Dussehra 2022: कन्नौज में रावण दहन का कार्यक्रम दशहरा को ना होकर पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. रावण दहन की यह परम्परा यहां 200 से ज्यादा वर्षों से जारी है.
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प्रभम श्रीवास्तव/कन्नौज: उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में दशहरा के दिन रावण के पुतले का दहन नहीं होता है. पूरे देश में जहां दशहरा को रावण दहन किया जाता है, वहीं यूपी की इत्र नगरी कन्नौज में रावण दहन का कार्यक्रम दशहरा को ना होकर पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. रावण दहन की यह परम्परा यहां 200 से ज्यादा वर्षों से जारी है. शहर कन्नौज में दो बड़ी रामलीलाओं का आयोजन हर वर्ष होता है. इन दोनों ही रामलीलाओं में रावण वध और रावण दहन का कार्यक्रम एक साथ ही पूर्णिमा के दिन किया जाता है. रावण वध और रावण दहन के इस कार्यक्रम को देखने के लिए हजारो लोगों की भीड़ उमड़ती है.
दशहरा को नहीं निकले थे रावण के प्राण
इत्र नगरी कन्नौज में पूर्णिमा के दिन रावण दहन को लेकर रामलीला कमेटी से जुड़े सौरभ मिश्रा बताते हैं कि इत्र नगरी में शरद पूर्णिमा के दिन रावण बध होकर उसाका अन्तिम संस्कार के रूप में रावण दहन किया जाता है. इसके पीछे का कारण यह है कि भगवान श्रीराम ने रावण की नाभि में दशहरा के बाण मारा था, लेकिन रावण ने दशहरा को प्राण नहीं त्यागे थे. बल्कि रावण के प्राण शरद पूर्णिमा वाले दिन निकले थे.
पूर्णिमा के दिन रावण दहन का यह है राज
इस बीच भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण को रावण के पास उसके विद्वान होने की कला सीखने के लिए भेजा था, क्योंकि रावण प्रकाण्ड पण्डित वेद और कलाओं में सर्वश्रेष्ठ था. वहीं रावण ने शरण पूर्णिमा को जब चन्द्रमा से अमृत की वर्षा होती है, उस दिन प्राण त्याग दिये थे. इसी बजह से कन्नौज वासी इसी दिन रावण का दहन कर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करते हैं. जिसकी बजह से ये परम्परा निरंतर आज तक चल रही है और यहां पर रावण दशहरा के दिन न दहन होकर पूर्णिमा के दिन होता है.
पुरानी परंपरा निभा रहे
कन्नौज जिले में दो स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है जहां पर रावण का दहन भी किया जाता है. पहला शहर का गोल मैदान है और दूसरा मकरंद नगर का एसबीएस ग्राउंड दोनों ही जगहों पर रावण दहन करने की अपनी अलग एक मान्यता है. पिछले 200 सालों से अधिक का समय बीत चुका है कि कन्नौज में रावण का दहन दशहरा पर नहीं किया गया, बल्कि पूर्णिमा के दिन रावण का दहन किया जाता है. रामलीला कमेटी से जुड़े सौरव मिश्रा बताते हैं कि उनके पूर्वजों की ओर से चलाई जा रही है परंपरा आज भी जारी है. 200 साल से अधिक का समय बीत चुका है. लगातार शरद पूर्णिमा को रावण का दहन किया जाता आ रहा है, क्योंकि रावण को भगवान श्रीराम ने वाण जरूर दशहरे को मारा था लेकिन रावण में अपने प्राण पूर्णिमा के दिन त्यागे थे.
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