Enemy property: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का एक हाई प्रोफाइल संपत्ति विवाद (शत्रु संपत्ति विवाद) सेटल हो चुका है, फिर भी हंगामा बरपा है. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान (Liaquat Ali Khan shatru sampatti) की जमीन को लेकर आए फैसले पर पुनर्विचार की मांग हो रही है. इस विवाद की जड़े आजादी से पहले के अखंड भारत से जुड़ी हैं. मुजफ्फरनगर रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित प्रॉपर्टी, पर एक मस्जिद और चार दुकानें बनी हैं. भारत के बंटवारे के बाद लियाकत उधर पाकिस्तान गए, इधर हिंदुस्तान में उनकी जमीन पर अवैध कब्जा हो गया. एक समुदाय का दावा है जमीन वक्फ बोर्ड की है शत्रु संपत्ति नहीं, दूसरे का तर्क है फैसला हो चुका है.
इस मामले में दूसरा पक्ष कोर्ट गया तो राष्ट्रीय हिंदू संगठन ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर केस में पार्टी बनने की मांग की थी. इस पर सुनवाई के लिए कोर्ट ने 7 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की थी. राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन ने 10 जून को डीएम अरविंद मल्लप्पा से संपत्ति पर अवैध कब्जे की शिकायत की थी. डीएम ने एडीएम वित्त एवं राजस्व गजेंद्र कुमार, एमडीए सचिव, सिटी मजिस्ट्रेट, एसडीएम सदर, सीओ सिटी और पालिका के ईओ से मामले की जांच कराई. जिसके बाद पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के परिवार की खसरा नंबर 930 वाली जमीन को निष्क्रांत संपत्ति घोषित कर दिया गया था. जमीन वक्फ की है ये कहने वालों का कहना है कि प्रॉपर्टी लियाकत अली की नहीं उनके पिता की थी, जिसे उन्होंने दान कर दिया था. वहीं दूसरे पक्ष का मानना है कि लियाकत पाकिस्तान गए वहां के प्रधानमंत्री बने ऐसे में ये संपत्ति 'शत्रु संपत्ति' ही है.
लियाकत अली खान का जन्म हरियाणा के करनाल में हुआ था और वह रुस्तम अली खान और उनकी पत्नी महमूदा बेगम के दूसरे बेटे थे. लियाकत अली खान के पूरे परिवार का मुजफ्फरनगर से गहरा जुड़ाव था. 1932 में लियाकत अली खान संयुक्त प्रांत विधान परिषद के उपाध्यक्ष चुने गए. 1940 में केंद्रीय विधान सभा में पदोन्नत होने तक ये इलाका उनकी कर्मभूमि रहा. इस इलाके में खान परिवार का दबदबा था और मुजफ्फरनगर की सियासत में उनकी हिस्सेदारी का अपना अलग स्थान था. मुजफ्फर नगर में उनकी संपत्तियां थीं. हालांकि 1947 में भारत के बंटवारे के बाद, उनकी संपत्तियों की तकदीर नाटकीय ढंग से बदल गई.
लियाकत अली खान ने बंटवारे के बाद पाकिस्तान का रुख किया. ऐसे में उनकी भारतीय संपत्तियों को 'शत्रु संपत्तियों' में बदल दिया गया. भारतीय कानून के तहत 'एनमी प्रॉपर्टी' का टर्म उन व्यक्तियों की संपत्ति पर लागू होता है जो विभाजन के बाद देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे. उनके वहां बसने के सालों बाद, भारत में उनके परिवार की संपत्ति विवाद का विषय बन गई. इस प्रॉपर्टी को लेकर विवाद तब बढ़ा जब मुज़फ़्फ़रनगर रेलवे स्टेशन के ठीक सामने स्थित 'शत्रु संपत्ति' पर एक मस्जिद का निर्माण हो गया. तब राष्ट्रीय हिंदू शक्ति संगठन नामक समूह के संयोजक संजय अरोड़ा ने 2023 में मस्जिद निर्माण पर पुलिस प्रशासन का ध्यान आकर्षित करते हुए आरोप लगाया कि मस्जिद और दुकानें शत्रु संपत्ति पर अवैध रूप से बनाई गई थीं. शत्रु संपत्ति पर निर्माण प्रशासनिक एजेंसियों को धता बताते हुए गैरकानूनी तरीके से हुआ क्योंकि निर्माण कार्य को मुजफ्फरनगर विकास प्राधिकरण (MDA) से मंजूरी नहीं मिली थी.
अरोड़ा ने दावा किया, WAQF बोर्ड के पास इस संपत्ति के कोई दस्तावेज नहीं हैं. जब कोई व्यक्ति पाकिस्तान चला गया है, तो उसकी ज़मीन या तो अवैध संपत्ति है या शत्रु संपत्ति है. अरोड़ा ने अपने दावे के समर्थन में ये आरोप तक लगाया कि जिस संपत्ति पर ये निर्माण हुआ है उससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है. जिला प्रशासन ने उनकी शिकायत की बहुस्तरीय जांच कराई. जिसमें मुजफ्फरनगर जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय, राजस्व विभाग और नगर निगम के प्रतिनिधियों ने जांच पूरी की. जांच को लेकर बवाल और तब और बढ़ गया जब इसे दिल्ली में शत्रु संपत्ति कार्यालय को भेजा गया, जहां से भूमि का सर्वे कराने के लिए एक टीम भेजी गई.
शत्रु संपत्ति अधिनियम-1968, पाकिस्तानी नागरिकों से संबंधित भारत में संपत्तियों के मामलों को नियंत्रित करता है. 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद ये कानून लाया गया. यह अधिनियम ऐसी संपत्तियों के स्वामित्व को भारत के शत्रु संपत्ति के संरक्षक, एक नामित भारतीय सरकारी प्राधिकरण के नाम ट्रांसफर करके उसका मालिकाना हक बदल देता है. शत्रु संपत्ति एजेंसी के अनुसार, विचाराधीन भूमि को वास्तव में शत्रु घोषित किया गया था. यह संपत्ति लियाकत अली खान के पिता रुस्तम अली खान के स्वामित्व में पाई गई, जो विभाजन के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान में बस गए थे.
इन कानूनी दांवपेंचों और निष्कर्षों के जवाब में, सरकार ने भूमि पर कब्जा करने वालों को कानूनी नोटिस जारी किया और उन्हें शत्रु संपत्ति परिसर खाली करने का आदेश दिया. यह प्रॉपर्टी शत्रु संपत्ति घोषित किये जाने के बावजूद, विवाद की वजह बना हुआ है. मस्जिद और दुकानों पर कब्ज़ा करने वालों का तर्क है कि ज़मीन कानूनी तौर पर वक्फ (इस्लामिक बंदोबस्ती का एक रूप) थी, जिसका अर्थ है कि इसे धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान किया गया था. लैंड डिस्प्यूट से जुड़े मुस्लिम पक्षकार के मुताबिक, ये संपत्ति वक्फ बोर्ड के साथ पंजीकृत की गई थी, अपने दावे को मजबूत करने के लिए उन्होंने साल 1937 के एक पत्र समेत कुछ दस्तावेज जमा किए. इसे वक्फ प्रॉपर्टी मानने वाले लोगों में से एक मोहम्मद अतहर, स्थानीय व्यवसायी हैं जो उस शत्रु संपत्ति पर एक दुकान चलाते हैं. उनका कहना है कि यह संपत्ति रुस्तम अली खान की थी, जो उन्होंने वक्फ के नाम दान कर दी थी. अतहर ने इस दावे को खारिज कर दिया कि जमीन लियाकत अली खान की है. उन्होंने दावा किया कि राजनीतिक प्रेरणा और गलत सूचना की वजह से मामला उलझ गया है.
अतहर का दावा है कि इस संपत्ति पर मस्जिद देश के विभाजन से पहले से मौजूद है. उम्मीद है कि सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी और इस मामले पर एक बार फिर विचार करेगी. क्योंकि कई परिवारों की आजीविका इस पर निर्भर है. दावेदारों का तर्क है कि मस्जिद किसी कानून का उल्लंघन करके नहीं बनाई गई. वहीं दुकानों से लिया गया किराया वैध है. उनका कहना है कि भूमि को शत्रु संपत्ति के रूप में नामित करना ऐतिहासिक अभिलेखों की गलत व्याख्या पर आधारित एक गलत दावा है. भारत में ऐसे कई केस कानूनी विवाद में उलझे हैं. जबकि संजय अरोड़ा ऐसे तर्कों से इत्तेफाक नहीं रखते. उनका कहना है कि बेटा पाकिस्तान गया. सबकुछ सोचसमझकर वहां प्रधानमंत्री बना. इसलिए यह जमीन शत्रु संपत्ति है.
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