Shahjahanpur Lat saheb Julus: शाहजहांपुर में निकलेंगे ‘लाट साहब’, ढकी जा रहीं मस्जिदें, जानें अंग्रेजों के विरोध की अनोखी परंपरा
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Shahjahanpur Lat saheb Julus: शाहजहांपुर में निकलेंगे ‘लाट साहब’, ढकी जा रहीं मस्जिदें, जानें अंग्रेजों के विरोध की अनोखी परंपरा

Shahjahanpur Lat saheb Julus: शाहजहांपुर में एक और लाट साहब होते हैं.... बड़े लाट साहब के अलावा छोटे लाट साहब का भी जुलूस निकाला जाता है. इस जुलूस के निकलने का अलग रूट होता है. ये मिश्रित आबादी के बीच से निकलता है. ..

Shahjahanpur Lat saheb Julus: शाहजहांपुर में निकलेंगे ‘लाट साहब’, ढकी जा रहीं मस्जिदें, जानें अंग्रेजों के विरोध की अनोखी परंपरा

Shahjahanpur Lat saheb Julus:  शाहजहांपुर में होली के दिन लाट साहब का जुलूस निकाला जाएगा.  इसको लेकर शहर की मस्जिद-मजारों को तिरपाल से ढका जा रहा है.  जिससे उनपर होली का रंग ना पड़े. कुछ और शहरों में भी मस्जिदों को पन्नी से कवर करने की खबरें आ रही हैं. दरअसल, यहां लाट साहब मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर, जिनके विरोध में हर साल होली में ये जुलूस निकाला जाता है. अब सवाल है कि ये कौन-से लाट साहब हैं, होली पर जिनका जुलूस निकाला जाता है, ये कैसी परंपरा है और कब से चली आ रही है? आइए जानते हैं विस्तार से.

कौन हैं ये लाट साहब?
लाट साहब यानी ब्रिटिश शासन के क्रूर अफसर. होली पर जुलूस निकाल कर उन्हीं का विरोध किया जाता है. ये लाट साहब, होली के नवाब होते हैं. जूतों की माला पहनाई जाती है, पहले शराब पिलाई जाती है और फिर गुलाल के साथ उन पर चप्पल भी बरसाई जाती है. बैलगाड़ी पर बिठाकर पूरा शहर घुमाया जाता है.

चुना जाता है लाट साहब या नवाब
शाहजहांपुर की बात करें तो हर साल होली से पहले स्थानीय लोग मिलकर एक ‘लाट साहब’ या ‘नवाब’ चुनते हैं. एक दिन पहले से ही उनकी खातिरदारी शुरू हो जाती है. उन्हें नशा कराया जाता है. होली के दिन जुलूस पहले शहर कोतवाली पहुंचता है, जहां उसे सलामी दी जाती है. फिर ये जुलूस शहर के जेल रोड से थाना सदर बाजार और टाउन हॉल मंदिर होते हुए गुजरता है. लाट साहब किसे चुना जाएगा और वो किस जाति-धर्म का होगा, इसे गुप्त रखा जाता है, ताकि किसी समुदाय की भावनाएं आहत न हों.

छोटे लाट साहब का भी निकलता है जुलूस
शाहजहांपुर में एक और लाट साहब होते हैं. बड़े लाट साहब के अलावा छोटे लाट साहब का भी जुलूस निकाला जाता है. इस जुलूस के निकलने का अलग रूट होता है. ये मिश्रित आबादी के बीच से निकलता है.  प्रशासन को यहां सुरक्षा के खास इंतजाम करने पड़ते हैं.  इसलिए यहां पर ड्रोन कैमरे के जरिए जुलूस की निगरानी की जाती है. लोग इसे जश्न के तौर पर मनाते हैं. हर साल हजारों लोग इस जश्न में शामिल होते हैं. हालांकि अलग-अलग समुदायों के कुछ लोग इस परंपरा का विरोध भी करते रहे हैं.

बहुत पुरानी है परंपरा
लाट साहब का जुलूस निकालने की परंपरा 18वीं सदी की ही बताई जाती है. इतिहासकारों के अनुसार, यह परंपरा शाहजहांपुर के अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां ने 1746-47 में शुरू की थी. नवाब ने जब किले पर फिर से कब्जा जमाया था. उन्होंने एक रंग महल बनवाया, जिसके नाम पर मोहल्ले का नाम पड़ा. वहां अब्दुल्ला खां हर साल होली खेलते थे. तब हाथी-घोड़े के साथ जुलूस निकाला जाता था. अब्दुल्ला के निधन के बाद भी लोग जुलूस निकालते रहे.

ब्रिटिश राज ने लगाया था प्रतिबंध
बाद में ब्रिटिश राज में होली पर नवाब का जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके बावजूद लोग जुलूस निकालते रहे. बस उनका तरीका और उद्देश्य बदल गया. जुलूस अब अंग्रेजों के विरोध में निकाला जाने लगा और नवाब साहब की बजाय लाट साहब का जुलूस कहा जाने लगा. अंग्रेजों पर गुस्सा निकालने के लिए लोग जूते-चप्पल, झाड़ू वगैरह से लाट साहब की धुलाई करने लगे. 

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