बचपन से लेकर बड़े होने तक हम हर तरीकों से कुछ न कुछ सीखते हैं. गेम्स भी उन्हीं में शामिल हैं. खेल कई तरह के होते हैं पर जिनसे हम सबसे ज्यादा जुड़ा हुआ महसूस करते हैं वो बचपन के खेल होते हैं. इन गेम्स से हमारी कई तरह की यादें जुड़ी होती हैं. ऐसे ही जिन लोगों का बचपन गांव में बीता, उन्होने ये खेल जरूर खेले होंगे. आइए जानते हैं गांव के वो खेल, जो गांव की गलियों में ही छूट गए.
यह खेल बचपन के फेवरेट खेलों में से एक है. इसे खेलने के लिए कम से कम दो लोगों की जरूरत पड़ती है. इसमें लकड़ी का छोटा सा टूकड़ा (गिल्ली) और डंडे का इस्तेमाल होता है. इसमें गिल्ली के सिरे पर डंडे से मारते हैं, जिससे गिल्ली हवा में उछलती है और इसी समय हवें में गिल्ले पर दुबारा मारते है. जिसकी जितनी दूर जाती है, उसकी जीत होती है.
इस खेल को आज भी गांव के बच्चे खूब मजे से खेलते हैं. हर जगह के अपने नियम हैं. लेकिन खेलने का तरीका वही है, उंगली की मदद से एक गोली को दूसरे गोली पर निशाना लगाना.
बरफ पानी तो अपने बचपन में लगभग सभी ने खेला होगा. इस खेल में दो से अधिक लोगों की जरूरत पड़ती है. एक खिलाड़ी बरफ बन जाता है और दूसरों को छूकर बरफ (स्थिर) कर देता है. बरफ किए गए खिलाड़ी को बाकी लोग पानी कहकर फ्री कर सकते हैं.
इस खेल में एक खिलाड़ी के आंख पर पट्टी बांध देते हैं और वह बाकी खिलाड़ियों को खोजने और छूने की कोशिश करता है. दूसरे उसे छूने से बचते हुए इधर-उधर भागते हैं.
दोपहर में जब घर के बड़े सोये रहते हैं तो बच्चे अपने मनोरंजन के लिए ये गेम खेलते हैं. इसमें जमीन पर चॉक, इट के टूकड़े या पत्थर से छोटे आकार के डब्बें और लाइन बनाते हैं. फिर छोटे से किसी पत्थर के टूकड़े को इन डिब्बों में डालते हैं. जिसको बिना लाइन को छुए उठाना होता है.
इसमें अलग तरह के खेल शामिल हैं जहां बच्चे मिट्टा का यूज करके खूब मजे से खेलते हैं, जैसे मिट्टी के खिल्लौने बनाना, मिट्टी के घर बनाना, या मिट्टी के ढेलों से खेलना. यह खेल बच्चों के बीच काफी पसंद किए जाने वाले खेल हैं और पारंपरिक भारतीय खेल संस्कृति का बेहद जरूरी हिस्सा हैं. लेकिन आजकल का माहौल देखकर लगता है कि ये गेम्स हम शहर आकर भूल गए.
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