Drought in Europe: यूरोप महाद्वीप को अपने ठंडे मौसम और पानी की प्रचुरता के लिए जाना जाता रहा है. लेकिन अब वही यूरोप अपने 500 साल के इतिहास के सबसे भयानक सूखे से जूझ रहा है. आखिर वहां ऐसी स्थिति क्यो आई.
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Drought in Europe: यूरोप को अच्छी आबोहवा, सुहाने और ठंडे मौसम के लिए जाना जाता है. लेकिन आंकड़ों के अनुसार यूरोप आज 500 सालों में सबसे भीषण सूखे (Drought in Europe) से जूझ रहा है. आज यूरोपियन यूनियन और ब्रिटेन की करीब 63% जमीन पर सूखे जैसी स्थिति है और वहां सूखे का अलर्ट जारी कर दिया गया है. क्षेत्रफल के लिहाज से ये इलाका भारत जितना बड़ा है. यही नहीं 46 प्रतिशत जमीन के लिए सूखे की चेतावनी जारी कर दी गई है यानी यहां भी हालात अच्छे नहीं हैं.
हंगरी 50 साल के भयानक सूखे से जूझ रहा
हंगरी का वेलेंस इलाका 50 वर्ष के सबसे भीषण सूखे (Drought in Europe) से जूझ रहा है. हंगरी से गुजरने वाली और यूरोप की बड़ी नदियों में से एक डेन्यूब नदी का जल स्तर भी तेजी से घटा है. हंगरी के कृषि मंत्रालय की तरफ़ से दी गई जानकारी के अनुसार सूखे की वजह से अब तक करीब 3 लाख हेक्टेयर मक्का और करीब दो लाख हेक्टेयर सूरजमुखी की खेती बर्बाद हो गई है. सिर्फ इन दो फसलों से ही किसानों को अरबों रुपये का नुकसान हो चुका है.
स्पेन में भी पानी के लिए तरसे लोग
स्पेन भी खतरनाक सूखे का सामना कर रहा है. पूरे स्पेन के लगभग दो तिहाई हिस्से के बंजर होने की आशंका पैदा हो गई है. अंडालूसिया रीजन में किसानों को पानी नहीं मिल पा रहा है. जबकि बार्सिलोना में ग्राउंड वाटर कम होने की वजह से पानी की सप्लाई का समय तय कर दिया गया है. पूरे यूरोपीय संघ में कृषि की पैदावार के लिहाज से स्पेन तीसरा सबसे बड़ा देश है. यहां करीब 70 प्रतिशत पानी का प्रयोग एग्रीकल्चर में ही होता है, लेकिन सूखे की वजह से यहां अनाज की पैदावार में भारी कमी आने की आशंका (Drought in Europe) भी बढ़ गई है.
इंग्लैंड में अब तक हुई केवल 10 प्रतिशत बारिश
इंग्लैंड में 1936 के बाद जुलाई के महीने में सबसे कम बारिश दर्ज की गई है. दक्षिणी इंग्लैंड में जुलाई में सिर्फ 10 प्रतिशत बारिश हुई है, जबकि पूरे यूके की बात करें तो यहां भी 20 साल बाद जुलाई के महीने में इतनी कम बारिश हुई है. यूके में जुलाई में सिर्फ 46.3mm बारिश हुई, जो औसत बारिश का महज 35 प्रतिशत है. इसी वजह से ब्रिटेन में वाटर लेवल 30 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी के अनुसार औसत से अधिक तापमान और कम बारिश होने की वजह से ब्रिटेन में अगले कुछ महीनों में खाद्यान संकट (Drought in Europe) भी पैदा हो सकता है.
इटली की सरकार ने देश में लगाई इमरजेंसी
इटली की सरकार ने तो इसी सप्ताह पांच इलाकों में वर्ष 2022 के लिए इमरजेंसी लागू कर दी है. सर्दियों में कम बारिश होने और भीषण गर्मी की वजह से इटली की डोरा बाल्टेया और पो नदी में पानी का स्तर सामान्य के मुकाबले 8 गुना कम हो चुका है. ये दोनों ही नदियां इटली की सबसे लंबी नदियां हैं और इनका पानी लाखों लोगों की प्यास बुझाने के साथ हजारों एकड़ जमीन की सिंचाई के लिए भी इस्तेमाल होता है.
जर्मनी में भी हालात अलग नहीं हैं. जर्मनी में राइन नदी में पानी कम होने की वजह से वहां बड़े मालवाहक जहाज नहीं चल पा रहे हैं. सिर्फ 25 प्रतिशत जहाज ही काम कर रहे हैं. इसके अतिरिक्त वहां सिंचाई के लिए पानी की कमी (Drought in Europe) भी देखी जा रही है.
जर्मनी-फ्रांस में भी खराब हैं हालात
फ्रांस के मौसम विभाग ने वहां एक बार फिर तापमान के 40 डिग्री सेल्सियस के पार जाने का अनुमान जताया है. इसका असर भी दिख रहा है. फ्रांस की नदियां सूख रही हैं. जिन नदियों में कभी नावें चलती थीं और सैलानियों की भीड़ नजर आती थी. उन नदियों में पानी की एक बूंद तक नहीं बची है और नावें रेत में धंस गई हैं.
यूरोपीय कमीशन साइंस सर्विस के अनुसार यूरोपीय संघ में मक्का, सूरजमुखी और सोयाबीन समेत कई दूसरी फसलों की पैदावार में 10 प्रतिशत तक की गिरावट देखने को मिल सकती है और ये पहले ही महंगाई से जूझ रही दुनिया के लिए बहुत बुरी खबर साबित हो सकती है.
मानवता के लिए बढ़ रहा है खतरा
डराने वाली ये तस्वीरें हमें बताती हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेंट चेंज सिर्फ शब्द नहीं हैं, ये पूरी मानवता के लिए खतरा हैं. ये खतरा बेहद करीब है. अगर आज हम सावधान नहीं हुए तो न तो हमारे पास पीने के लिए पानी होगा और न ही साफ हवा होगी. ये खतरा सिर्फ भारत, पाकिस्तान, चीन या अफ्रीका के देशों के लिए नहीं है. ये खतरा पूरी दुनिया पर है और आज यूरोप इसे अच्छी तरह मसहूस कर रहा है.
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