Crystal Ball: ज्वालामुखी आमतौर पर उन क्षेत्रों में बनते हैं जहां पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेट्स आपस में टकराती या अलग होती हैं. जब टेक्टोनिक प्लेट्स अलग होती हैं, तो मैग्मा को सतह पर आने का रास्ता मिल जाता है. इसी हलचल के कारण ज्वालामुखी विस्फोट होता है. एक क्रिस्टल की बदौलत ऐसे धमाके का पहले से अंदाजा लगाना मुमकिन है.
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Volcano: ज्वालामुखी का नाम आते ही जेहन में सैकड़ों फीट ऊपर उठती आग की लपटें, धधकता लावा और धुंआ आता है. ज्वालामुखी के आसपास अगर इंसानी बस्ती है तो तबाही तय है. ज्वालामुखी कब फटेगा, इसका कोई सटीक अनुमान नहीं है. लेकिन अगर इसका सही अनुमान लग जाए तो तबाही को रोका जा सकता है.
अब जरा सोचिए कि आपके पास एक ऐसा क्रिस्टल है जो यह बता सके कि ज्वालामुखी अगली बार कब फटेगा? दुनिया भर के ज्वालामुखियों के पास रहने वाले लाखों लोगों के लिए यह एक बेहद उपयोगी उपकरण हो सकता है. वैज्ञानिकों ने पाया है कि कुछ क्रिस्टल वास्तव में ज्वालामुखी विस्फोटों की भविष्यवाणी करने में मदद कर सकते हैं. ये क्रिस्टल पृथ्वी के अंदर पिघली हुई चट्टान से बनते हैं और सतह की ओर आते समय आकार लेते हैं.
इन क्रिस्टल्स पर रिसर्च से ज्वालामुखी के पिछले विस्फोटों का कारण, स्थान और समय जैसी जानकारियां पता की जा सकती हैं. यह जानकारी हमें ज्वालामुखियों की भविष्यवाणी करने और निगरानी के लिए अहम सुराग देती है. ज्वालामुखियों के अंदर बनने वाले 'क्लिनोपायरॉक्सीन' नामक क्रिस्टल खास जानकारी रखते हैं जो विस्फोट के पहले के घटनाक्रमों को समझने में मदद करते हैं.
मैग्मा, जो कि ज्वालामुखी विस्फोटों का कारण बनता है, पृथ्वी की गहराई में होता है. जब यह सतह की ओर बढ़ता है तो ठंडा होकर क्रिस्टल बनाता है. यह क्रिस्टल ज्वालामुखी के विस्फोट के दौरान बाहर आ जाते हैं. इन क्रिस्टलों के अंदर कई परतें होती हैं, जो बिल्कुल पेड़ के छल्लों की तरह होती हैं, और ये परतें ज्वालामुखी के अंदर हुए बदलावों का रिकॉर्ड रखती हैं.
क्लिनोपायरॉक्सीन क्रिस्टल में दर्ज जानकारी से हमें पता चलता है कि ज्वालामुखी के अंदर क्या घटनाएं हो रही थीं, विशेषकर विस्फोट से पहले. यह जानकारी ज्वालामुखियों की सतह के नीचे हो रही गतिविधियों को समझने में मदद करती है, जिससे वैज्ञानिक अनुमान लगा सकते हैं कि अगला विस्फोट कब हो सकता है.
इन क्रिस्टलों के रासायनिक संरचना की जांच के लिए वैज्ञानिक अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं. बाल जितनी पतली लेजर बीम या विशाल कण त्वरक (सिंक्रोट्रॉन) जैसी तकनीकें इन क्रिस्टलों के रासायनिक घटकों की जांच करती हैं. इस सूक्ष्म-स्तरीय विश्लेषण से वैज्ञानिक ज्वालामुखी के अंदर की संरचना को समझने और भविष्य के विस्फोटों का अनुमान लगाने में सक्षम होते हैं.
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