Turkey President Election Result: हैरान करने वाली बात यह है खराब होती इकोनॉमी और आसमान छूती महंगाई के बावजूद तुर्किये में अधिकतर लोगों ने एर्दोआन को फिर से चुना. अब सवाल यह है कि एर्दोआन चुनाव कैसे जीते और भविष्य में देश में क्या हो सकता है?
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World News: रजब तैयब एर्दोआन ने तीसरी बार तुर्किये राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की है. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी कमाल केलिचडारोग्लू को करारी मात दी. अगर वह राष्ट्रपति के तौर पर अपना पांच साल का लगातार तीसरा कार्यकाल पूरा करते हैं, तो 26 साल तक सत्ता पर बने रहने वाले नेता बन जाएंगे.
हैरान करने वाली बात यह है खराब होती इकोनॉमी और आसमान छूती महंगाई के बावजूद तुर्किये में अधिकतर लोगों ने एर्दोआन को फिर से चुना. अब सवाल यह है कि एर्दोआन चुनाव कैसे जीते और भविष्य में देश में क्या हो सकता है?
देश में चुनाव स्वतंत्र तरीके से हुए. राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवार चुनने और प्रचार करने की आजादी थी. इन दलों को हर चुनावी केंद्र में अपने प्रतिनिधि भेजने का भी अधिकार था, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वोटिंग में किसी तरह की गड़बड़ी न हो. वोटर्स को भी अपनी मर्जी से वोट देने का अधिकार था, लेकिन चुनाव निष्पक्ष नहीं थे.
क्या रहे जीत के कारण
सबसे पहले, चुनावी दौड़ में मुख्य संभावित प्रतिद्वंद्वी एकरेम इमामोग्लु को सार्वजनिक हस्तियों का अपमान करने के आरोप में दिसंबर में दो साल से अधिक कारावास की सजा सुनाई गई.
इस्तांबुल के मशहूर मेयर इमामोग्लु ने 2019 में इस्तांबुल के चुनाव में एर्दोआन के दल को हराया था. कई सर्वे ने दिखाया था कि वह राष्ट्रपति पद के चुनाव में एर्दोआन के खिलाफ आसानी से जीत सकते थे.
कुछ लोगों का कहना है कि अदालत में दर्ज किया गया मामला राजनीति से प्रेरित था. इमामोग्लु के तस्वीर से बाहर होने पर विपक्ष को सभी संभावित हाई-प्रोफाइल उम्मीदवारों में से सबसे कमजोर केलिचडारोग्लू को समर्थन देना पड़ा.
इसके अलावा एर्दोआन की पूरे देश के मीडिया पर अच्छी पकड़ है. एर्दोआन और उनके समर्थकों ने यह सुनिश्चित किया कि राष्ट्रपति को टेलीविजन पर सबसे ज्यादा कवरेज मिले.
हर जगह एर्दोआन का समर्थन
एर्दोआन को मीडिया में हवाई अड्डों, सड़कों और पुलों का निर्माण करके तुर्किये को आगे बढ़ाने वाले ग्लोबल लीडर के तौर पर पेश किया गया.उन्होंने टीवी पर दर्जनों पत्रकारों को इंटरव्यू दिया, लेकिन सारे सवाल पहले से तैयार करके रखे गए थे और एर्दोआन ने जवाबों को एक प्रोम्पटर के जरिए पढ़ा, जबकि विपक्षी उम्मीदवार केलिचडारोग्लू को टीवी पर बहुत कम कवरेज मिली और मीडिया ने उन्हें ऐसे नेता के रूप में पेश किया जो देश का शासन चालने के लिए ठीक नहीं है.
इसके अलावा वोटिंग की पेटियों से धोखाधड़ी की संभावना है. हर मतपेटी की गिनती के बाद शहरों में पुलिस और क्षेत्रीय इलाकों में सेना मतपत्रों और रिजल्ट के पेपर्स को निर्वाचन आयोग तक पहुंचाती है. पुलिस और सेना पर एर्दोआन का मजबूत कंट्रोल है. इसके बाद नतीजे सिर्फ राज्य के स्वामित्व वाली अनादोलु एजेंसी के जरिए पब्लिक किए जाते हैं, जबकि पहले कई स्वतंत्र एजेंसियां इनकी जानकारी देती थीं.
एक और बात जो राष्ट्रपति के पक्ष में रही, वह यह थी कि दो हफ्ते पहले राष्ट्रपति पद के चुनाव के पहले दौर में तीसरे नंबर पर रहे सिनन ओगान ने एर्दोआन को अपना समर्थन दिया.
एर्दोआन की जीत का एक और अहम कारण यह रहा कि एर्दोआन को रूढ़िवादी और धार्मिक मतदाता एक धार्मिक नायक और मसीहा के रूप में देखते हैं.
तुर्किये को सरकार बदलने की सख्त जरूरत थी, लेकिन ऐसा नहीं होने पर अब सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक घुटन की स्थिति और भी बदतर होने की संभावना है.
अब आगे क्या होगा!
तुर्किये के संविधान के अनुसार, यह एर्दोआन का आखिरी कार्यकाल होगा, जो समय से पहले भी खत्म हो सकता है. दरअसल, 69 साल के राष्ट्रपति को स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याएं हैं और उन्हें अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ही सत्ता अपने किसी सहायक को सौंपनी पड़ सकती है.
दूसरी संभावना यह है कि उनकी पार्टी के संभावित नेता एर्दोआन का कार्यकाल खत्म होने से पहले ही तख्तापलट करने का फैसला कर सकते हैं, ताकि वे 2028 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले जनता का समर्थन हासिल कर सकें.
भले ही अभी के लिए चुनाव के बाद तुर्किये में कुछ राजनीतिक स्थिरता पैदा हो सकती है, लेकिन देश निकट भविष्य में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल से जूझता रहेगा.
(इनपुट-द कन्वरसेशन)