DNA With Sudhir Chaudhary: क्यों बढ़ रहा है दिमाग पर बोझ? अब ऐप रखेंगे सब कुछ याद
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DNA With Sudhir Chaudhary: क्यों बढ़ रहा है दिमाग पर बोझ? अब ऐप रखेंगे सब कुछ याद

DNA With Sudhir Chaudhary: कुछ मोबाइल ऐप्स ठीक आपके मस्तिष्क की तरह ही काम करते हैं और आपके असली मस्तिष्क पर जो बोझ बढ़ता जा रहा है, उसे भी कम करते हैं.

DNA With Sudhir Chaudhary: क्यों बढ़ रहा है दिमाग पर बोझ? अब ऐप रखेंगे सब कुछ याद

DNA With Sudhir Chaudhary: हम आपको ये बताएंगे कि कैसे आपके दिमाग पर अब पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बोझ पड़ने लगा है. जिसकी वजह से आपका दिमाग ठीक उसी तरह से सुस्त होता जा रहा है, जैसे Memory Drive फुल होने पर आपका Computer होता है. आज आपका दिमाग मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के जरिए बड़ी मात्रा में Data को प्रोसेस कर रहा है.

दिमाग ने हाथ खड़े कर दिए

आज आप सोशल मीडिया के जरिए हजारों लोगों से जुड़े हुए हैं, हर रोज आपको सैकड़ों Messages आते हैं, हर रोज कई Photos और Videos आपको भेजे जाते हैं, हर Gadget में आपका अलग Password लगा हुआ है और हर रोज आपके पास अन्गिनत Mails आते हैं, जिसकी वजह से अब लोगों के दिमाग ने हाथ खड़े कर दिए हैं. और यही कारण है कि पूरी दुनिया में बहतु बड़ी संख्या में लोग अब Second Brain Apps का इस्तेमाल कर रहा हैं. यानी वो Apps जो आपके लिए इस पूरे डेटा को प्रोसेस करते हैं, आपके पासवर्ड को याद रखते हैं, आपकी Photo और Video Library को सम्भाल कर रखते हैं ताकि आपको अब कुछ याद ना रखना पड़े.

क्या हैं ये Second Brain Apps

Second Brain Apps को आप नए युग का डिजिटल ब्रेन यानी एक ऐसा दिमाग भी कह सकते हैं, जिसमें आप रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी तमाम जानकारियां, विचार, अनुभव, तस्वीरें, पासवर्ड, शॉपिंग लिस्ट और किसी से जुड़ी यादें भी जमा करके रख सकते हैं. यानी ये मोबाइल ऐप्स ठीक आपके मस्तिष्क की तरह ही काम करते हैं और आपके असली मस्तिष्क पर जो बोझ बढ़ता जा रहा है, उसे भी कम करते हैं.

2 करोड़ लोगों ने किया इस्तेमाल

आप अक्सर लोगों को ये कहते हुए सुनते होंगे कि वो आजकल इतना व्यस्त हो गए हैं कि उनका दिमाग कुछ याद ही नहीं रखता. तो ये मोबाइल ऐप्स ऐसे लोगों के लिए ही बनाए गए हैं और पूरी दुनिया में इनका तेजी से इस्तेमाल बढ़ रहा है. इस समय दुनियाभर में 2 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने मस्तिष्क का बोझ कम करने के लिए इन ऐप्स का इस्तेमाल किया है.

पुराने विचारों को स्टोर करने की जगह नहीं

आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में लोग अलग-अलग घटनाओं और चीजों के प्रति ज्यादा सचेत यानी Attentive नहीं होते. जिसकी वजह से वो चीजें को भूलने लगते हैं और कहते हैं कि उस दिन तो वो बात मेरे दिमाग में थी. लेकिन आज मैं वो बात याद नहीं कर पा रहा हूं. ऐसा इसलिए होता है कि क्योंकि हमारा दिमाग पुराने विचारों को स्टोर करने की जगह नहीं है. लेकिन जब हम ऐसा करते हैं तो हमारा दिमाग थकने भी लगता है और उस पर बोझ भी काफी बढ़ जाता है.

डिजिटल ब्रेन पर ट्रांसफर हो सकता है बोझ 

इस समय पूरी दुनिया में जितने भी Second Brain Apps का इस्तेमाल हो रहा है, उनमें से अधिकतर मुफ्त हैं. कुछ ऐप्स ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल करने के लिए आपको महीने में ज्यादा से ज्यादा 600 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. ये इनकी अधिकतम Subscription Fees होती है. अब आपको ये बताते हैं कि, कैसे आपके दिमाग का अतिरिक्त बोझ इन डिजिटल ब्रेन पर ट्रांसफर हो सकता है.

कैसे काम करते हैं ये ऐप्स 

तो जैसे ही आपको लगता है कि आप कोई जानकारी या कोई नया विचार स्टोर करके रखना चाहते हैं या आप कोई किताब पढ़ रहे हैं और उसमें आपको कोई ऐसी चीज मिली है, जो भविष्य में भी आपके काम आ सकती है या किसी ने आपको कोई बात बताई है या कोई काम करने के लिए कहा है. या आपको महीने के आखिर में क्या शॉपिंग करनी है, उसकी पूरी लिस्ट स्टोर करके रखनी है या आप कुछ Photos किसी जानकारी के साथ सुरक्षित रखना चाहते हैं तो आप इन ऐप्स में वो जानकारी फीड कर सकते हैं. यानी आपको बस ये ऐप खोलना है, उसमें वो जानकारी लिखनी है या कोई तस्वीर अपलोड करनी है और फिर वो जानकारी हमेशा के लिए आपके इस डिजिटल मस्तिष्क में स्टोर हो जाएगी. ये तब तक डिलीट नहीं होगी, जब तक कि आप खुद ऐसा नहीं करना चाहते. इससे आपके दिमाग का बोझ कम हो जाएगा और आपके पास डिजिटल ब्रेन में पुरानी यादों और बातों का एक क्लासिक कलेक्शन होगा.

पुराने जमाने में ऐप्स की जगह थी मोटी फाइल्स 

पहले के जमाने में ये काम मोटी मोटी फाइल्स के जरिए होता था. उस समय सरकारी विभागों और दफ्तरों में फाइल्स में चीजें नोट करके रखी जाती थीं और जब कोई पुराना केस आता था तो इन फाइल्स को खोल कर देख जाता था. हालांकि तब इन फाइल्स को ढूंढना बड़ा मुश्किल काम होता था. इसके अलावा पहले लोग अपनी पुरानी तस्वीरें घर में बिस्तर के नीचे या किसी दूसरी जगह पर रख देते थे. जब उन्हें उनकी जरूरत पड़ती थी तो वो उसे घंटों तक ढूंढते रहते थे और कई बार दिमाग पर जोर डालने के बाद भी उन्हें याद नहीं आता था कि उन्होंने वो तस्वीर कहां रखी है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए ये Second Brain Apps बनाए गए हैं. हालांकि बड़ा सवाल यही है कि, क्या इंसानों को इस तरह के ऐप्स की वाकई में जरूरत है और क्या ये डिजिटल ब्रेन, Human Brain की जगह ले सकते हैं. तो इसका जवाब है नहीं.

मनुष्य का मस्तिष्क नहीं किसी एप्स से कम 

हमें Technology के सामने इंसानों के दिमाग को कम करके नहीं आंकना चाहिए. क्योंकि ऐसा नहीं है कि हमारा दिमाग ज्यादा बातों को स्टोर करके नहीं रख सकता. हमारे दिमाग में 2.5 Petabytes की जानकारियां स्टोर हो सकती हैं. यानी हमारे दिमाग में इतना स्पेस है कि, इसमें 30 लाख घंटे की एक फिल्म स्टोर हो सकती है. तो फिर इस तरह के ऐप्स की लोगों को जरूरत क्यों पड़ रही है? इसका जवाब है, आजकल की भागदौड़ भरी जिन्दगी, आज के जमाने में लोग इतना व्यस्त हो चुके हैं कि वो अपने दिमाग पर एक साथ बहुत सारा बोझ डाल देते हैं. वो जीवन में आनंद नहीं केवल आगे की सोचना चाहते हैं. जब लोग हमेशा चिंताओं से घिरे रहते हैं और ठहराव को महत्व नहीं देते तो हमारा दिमाग थकने लगता है और चीजों को भूलने लगता है. इसलिए इस तरह के ऐप्स काम के तो हैं. लेकिन इनके सामने अपने असली मस्तिष्क को कम करके आंकना भी सही नहीं है.

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