Online Fraud: स्कैमर्स लोगों को ठगने के लिए नए-नए तरीके इजाद कर रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 76 हजार डिजाइनर कपड़ों की नकली वेबसाइट्स बनाकर लोगों को ठगा गया है. जालसजों ने करीब 8 लाख से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बनाया.
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Online Scam: ऑनलाइन धोखाधड़ी तेजी से बढ़ रही है. स्कैमर्स लोगों को ठगने के लिए नए-नए तरीके इजाद कर रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 76 हजार डिजाइनर कपड़ों की नकली वेबसाइट्स बनाकर लोगों को ठगा गया है. जालसजों ने करीब 8 लाख से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बनाया. ये जालसाज एक बड़े और ऑर्गनाइज्ड गिरोह की तरह काम करते थे.
कहां से हो रहा था स्कैम?
रिपोर्ट के मुताबिक ये जालसाज चीन के फुजियान प्रांत से थे. उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए कई इंटरनेट पते (आईपी एड्रेस) चीन के ही थे, खासकर फुजियान के शहर पुटियान और फूझोउ के थे. इन जालसाजों ने प्रोग्रामर और जानकारी चुराने वाले लोगों को काम पर रखा था, जिनको वेतन चीन के बैंकों के जरिए दिया जाता था. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि इन लोगों के लिए तीन तरह के नौकरी संबंधी कॉन्ट्रैक्ट भी बरामद हुए हैं, जिनमें नियोक्ता के तौर पर फूझोउ झोंगकिंग नेटवर्क टेक्नोलॉजी कंपनी लिमिटेड का नाम लिखा था. जर्मनी की एक साइबर सुरक्षा कंपनी ने इस जालसाज गिरोह का पर्दाफाश किया है.
जालसाज कैसे लोगों को ठगते थे?
ये जालसाज बड़े ब्रांड्स जैसे डायर, नाइकी, लैकोस्टे, ह्यूगो बॉस, वर्सेस और प्राडा के नकली ऑनलाइन स्टोर बनाते थे. पहली नकली वेबसाइट 2015 में बनाई गई थी. ये वेबसाइट्स अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश, स्वीडिश और इटैलियन जैसी कई भाषाओं में थीं. रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले तीन सालों में इन वेबसाइट्स पर 10 लाख से भी ज्यादा ऑर्डर आए.
भले ही इन वेबसाइट्स का असली ब्रांड्स से कोई लेना-देना नहीं था, फिर भी ये सस्ते दामों पर ब्रांडेड सामान बेचने का दावा करती थीं. इससे लोग लालच में आकर अपना निजी जानकारी और बैंक डिटेल्स दे देते थे. ज्यादातर मामलों में लोगों को वो सामान नहीं मिला जिसका उन्होंने ऑर्डर दिया था. अनुमान है कि इन वेबसाइट्स पर किए गए सभी पेमेंट सफल नहीं हुए होंगे, लेकिन फिर भी इस ग्रुप ने करीब 50 मिलियन यूरो (लगभग 45 लाख रुपये) कमा लिए.
कहां-कहां लोग हुए प्रभावित?
अनुमान के अनुसार, इस जालसाजी से तकरीबन 8 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. इनमें से ज्यादातर लोग अमेरिका और यूरोप से हैं. इन लोगों ने इन वेबसाइट्स के साथ अपना ईमेल पता, डेबिट और क्रेडिट कार्ड की जानकारी, कार्ड पर लिखे तीन अंकों का सिक्योरिटी नंबर, अपना नाम, फोन नंबर, ईमेल और पते की जानकारी शेयर की थी.