Kushinagar: राजनीतिक में अक्सर नेताओं से लोगों को शिकायत रहती है कि वह अपने वेतन, पेंशन और भत्तों के लिए बहुत अधिक सक्रिय रहते हैं. लेकिन कुछ नेता ऐसे भी हैं जो राजनीति में आने के बाद भी अपनी जिम्मेदारियों को नहीं भूलते. विधायक सुरेंद्र कुशवाहा ने आखिर ने क्यों विधायक के रूप में वेतन नहीं लेने का फैसला किया है, क्यों उन्हें विधायकी से पहले शिक्षक की भूमिका है पसंद है. पढ़िए पूरी खबर
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प्रमोद कुमार गोंड/कुशीनगर: विधायक बनने के बाद नेताओं की लाइफ स्टाइल और काफिला तो आपने बहुत देखा होगा. विधायक अपने लिए सुविधाएं और वेतन पेंशन में इजाफे के लिए हमेशा आगे रहते हैं. लेकिन उत्तर प्रदेश में एक एमएलए ऐसे भी हैं जिन्होंने विधायक पद का वेतन नहीं लेने का फैसला किया है. भाजपा विधायक सुरेंद्र कुशवाहा का कहना है कि ऐसा उन्होंने अपने शिक्षक धर्म के लिए किया है. सुरेंद्र कुशवाहा ने पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के कद्दावर नेता स्वामीप्रसाद मौर्या (Swami Prasad Maurya) को कुशीनगर की फाजिलनगर सीट से हराया था. पेशे से सहायक अध्यापक सुरेन्द्र कुशवाहा का कहना है कि वह भी अन्य की विधायकों की तरह पांच साल की अवैतनिक छुट्टी लेकर विधायकी का आनन्द ले सकते थे, लेकिन उनके भीतर के शिक्षक ने इसकी गवाही नहीं दी. यही वजह है कि उन्होंने विधायक की भूमिका से अधिक प्राथमिकता शिक्षक की जिम्मेदारी को दी है. इसके लिए वह हर दिन स्कूल पहुंचकर एक सामान्य टीचर की तरह बच्चों को पढ़ाते हैं. विद्यालय के समय के बाद ही क्षेत्र में राजनीतिक सक्रियता दिखाते हैं. उन्होंने विधायकी का वेतन न लेकर शिक्षक का वेतन ही लेने का फैसला किया है.
प्रिंसिपल से लेकर बच्चे भी मुरीद
विधायक सुरेन्द्र कुशवाहा पावानगर महावीर इंटर कॉलेज में सामाजिक विज्ञान के अध्यापक हैं. कॉलेज के प्रिंसिपल से लेकर बच्चे विधायक सुरेन्द्र कुशवाहा की इस पहल के मुरीद हैं. सुरेन्द्र कुशवाहा के मुताबिक वो अपना अधिकतम समय बच्चों को देना चाहते हैं. यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं भले ही विधायक बन गया हूं लेकिन बच्चों का कोर्स समय से पूरा कराऊंगा.
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अवैतनिक अवकाश लेकर जाएंगे विधानसभा
सुरेंद्र कुशवाहा 1999 से शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, उनका कहना है कि शिक्षक अपने बच्चों से दूर नहीं रह सकता है. सदन चलने के दौरान वह अवैतनिक अवकाश पर रहेंगे. यूपी ही नहीं देश की सियासत में ऐसे कई शिक्षकों ने राजनीति में हाथ आजमाया और कामयाब भी रहे. सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव, प्रो. रामगोपाल यादव समेत पूर्व बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीशचंद्र द्विवेदी तक सैकड़ों उदाहरण हैं. लेकिन विधायक बनने के बावजूद अपने शिक्षक धर्म को निभाने वाले उदाहरण कम ही हैं.
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