Elephant-Crocodile: एक बार गजराज, हथिनियों और बच्चों के साथ वन में घूम रहे थे. घूमते-घूमते जब उन्हें प्यास लगी तो वह सब एक सरोवर के पास पहुंचे. सभी हाथियों ने जल पिया, स्नान किया और खूब खेले. उसी सरोवर में हूहू नाम का गंधर्व महर्षि देवल के शाप से प्रभावित होकर घड़ियाल बना रह रहा था.
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Battle of Elephant-Crocodile: प्राचीन काल में द्रविड़ देश में पाण्ड्य राज्य के राजा इन्द्रद्युम्न एक बार कुलाचल पर्वत पर मौन होकर श्री विष्णु हरि का ध्यान कर रहे थे, तभी वहां पर अगस्त्य मुनि पहुंचे, किंतु पूजा में लीन होने के कारण राजा ने उठकर उन्हें प्रणाम नहीं किया. राजा की इस हरकत पर क्रोधित होकर मुनि ने राजा को शाप देते हुए कहा, तुमने एक ब्राह्मण का अपमान किया है, अतः तुम्हें हाथी की योनि प्राप्त हो. उनके शाप के प्रभाव से राजा इन्द्रद्युम्न क्षीरसागर के मध्य त्रिकूट पर्वत पर हाथी के रूप में जन्मे. वह इतने अधिक बलवान थे कि उनके निकलने पर भय के कारण जंगल के सभी शेर और चीते गुफाओं में छिप जाते थे.
एक बार गजराज, हथिनियों और बच्चों के साथ वन में घूम रहे थे. घूमते-घूमते जब उन्हें प्यास लगी तो वह सब एक सरोवर के पास पहुंचे. सभी हाथियों ने जल पिया, स्नान किया और खूब खेले. उसी सरोवर में हूहू नाम का गंधर्व महर्षि देवल के शाप से प्रभावित होकर घड़ियाल बना रह रहा था. वह चुपके से गजराज के पास आया और पैर पकड़कर जल में खींचने लगा. गजराज बचने की कोशिश में किनारे ले आता. दोनों के बीच खींचतान मच गयी.
इस खींचतान में कुछ देर में ही गजराज थक गये, उन्हें लगा कि अब डूब जाएंगे, तब उन्होंने भगवान की शरण लेने का निश्चय किया. पूर्व जन्म की आराधना के प्रभाव से उनकी बुद्धि भगवान में लगी हुई थी. तभी सरोवर में एक कमल पुष्प तोड़कर सूंड़ में उठाकर वे भगवान की स्तुति करने लगे. देवता भी उनके स्वर में स्वर मिलाकर भगवान् का ध्यान करने लगे. भगवान् गरुड़ पर बैठे वहा प्रकट हुए तो उन्हें देख गजराज ने कमल का पुष्प उनकी ओर उछालकर कहा, हे नारायण! आपको नमस्कार है. अपने भक्त की करुणामयी पुकार सुनते ही भगवान् विष्णु ने एक हाथ से गजराज को घड़ियाल सहित सरोवर से बाहर निकाल पृथ्वी पर रख दिया और अपने चक्र से उसका मुंह फाड़कर गजराज को छुड़ा लिया.
भगवान के चक्र से मरकर घड़ियाल भी ऋषि के शाप से मुक्त होकर फिर गंधर्व हो गया. उसने भगवान् की स्तुति की और उनकी आज्ञा लेकर अपने लोक को चला गया. गजराज को भगवान का स्पर्श मिला तो उनके अज्ञान का बंधन भी खुल गया. हाथी का शरीर सुंदर दिव्य चतुर्भुज रूप में बदल गया. राजा इन्द्रद्युम्न भी भगवान के निज धाम में पहुंच गए और श्राप से मुक्त हो गए.
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