अक्टूबर का महीना है और उत्तर भारत में हल्की-हल्की ठंड शुरू हो गई है. लेकिन इसके साथ ही पराली जलाने का मौसम भी शुरू हो चुका है और जब-जब पराली जलाने का मौसम आता है तो नेताओं की राजनीति भी नई ऊंचाई छूने लगती है. ये सबकुछ दिवाली के आसपास होता है तो कुछ पर्यावरण प्रेमी पटाखे नहीं फोड़ने की पैरवी करने लगते हैं. पटाखों पर बैन भी लग जाता है, लेकिन पराली जलाने पर कोई कुछ नहीं कर पाता, कुछ नहीं कह पाता. DNA में पराली पर सियासी मजबूरी का खास विश्लेषण.