कोई इन माओवादियों को तो समझाओ
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कोई इन माओवादियों को तो समझाओ

कहते हैं न कि जिसपर बीतती है उसका दर्द वही बयां कर सकता है. जरा सोचिए, मंडप सजा हो, दुल्हन वरमाला लेकर अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार कर रही हो, विधवा मां को भी उस पल का इंतजार हो कि पति ने दुनिया से विदा होते समय जो जिम्मेदारी सौंपी थी उससे आज वह मुक्त हो जाएगी और इतने वर पक्ष की ओर से संदेशा आए कि बारात नहीं आ सकती है तो इस हालात में उस परिवार पर क्या बीत रही होगी जिसके घर से डोली उठने वाली थी.

प्रवीण कुमार

कहते हैं न कि जिसपर बीतती है उसका दर्द वही बयां कर सकता है. जरा सोचिए, मंडप सजा हो, दुल्हन वरमाला लेकर अपने सपनों के राजकुमार का इंतजार कर रही हो, विधवा मां को भी उस पल का इंतजार हो कि पति ने दुनिया से विदा होते समय जो जिम्मेदारी सौंपी थी उससे आज वह मुक्त हो जाएगी और इतने में वर पक्ष की ओर से संदेशा आए कि बारात नहीं आ सकती है, क्योंकि माओवादियों ने उन्हें बारात लेकर जाने पर जान से मारने की धमकी दी है तो इस हालात में उस परिवार पर क्या बीत रही होगी जिसके घर से डोली उठने वाली थी. यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है. यह हकीकत है झारखंड राज्य स्थित गुमला जिले में स्थित गांव लौकी की जहां पर नक्सल गुटों के वर्चस्व की जंग में एक गुट ने इलाके में फरमान सुना दिया कि लौकी गांव में कोई बारात नहीं आएगी. यदि ऐसा हुआ तो खून-खराबा होगा. इसी फरमान से बीते तीन जून को एक बेटी की शादी नहीं हो सकी.

 

मालूम हो कि गांव लौकी में नक्सलवादियों के बीच वर्चस्व की जंग चल रही है. पीएलएफआई के मंगल नोगेशिया की हत्या करने के लिए कई बार माओवादी लौकी व जगमई गांव में हमला कर चुके हैं. मई महीने की 14 तारीख को माओवादियों ने गांव में हमला कर दूल्हा समेत पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसको लेकर आसपास के कई गांवों में लोग दहशत में जी रहे हैं. इन परिस्थितियों में सवाल यह उठता है कि आखिर इन नक्सलियों को कोई तो समझाए कि वर्चस्व की इस जंग में आम आदमी को क्यों घसीट रहे हो. नक्सलवादी आंदोलन के नेता उपदेश तो बड़े-बड़े देते हैं कि हमारी लड़ाई सरकार से है और निशाने पर सुरक्षा बल के जवान हैं, लेकिन लौकी प्रकरण से क्या समझा जाए.

 

मैं कहता हूं कि आजकल देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ योग गुरु बाबा रामदेव और सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अण्णा हजारे लगातार अपने धरना, प्रदर्षन और अनशन से सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि इसके लिए कानून बनाया जाए तो क्या इन नक्सलियों की हिंसक व समाजविरोधी गतिविधियों को मिटाने के लिए बाबा रामदेव और अण्णा जैसे नेताओं को आगे नहीं आना चाहिए. इसमें दो राय नहीं कि भ्रष्टाचार मिटाना अहम मुद्दा है, लेकिन यह एक लंबी लड़ाई है. इस लड़ाई के बीच देश के अंदर जो छोटे-छोटे युद्ध चल रहे हैं उसे खत्म करना ज्यादा अहम है.

 

दरअसल हुआ यह है कि नक्सल आंदोलन को खत्म करने के लिए राज्य व केंद्र सरकारों ने जिस तरह का रूख अख्तियार किया है वह हिंसक आंदोलन के रूप में विकसित हो गया. ऐसे में कानूनी तरीके से तो इसे दबाना संभव नहीं है. इसका समाधान तो बातचीत ही है और इसके लिए अण्णा जैसा कोई गांधीवादी नेता को आगे आना होगा. समय रहते इन माओवादियों को न समझाया गया तो ये माओवादी लौकी गांव की तरह अन्य गांवों में भी अपना फरमान सुनाते रहेंगे और लोग उसको मानने को विवश होते रहेंगे जो सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देगा.

 

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