जालौन की बेटी ने जिले का नाम किया रोशन, पैरा बैडमिंटन टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने के बाद अब नेशनल खेलेगी दिव्यांग स्वाति
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जालौन की बेटी ने जिले का नाम किया रोशन, पैरा बैडमिंटन टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने के बाद अब नेशनल खेलेगी दिव्यांग स्वाति

जालौन के कोंच तहसील के अमीटा गांव की रहने वाली 21 वर्षीय दिव्यांग छात्रा स्वाति सिंह ने लखनऊ के विश्वविद्यालय में आयोजित हुई पैरा बैडमिंटन की सिंगल टूर्नामेंट में अपने प्रतिद्वंद्वी को हराकर गोल्ड व डबल्स में हराकर सिल्वर मेडल पर कब्जा किया है. 

जालौन की बेटी ने जिले का नाम किया रोशन, पैरा बैडमिंटन टूर्नामेंट में गोल्ड जीतने के बाद अब नेशनल खेलेगी दिव्यांग स्वाति

जितेन्द्र सोनी/जालौन: मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों में उड़ान होती हैं. इस बात को साबित कर दिखाया है स्वाति सिंह ने स्वाति जालौन के एक छोटे से गांव की रहने वाली है और हाल में ही उन्होंने लखनऊ में अयोजित हुई पैरा बैडमिंटन टूर्नामेंट में गोल्ड मैडल हासिल कर जिले का नाम रोशन किया है. स्वाति स्टेट जीतने के बाद वह नेशनल जीतने की तमन्ना रखती हैं. कमाल की बात है कि स्वाति दिव्यांग हैं और बिना कोच और ट्रेनिग के ही गोल्ड जीता है. स्वाति सिर्फ एक हाथ से अपने सारे जरूरी काम करती हैं. उनका कहना हैं कि अगर जज्बा हो तो दिव्यांगता मायने नहीं रखती.

गोल्ड मेडल जीतकर जिले का नाम किया रोशन 
जालौन के कोंच तहसील के अमीटा गांव की रहने वाली 21 वर्षीय दिव्यांग छात्रा स्वाति सिंह ने लखनऊ के विश्वविद्यालय में आयोजित हुई पैरा बैडमिंटन की सिंगल टूर्नामेंट में अपने प्रतिद्वंद्वी को हराकर गोल्ड व डबल्स में हराकर सिल्वर मेडल पर कब्जा किया है. स्वाति सिंह पॉलिटेक्निक की छात्रा है और फिल्हाल वह ग्रेजुएशन की शिक्षा ग्रहण कर रहीं हैं. कमाल की बात तो यह है कि वह जिले के इंदिरा स्टेडियम की तरफ से खेलती हैं और खुद से प्रैक्टिस करती हैं. बिना कोच के उन्होंने प्रतियोगिता में गोल्ड हासिल किया है.

नेशनल के लिए हुआ है चयन 
दिव्यांग स्वाती का एक हाथ न होने के बाबजूद उसने प्रदेश व जिले का नाम रोशन किया है. उनकी चाहत है कि कोई उन्हें भी ट्रेनिग दे और एक दिन वह ओलंपिक में देश को रिप्रेजेंट करे. स्वाती लॉकडाउन से प्रैक्टिस कर रही है तब बिना किसी ट्रेनिग के प्रतिद्वंद्वी को शिकस्त दे पाई. 21 साल की स्वाति 20 बार लोगों को ब्लड डोनेट कर चुकी हैं और उनको ऐसा करना अच्छा लगता है. उनका कहना है कि दिव्यांग होना कोई अभिशाप नहीं बल्कि आपके भीतर जो प्रतिभा है उसे दुनियां के सामने लाओ खुद को साबित करो. स्वाती बताती है ति उनका यह सफर डिस्ट्रिक्ट लेवल से शुरू हुआ और फिर स्टेट टूर्नामेंट खेलकर गोल्ड हासिल किया. फिलहाल उनका चयन नेशनल के लिए हो गया है और मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करने का उनका सपना है. 

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