ब्रह्मांड के तमाम रहस्यों में से एक, 'डार्क मैटर' के बारे में हमें कुछ खास मालूम नहीं. वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में अब तक जो कुछ देखा है, उसके हिसाब से डार्क मैटर होना चाहिए. डार्क मैटर का पता लगाना लगभग नामुमकिन है क्योंकि यह सामान्य मैटर से बेहद कम प्रतिक्रिया करता है, करता भी है तो गुरुत्वाकर्षण के जरिए. गुरुत्वाकर्षण तो सबसे मजबूत ब्लैक होल का होता है. तो क्या डार्क मैटर में ब्लैक होल्स भी शामिल हैं? Nature और Astrophysical Journal Supplement में छपे दो नए रिसर्च पेपर इसी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं. पोलैंड के वारसॉ विश्वविद्यालय की एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी के प्रेजेमेक मिरोज इन दोनों स्टडीज के लीड ऑथर हैं. उन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) के 109 साल पुराने सिद्धांत पर आधारित तकनीक का प्रयोग किया.
2015 में, वैज्ञानिकों ने पहली बार दो ब्लैक होल को एक होते हुए देखा. उसके बाद से अब तक लगभग 100 ब्लैक होल विलय का पता लगाया जा चुका है. ये ब्लैक होल आमतौर पर हमारे सूर्य से 20-100 गुना भारी हैं. इसके उलट, हमारी आकाशगंगा Milky Way में पहले खोजे गए ब्लैक होल्स आमतौर पर केवल 5-10 सौर द्रव्यमान (1.989 × 10^30 kg) के हैं. मिरोज के मुताबिक, 'मॉडर्न एस्ट्रोनॉमी के सबसे बड़े रहस्यों में से एक यह बताना है कि ब्लैक होल की ये दो आबादी इतनी अलग क्यों हैं?'
LIGO और Virgo प्रयोगों से शायद हमें पता चले कि बड़े ब्लैक होल, आदिम ब्लैक होल हैं जिनका निर्माण ब्रह्मांड की शुरुआत में हुआ था. चूंकि गुरुत्वाकर्षण तरंग डिटेक्टरों का उपयोग ब्लैक होल खोजने के लिए किया है, इसलिए कई वैज्ञानिकों को लगता है कि डार्क मैटर का एक बड़ा हिस्सा ऐसे आदिम ब्लैक होल हो सकते हैं. ब्लैक होल प्रकाश उत्सर्जित नहीं करते, फिर भी इस थ्योरी को टेस्ट किया जा सकता है. इसके लिए हमें 20वीं सदी के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की शरण में जाना होगा.
आइंस्टीन ने 1915 में सापेक्षता का सिद्धांत (General relativity) दिया था. यह बताता है कि विशाल वस्तुएं अपने आस-पास के प्रकाश को मोड़ सकती हैं. इस प्रभाव को गुरुत्वाकर्षण माइक्रोलेंसिंग कहा जाता है. जब ब्लैक होल जैसी विशाल चीज पृथ्वी और आकाशगंगाओं जैसी अन्य चीजों के बीच आती है, तो वे आकाशगंगाएं बड़ी हो जाती हैं और उनकी चमक बढ़ जाती है.
लेंसिंग करने वाली चीज का द्रव्यमान (Mass) जितना अधिक होगा, उसके पीछे मौजूद पिंडों की चमक उतनी ही ज्यादा होगी. सूर्य जितने बड़े आकार की वस्तुओं द्वारा लेंसिंग सिर्फ कुछ हफ्तों तक चलती है, लेकिन 100 से अधिक सौर द्रव्यमान (Solar mass) वाले ब्लैक होल से गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग कई साल तक चलती है.
गुरुत्वाकर्षण लेंसिंग, डार्क मैटर पर स्टडी करने में मदद कर सकती है, यह विचार सबसे पहले 1980 के दशक में पोलिश खगोलशास्त्री बोहदान पैक्जिंस्की ने सामने रखा था. प्रयोगों से पता चला कि सूर्य से छोटे ब्लैक होल डार्क मैटर का 10% से भी कम हिस्सा बना सकते हैं. लेकिन ये प्रयोग लंबे समय की माइक्रोलेंसिंग के प्रति संवेदनशील नहीं थे.
ऑप्टिकल-ग्रेविटेशनल लेंसिंग एक्सपेरिमेंट (OGLE) के एस्ट्रोनॉमर्स ने नजदीकी विशाल मैगेलैनिक बादल में मौजूद 8 करोड़ तारों की 20 साल तक चली मॉनिटरिंग के नतीजे छापे हैं. अगर मिल्की वे में मौजूद डार्क मैटर सिर्फ ब्लैक होल्स से बना होता तो रिसर्चर्स को 258 माइक्रोलेंसिंग इवेंट्स दिखते. हालांकि, नतीजों में सिर्फ 13 ऐसी घटनाएं देखने को मिलीं.
मिरोज के मुताबिक, 'इससे पता चलता है कि विशाल ब्लैक होल में अधिकतम कुछ प्रतिशत डार्क मैटर हो सकता है.' स्टडी के नतीजों के हिसाब से चलें तो 10 सौर द्रव्यमान वाले ब्लैक होल में अधिकतम 1.2% डार्क मैटर हो सकता है, 100 सौर द्रव्यमान वाले ब्लैक होल में डार्क मैटर का 3.0% हिस्सा होता है, और 1000 सौर द्रव्यमान वाले ब्लैक होल में डार्क मैटर का 11% हिस्सा होता है. यह रहस्य अभी भी बना हुआ है कि डार्क मैटर का अधिकांश भाग किससे बना है.
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