Somwar Upay: भगवान शिव की कृपा से दूर होगा हर कष्ट और संकट, आज विधिपूर्वक करना होगा ये काम
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Somwar Upay: भगवान शिव की कृपा से दूर होगा हर कष्ट और संकट, आज विधिपूर्वक करना होगा ये काम

Monday Remedies: कहते हैं कि भगवान शिव भक्तों की सच्ची भक्ति और पूजा-पाठ से बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं. इसी कारण से उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है. सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है. इस दिन पूजा के साथ-साथ अगर शिव चालीसा का पाठ भी किया जाए, तो जीवन के सभी संकट दूर होते हैं. 

 

फोटो फाइल

Shiv Chalisa: भगवान शिव को भोलेनाथ, भोलेशंकर, महादेव कई नामों से जाना जाता है. कहते हैं कि भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उन्हें भोलेनाथ के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव की पूजा के लिए समोवार का दिन सबसे उत्तम माना गया है. कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव की पूजा-आराधना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सोमवार के दिन अगर भगवान शिव की पूजा-पाठ के साथ शिव चालीसा का पाठ विधिपूर्वक किया जाए, तो जीवन में आने वाली सभी परेशानियों को दूर किया जा सकता है. कहते हैं कि शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं. आइए जानते हैं शिव चालीसा पाठ की सही विधि.   

यूं करें शिव चालीसा का पाठ  

- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शिव चालीसा का पाठ करने के लिए व्यक्ति को प्रातः काल उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण करने चाहिए. 

- इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके साफ आसन बिछाएं और उस पर बैठ जाएं. 

- पूजा में धूप, दीप, सफेद चंदन, माला और सफेद फूल रखें. साथ ही उन्हें भोग लगाने के लिए मिश्री का प्रसाद बनाएं. 

- शिव चालीसा शुरू करने से पहले गाय के घी का दीपक जलाएं. और एक लोटे में शुद्ध जल भरकर रखें. 

- बता दें कि शवि चालीसा का पाठ 3 बार किया जाता है. साथ ही, पढ़ते समय तो तेज बोलें, ताकि घर के अन्य लोग भी इसे सुन सकें. 

- पाठ पूर्ण होने के बाद लोटे में भरे जल को घर में छिड़काव करें. और थोड़ा जल आमचन करें. 

- भगवान शिव को मिश्री का भोग लगाएं और प्रसाद बच्चों में बांटें. 

शिव चालीसा पाठ 

||दोहा||

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥

|चौपाई

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥

मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनन्त अविनाशी।करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।संकट ते मोहि आन उबारो॥

मात-पिता भ्राता सब होई।संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥

ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे।ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥

कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

|| दोहा ||
बहन करौ तुम शीलवश, निज जनकौ सब भार।
गनौ न अघ, अघ-जाति कछु, सब विधि करो सँभार

तुम्हरो शील स्वभाव लखि, जो न शरण तव होय।
तेहि सम कुटिल कुबुद्धि जन, नहिं कुभाग्य जन कोय

दीन-हीन अति मलिन मति, मैं अघ-ओघ अपार।
कृपा-अनल प्रगटौ तुरत, करो पाप सब छार॥

कृपा सुधा बरसाय पुनि, शीतल करो पवित्र।
राखो पदकमलनि सदा, हे कुपात्र के मित्र॥

।। इति श्री शिव चालीसा समाप्त ।।

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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