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यमुना का झाग देख लिया अब बिहार की वो नदी जानिए जिसका पानी छूना भी महापाप!

Karmanasa river kaha par hai: क्‍या आपने एक ऐसी नदी के बारे में सुना है, जिसके पानी को छूना भी महापाप माना जाता है. यह नदी यूपी और बिहार में बहती है और इसे ना छूने के पीछे एक सदियों पुरानी एक वजह है. 

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Karmanasa river Story: छठ महापर्व करीब है और इस समय यमुना में मोटे जहरीले झाग का मुद्दा गहराया हुआ है. हर साल की तरह इस साल भी प्रदूषण के कारण यमुना में झाग की मोटी परत बन गई है. छठ पर्व पर नदी के पवित्र जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है.

 

पानी भी नहीं छूते कर्मनासा नदी का

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पानी भी नहीं छूते कर्मनासा नदी का

हिंदू धर्म में नदियों को विशेष स्‍नान दिया गया है. उन्‍हें जीवनदायिनी मां मानते हुए उनकी पूजा की जाती है. खास मौकों पर नदी में स्‍नान किया जाता है. लेकिन हमारे देश में एक नदी ऐसी भी है जिसमें नहाना तो दूर लोग इसके पानी को छूना भी पाप समझते हैं. इस नदी का नाम कर्मनासा नदी है और यह उत्‍तर प्रदेश व बिहार में बहती है. इसे कर्मनाशा नदी भी कहते हैं.

कर्मनाशा नदी को अपवित्र मानने की वजह

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कर्मनाशा नदी को अपवित्र मानने की वजह

कर्मनाशा नदी के शापित होने और उसे अपवित्र मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इसके अनुसार राजा हरिशचंद्र के पिता सत्यव्रत ने एक बार अपने गुरु वशिष्ठ से सशरीर स्वर्ग में जाने की इच्छा जताई. लेकिन गुरु ने इनकार कर दिया. फिर राजा सत्‍यव्रत ने गुरु विश्वामित्र से भी यही आग्रह किया. वशिष्ठ से शत्रुता के कारण विश्वामित्र ने अपने तप के बल पर सत्यव्रत को सशरीर स्वर्ग में भेज दिया. इसे देखकर इंद्रदेव क्रोधित हो गये और राजा का सिर नीचे की ओर करके धरती पर भेज दिया.

लार से बनी है नदी

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लार से बनी है नदी

विश्वामित्र ने अपने तप से राजा को स्वर्ग और धरती के बीच रोक दिया और फिर देवताओं से युद्ध किया. इस दौरान राजा सत्‍यव्रत आसमान में उल्‍टे लटके रहे, जिससे उनके मुंह से लार गिरने लगी. यही लार बहने से नदी बन गई. वहीं गुरु वशिष्‍ठ ने राजा सत्‍यव्रत को उनकी धृष्‍टता के कारण चांडाल होने का श्राप दे दिया. माना जाता है कि लार से नदी बनने और राजा को मिले श्राप के कारण इसे शापित माना गया और अब तक लोग इस नदी को शापित ही मानते हैं.

 

बिगड़ जाते हैं बनते काम

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बिगड़ जाते हैं बनते काम

कर्मनासा नदी को लेकर लोगों का मानना है कि इसका पानी छूने से दुर्भाग्‍य पीछे लग जाता है, बनते काम बिगड़ जाते हैं. वहीं अच्‍छे कर्म भी मिट्टी में मिल जाते हैं. इसलिए लोग इस नदी के पानी को छूते ही नहीं हैं. ना ही किसी भी अन्‍य काम में उपयोग में लाते हैं. आलम यह है कि लोग बताते हैं कि काफी समय पहले जब इस नदी के किनारे पानी का इंतजाम नहीं था, तब लोग यहां रहने से बचते थे. यह भी कहा जाता है कि लोग फसल उगाने में भी इस नदी के पानी का उपयोग नहीं करते थे और इससे बचने के लिए फल खाकर गुजारा करते थे.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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