांगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव में अपनी पकड़ मज़बूत करनी शुरू की थी. इसमें उसे बहुत कम सफलता मिल पाई लेकिन अभी मालदीव में जिस तरह भारत विरोधी मोर्चेबंदी शुरू की गई है उससे निबटने में भारत को जितना समय लगेगा चुनौती उतनी ही बड़ी होती जाएगी.

मालदीव में तुर्किए बना सकता है सैन्य अड्डा

मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू अपनी पहली विदेश यात्रा में तुर्किये गए और उसके तुरंत बाद ये फैसला आया है. इसका मतलब ये है कि आगे चलकर मालदीव में तुर्किये की सेना पहुंच सकती है. ये भी संभव है कि तुर्किये की सरकार मालदीव के किसी द्वीप पर अपना सैन्य अड्ढा बना ले. 

जल्द ही संभव है कि मालदीव हिंद महासागर में भारत विरोधी मोर्चे का केंद्र बन जाए. मालदीव की नई सरकार ने वहां तैनात भारतीय सैन्यकर्मियों को 15 मार्च तक देश छोड़ने के लिए कहा है. ये सभी भारतीय सैनिक वहां भारत सरकार द्वारा मालदीव की मदद के लिए चलाए जा रहे सैनिक और नागरिक कार्यवाहियों से जुड़े हुए हैं. हालांकि इन खबरों के बीच भारत और मालदीव के बीच लगातार मुलाकातें हो रही हैं.

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'मालदीव के साथ 14 जनवरी को कोर ग्रुप की मीटिंग हुई, द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा हुई. हमने भारतीय विमानों के लिए ऐसा निदान खोजने की कोशिश की जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो. भारत-मालदीव की अगली मीटिंग भारत में होगी.'

क्या चीन के चंगुल में फंस गया है मालदीव?

मालदीव की रणनैतिक स्थिति पर चीन की नज़रें गड़ी हैं. श्रीलंका को अपने कर्ज़ के जाल में फंसाकर आर्थिक गुलाम बनाने के साथ-साथ चीन मालदीव को भी जाल में फंसाना चाहता है ताकि हिंद महासागर में उसके लिए एक और महत्वपूर्ण ठिकाना बन जाए. चीन समय-समय पर मालदीव में अपनी समर्थक सरकार बनाता है जैसा उसने इस बार भी किया. चीन यहां पाकिस्तानी कट्टरपंथियों की मदद से इस्लाम के नाम पर भारत विरोधी एजेंडा चला रहा है. 
चीन ने भारत की घेराबंदी करने के लिए मालदीव सहित दूसरे देशों में स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति शुरू की थी. और ऐसा लग रहा है अब मालदीव ने तुर्किये को भी भारत विरोधी मोर्चेबंदी का हिस्सा बना लिया है. 

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