उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल (Medanta Hospital) में निधन हो गया.
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Mulayam Singh Yadav: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व सीएम और समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल (Medanta Hospital) में निधन हो गया. मुलायम सिंह के निधन के बाद समाजवादी परिवार के साथ पूरे देश में शोक की लहर डूब गई है. बता दें कि तीन महीने पहले उनकी पत्नी साधना गुप्ता (Sadhana Gupta) का भी निधन हो गया था. मुलायम सिंह यादव के निधन की जानकारी देते हुए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि मेरे आदरणीय पिता जी और सबके नेता जी नहीं रहे. आज सैफई में उनका अंतिम संस्कार है.
मुलायम सिंह ने शर्त में जीती थी साइकिल
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल का कहना है कि 1993 के विधानसभा चुनाव के लिए जब सिंबल चुनने की बात आई तो नेताजी और बाकी वरिष्ठ नेताओं ने विकल्पों में से साइकिल को चुना.उस समय साइकिल किसानों, गरीबों, मजदूरों और मिडिल क्लास की सवारी थी. साइकिल चलाना आसान और सस्ता था. वहीं हेल्थ के लिए भी साइकिल चलाना फायदेमंद है. इसी वजह से साइकिल को ही सिंबल के लिए चुना गया.
तीन बार विधायक बनने के बाद भी साइकिल से चलते थे मुलायम
सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक और उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण सचान कहते हैं कि तीन बार विधायक बनने के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने 1977 तक साइकिल की सवारी की. सचान के बताया कि बाद में पार्टी के किसी अन्य नेता ने पैसा इकठ्ठा किया और इनके लिए एक कार खरीदी.
20 किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज जाते थे मुलायम
मुलायम सिंह यादव 1960 में उत्तर प्रदेश के इटावा में जब कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें रोजाना करीब 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज जाना पड़ता था. मुलायम के घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वह एक साइकिल खरीद पाते.पैसों की कमी के चलते वह मन मसोस कर रह जाते थे और कॉलेज जाने के लिए संघर्ष करते थे.
आत्मकथा पर आधारित फ्रैंक हुजूर की किताब द सोशलिस्ट के मुताबिक मुलायम अपने बचपन के दोस्त रामरूप के साथ एक दिन किसी काम से उजयानी गांव पहुंचे. दोपहर का समय था, गांव की बैठक में कुछ लोग ताश खेल रहे थे. मुलायम और रामरूप भी साथ में ताश खेलने लग गए. वहीं गांव गिंजा के आलू कारोबारी लाला रामप्रकाश गुप्ता भी ताश खेल रहे थे. गुप्ता जी ने खेल में शर्त रख दी कि जो भी जीतेगा उसे रॉबिनहुड साइकिल दी जाएगी. मुलायम के लिए गुप्ता की शर्त उनका सपना पूरा करने का जरिया बनी. मुलायम ने बाजी जीती और इसी के साथ रॉबिनहुड साइकिल भी. मुलायम साइकिल पर ऐसे सवार हुए कि जब 4 नवंबर 1992 को समाजवादी पार्टी बनी तो उन्होंने पार्टी का चुनाव निशान भी साइकिल ही रखा.
साइकिल से शुरू हुआ चुनाव प्रचार
वर्ष 1967 का विधानसभा चुनाव हो रहा था. मुलायम के राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह तब जसवंतनगर के विधायक थे. उन्होंने अपनी सीट से मुलायम को मैदान में उतारने का फैसला लिया. लोहिया से पैरवी की और उनके नाम पर मुहर लग गयी. अब मुलायम सिंह जसवंत नगर विधानसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे. नत्थू सिंह इस बार करहल विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते भी. नाम की घोषणा होते ही मुलायम सिंह चुनाव प्रचार में जुट गये.
दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम कैरियर पर पीछे बैठकर गांव-गांव जाते
डॉ. संजय लाठर अपनी किताब समाजवाद का सारथी, अखिलेश यादव की जीवनगाथा में लिखते हैं कि तब मुलायम के पास प्रचार के लिए कोई संसाधान नहीं था. ऐसे में उनके दोस्त दर्शन सिंह ने उनका साथ दिया. दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम कैरियर पर पीछे बैठकर गांव-गांव जाते. पैसे नहीं थे, ऐसे में दोनों लोगों ने मिलकर एक वोट, एक नोट का नारा दिया. वे चंदे में एक रुपया मांगते और उसे ब्याज सहित लौटने का वादा करते.
शानदार रहा राजनीतिक करियर
मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक करियर बेहद शानदार रहा है. 1977 में वह पहली बार जनता पार्टी से यूपी के मंत्री बने थे.1989 में वह पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने. इसके बाद 1993 और फिर 2003 दूसरी और तीसरी बार सीएम पद पर काबिज हुए. मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी और 1993 में बसपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. बेटे अखिलेश यादव के समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष चुने जाने के बाद वह इसके संरक्षक की जिम्मेदारी निभा रहे थे. मुलायम सिंह यादव फिलहाल लोकसभा में मैनपुरी सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.
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