Khalil Haqqani Assassination: अफगानिस्तान के राजनीतिक और आतंकी गलियारों में हलचल मचा दी है. तालिबान सरकार के प्रमुख चेहरों में से एक और हक्कानी नेटवर्क के डिप्टी चीफ खलील हक्कानी को काबुल में मार दिया गया है.
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Khalil Haqqani Assassination: अफगानिस्तान के राजनीतिक और आतंकी गलियारों में हलचल मचा दी है. तालिबान सरकार के प्रमुख चेहरों में से एक और हक्कानी नेटवर्क के डिप्टी चीफ खलील हक्कानी को काबुल में मार दिया गया है. ये हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि तालिबान के भीतर चल रही राजनीतिक उठापटक और आतंकी संगठनों के आपसी संघर्ष का संकेत दे रही है.
कौन था खलील हक्कानी?
जब तालिबान ने अफगान सरकार को गिराकर 'इस्लामिक अमीरात' की स्थापना की थी, तब खलील हक्कानी कैमरे के सामने खुलकर आया था. वह तालिबान सरकार में शरणार्थी मामलों का मंत्री था, लेकिन उसकी असली पहचान हक्कानी नेटवर्क के डिप्टी चीफ के रूप में थी. खलील हक्कानी को अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने लंबे समय से एक खतरनाक आतंकी माना है. उस पर आतंक फैलाने और हक्कानी नेटवर्क को मजबूत करने का आरोप था.
कैसे हुई हत्या?
बुधवार शाम, खलील हक्कानी नमाज पढ़ने के लिए अपने मंत्रालय गया. उसी दौरान एक बड़ा धमाका हुआ, जिसमें उसकी जान चली गई. हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी ने इस घटना की पुष्टि की है. शुरुआती खबरों में इस हत्या के पीछे इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) का नाम आया है. ISKP पहले भी तालिबान के शीर्ष नेताओं पर हमले कर चुका है.
तालिबान के भीतर दरार?
तालिबान का मूल आधार पश्तून लड़ाके हैं, लेकिन इसमें गैर-पश्तून लड़ाके भी शामिल हैं. यह दरार समय-समय पर खुलकर सामने आती रही है. खलील हक्कानी हाल ही में पश्तून लड़ाकों को एकजुट कर रहा था, जो गैर-पश्तून गुटों के लिए चिंता का विषय बन गया था. कयास लगाए जा रहे हैं कि उसकी हत्या तालिबान के अंदरूनी संघर्ष का नतीजा हो सकती है.
क्या ISKP है जिम्मेदार?
इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) तालिबान सरकार का सबसे बड़ा दुश्मन है. ISKP ने पहले भी तालिबान के शीर्ष नेताओं को निशाना बनाया है. लेकिन खलील हक्कानी की हत्या के पीछे ISKP का हाथ है या यह तालिबान के भीतर सत्ता संघर्ष का नतीजा है, यह अब तक साफ नहीं हो सका है.
तालिबान पर बढ़ेगा दबाव
खलील हक्कानी की हत्या तालिबान के लिए बड़ा झटका है. यह घटना न सिर्फ उसके भीतर की कलह को उजागर करती है, बल्कि उसकी पकड़ कमजोर होने का भी संकेत देती है. तालिबान को अब यह साबित करना होगा कि वह अपनी सरकार और आतंकी गुटों के बीच संतुलन बनाए रख सकता है.