Chinese Rail Line: म्यांमार तक चीनी रेल लाइन, भारत के लिए क्यों है चिंता की बात
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Chinese Rail Line: म्यांमार तक चीनी रेल लाइन, भारत के लिए क्यों है चिंता की बात

Chinese Rail Line Up to Myanmar: चीन की कथनी और करनी में फर्क के कई उदाहरण हैं. अफ्रीकी देश जिबूती में पशुओं के व्यापार के लिए बंदरगाह विकसित किया लेकिन अब वहां सैन्य अड्डा कायम कर चुका है, यही हाल श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह की है. बताया जा रहा है कि दूसरा सैन्य अड्डा वहां स्थापित किया जा सकता है. इन सबके बीच म्यांमार तक चीनी रेल लाइन के पीछे का दावा व्यापार करने का हो लेकिन असल मकसद कुछ और ही है.

Chinese Rail Line: म्यांमार तक चीनी रेल लाइन, भारत के लिए क्यों है चिंता की बात

China News: खुद के बारे में चीन की राय ये होती है कि वो दुनिया के सभी मुल्कों से बेहतर संबंध बना कर रखना चाहता है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. एक तरफ ताइवान से झगड़ा, दक्षिण चीन सागर में दबदबा बनाने की कोशिश, भारत से लगी सीमा पर घुसपैठ की कोशिश, श्रीलंका के हंबनटोटा और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर गिद्ध जैसी नजर. यह सब अपने आप में चीन की मंशा को जाहिर करते हैं. इन सबके बीच यह खबर आई है कि अपने नए रेल लाइन के जरिए वो म्यांमार तक अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है. यहां हम समझेंगे कि इसका भारत के लिए क्या मतलब है.2021 में चीन ने अपनी नई रेलवे लाइन को खोला था. इस नई रेलवे लाइन के बारे में चीन का यह कहना था कि वो अपने सुदूरवर्ती राज्य यूनान का विकास करना चाहता है. उसने यूनान की गरीबी का जिक्र भी किया लेकिन अब उसका असली मकसद पूरी दुनिया के सामने है. 

म्यांमार में सैन्य सरकार

जब 2021 में सैन्य जुंटा ने पहली बार सत्ता पर कब्जा किया, तो क्षेत्र के कई अन्य देशों की तरह चीन ने भी शुरू में टिप्पणी करने से परहेज किया. विपक्षी समूहों के साथ संबंध बनाए रखते हुए, इसने अगले दो वर्षों का सबसे अच्छा समय यह देखने में बिताया कि चीजें कैसे आगे बढ़ीं। लेकिन ऐसा लगता है कि यह बदल गया है। वास्तव में मई में, चीन के विदेश मंत्री किन गैंग ने म्यांमार का दौरा किया और जुंटा के नेता मिन आंग ह्लाइंग के साथ उनकी मुलाकात को फिल्माया गया, जिससे चीनी अधिकारियों ने शुरुआत में इनकार कर दिया था. संदेश स्पष्ट था चीन परोक्ष रूप से इस अवैध शासन के पीछे अपना समर्थन दे रहा था और अपने संकटग्रस्त नेताओं को एक वास्तविक जीवनरेखा प्रदान कर रहा था. यह किस हद तक जुंटा के लिए अमूल्य है, इसे बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कहा जा सकता.

म्यांमार से 200 मिलियन पाउंड का हथियार डील

 दरअसल, चीन म्यांमार का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जो उसके सभी सामानों का 27 फीसद धातुओं, कीमती पत्थरों और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों से खरीदता है। ऊर्जा बाज़ार म्यांमार की अर्थव्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, और चीन ने 2022 में उसके गैस निर्यात का 38% खरीदा लेकिन हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, तख्तापलट के बाद से चीनी कंपनियां, जिनमें कुछ सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियां भी शामिल हैं, म्यांमार को बड़ी मात्रा में हथियार बेच रही हैं, जिनकी कीमत 200 मिलियन पाउंड से अधिक है। इनमें से अधिकांश बिक्री सीधे जुंटा को गई और इस बात के प्रमाण हैं कि कुछ उत्पादों का उपयोग गृहयुद्ध में किया गया है लेकिन चीन के लिए इसमें क्या है, एक ऐसा देश जो अस्थिरता को नापसंद करता है?

भारत के लिए संदेश

जानकार बताते हैं कि म्यांमार में चीन का हस्तक्षेप जिस किसी भी रूप में हो भारत के लिए सही नहीं है, पूर्वोत्तर राज्य पहले से ही संवेदनशील हैं. म्यांमार में चीनी मौजूदगी का असर यह होगा कि भारत विरोध ताकतों को मदद मिलेगी और वह कोई छोटा खतरा नहीं होगा, जहां एक तरफ अरुणाचल प्रदेश को चीन तिब्बत का हिस्सा मानता है ठीक वैसे ही वो दूसरे राज्यों के बारे में भी अपनी राय रख सकता है. चीन का अतीत और वर्तमान दोनों भारत के लिए चिंता की बड़ी बात है.

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