Lord Sun: कश्यप ऋषि की कई पत्नियां थीं, जिनमें से एक थीं विनता. सभी के बच्चे हुए तो अपनी सौत को बच्चा खिलाते देखकर विनता के मन में भी बच्चा खिलाने की जिज्ञासा हुई और उसने अपने अविकसित अंडे को फोड़ दिया, जिससे एक विकलांग शिशु का जन्म हुआ.
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Bhagwan Surya: जिसमें सूर्य देव की मूर्ति स्थापित है, जो कि अरूणादिय के नाम से प्रख्यात है. यह मंदिर काशी के पाटन दरवाजा मोहल्ले में त्रिलोचन मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है. इसके दर्शन मात्र से दुखियों के दुख-दर्द दूर हो जाते हैं. जानते हैं इसके पीछे की रोचक कथा.
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, कश्यप ऋषि की कई पत्नियां थीं, जिनमें से एक थीं विनता. सभी के बच्चे हुए तो अपनी सौत को बच्चा खिलाते देखकर विनता के मन में भी बच्चा खिलाने की जिज्ञासा हुई और उसने अपने अविकसित अंडे को फोड़ दिया, जिससे एक विकलांग शिशु का जन्म हुआ. उस शिशु के जांघ नहीं थी और अंडा फोड़ देने से वह अपनी मां के प्रति क्रोध से लाल हो गया, जिसके कारण अरुण कहलाया.
कुछ बड़ा होने पर अरुण ने भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए काशी में कठोर तपस्या की. केवल जल और हवा ग्रहण करते हुए उनकी तपस्या के तेज से तीनों लोक कांपने लगे और इंद्र का सिंहासन भी हिल उठा. सभी देवताओं ने भगवान से प्रार्थना की कि आप लोक कल्याण के लिए शीघ्र ही अरुण को दर्शन दे और उसकी आकांक्षा पूरी करें.
इस पर भगवान सूर्य विनता के पुत्र अरुण के समक्ष प्रकट हुए और आशीर्वाद देते हुए कहा, पुत्र तुम्हारा कल्याण हो. आज से काशी में तुम्हारे द्वारा बनाई गई मेरी मूर्ति अरूणादित्य के नाम से प्रसिद्ध होगी. भगवान सूर्य ने और भी कई वरदान देने के साथ कहा कि अब से तुम जगत के हित के लिए अंधकार का नाश करते हुए सदैव मेरे रथ पर सारथी के स्थान पर बैठा करोगे. जो मनुष्य काशी में विश्वेश्वर से उत्तर में तुम्हारे द्वारा स्थापित अरूणादित्य मूर्ति की पूजा-अर्चना करेंगे, दुख और दरिद्र कभी उनके निकट नहीं आएंगे. वह कभी भी किसी प्रकार की व्याधियों से ग्रसित नहीं होंगे. जो लोग प्रातःकाल उठकर सूर्य सहित अरुण को नमस्कार करेगा, उसे दुख और भय स्पर्श भी नहीं कर पाएगा.