Gulzarilal Nanda: कहानी पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा की सादगी की, अपने आखिरी दिनों में मकान का किराया भी नहीं दे पाते थे नंदा
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Gulzarilal Nanda: कहानी पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा की सादगी की, अपने आखिरी दिनों में मकान का किराया भी नहीं दे पाते थे नंदा

Gulzarilal Nanda Birth Anniversary: आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी गुलजारीलाल नंदा का जन्मदिवस है इस मौके पर  उन्ही से जुड़ा एक ऐसा किस्सा बताते हैं जिसे सुनकर आप उनकी सादगी और व्यक्तित्व के कायल हो जाएंगे. यूं तो आजकल के फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं, लेकिन दो बार देश के प्रधानमंत्री और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहने वाले गुजारीलाल नंदा देश के ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री थे कि अपने आखिरी दिनों में  उनके पास ना तो अपना घर था और न ही इतने पैसे थे कि वो जिस मकान में रह रहे थे उसका किराया चुका सकें.

Gulzarilal Nanda: कहानी पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा की सादगी की, अपने आखिरी दिनों में मकान का किराया भी नहीं दे पाते थे नंदा

Gulzarilal Nanda Birth Anniversary: यूं तो आजकल के फ्रेशर भी खूब पैसा कमा लेते हैं, लेकिन दो बार देश के प्रधानमंत्री और लंबे समय तक केंद्रीय मंत्री रहने वाले गुजारीलाल नंदा देश के ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री थे कि अपने आखिरी दिनों में  उनके पास ना तो अपना घर था और न ही इतने पैसे थे कि वो जिस मकान में रह रहे थे उसका किराया चुका सकें.

आज देश के पूर्व प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी गुलजारीलाल नंदा का जन्मदिवस है इस मौके पर  उन्ही से जुड़ा एक ऐसा किस्सा बताते हैं जिसे सुनकर आप उनकी सादगी और व्यक्तित्व के कायल हो जाएंगे.

किराया नहीं चुकाने पर मकान मालिक ने घर से निकाला
एक बार की बात है जब गुलजारी लाल नंदा अपनी उम्र के आखिरी पड़ाव में थे, किराये के मकान में रहते थे, लेकिन जब वो कुछएक महीने से किराया नहीं दे पाए तो मकान मालिक ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. गृहस्थी के समान के नाम पर गुलजारीलाल नंदा के पास कुछ बर्तन, और  एक पुराना बिस्तर ही था. बुजुर्ग गुलजारीलाल नंदा ने मकान मालिक से कुछ और दिन की मौहलत मांगी, उनकी हालत देख पड़ोसियों ने भी मकान मालिक को मना लिया तो गुलजारी लाल नंदा को किराया चुकाने के लिए कुछ और दिन का वक्त मिल गया.

गुलजारीलाल नंदा के किराया नहीं देने की खबर अखबार में छपी थी
यह सारा वाकया वहां से गुजर रहे एक पत्रकार ने देखा, जो मकान मालिक और पड़ोसियों की तरह ही उनकी शख्सियत से अनजान था. उसे लगा कि इस घटना पर अच्छी खबर बन सकती है. उसने खबर का शीर्षक भी सोच लिया था.... "क्रूर मकान मालिक: बुजुर्ग नहीं दे पा रहा था किराया तो घर से बाहर निकाला.".....उसने गुलजारीलाल नंदा और वहां के हालात की कुछ तस्वीरें ली और ऑफिस में आकर अपने बॉस को तस्वीरें दिखाते हुए स्टोरी आइडिया बताया.  बॉस ने तस्वीरों को देखा तो हैरान रह गए.  उन्होंने पत्रकार से पूछा, कि क्या वह उस बुजुर्ग को जानता है?
पत्रकार ने कहा, नहीं.  
अगले दिन अखबार के पहले पन्ने पर बड़ी खबर छपी.  शीर्षक था, ''भारत के पूर्व प्रधानमंत्री गुलजारीलाल नंदा एक दयनीय जीवन जी रहे हैं" ....खबर में आगे लिखा था कि कैसे पूर्व प्रधान मंत्री किराया नहीं दे पा रहे थे और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया.

स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाला भत्ता लेने से कर दिया था इनकार
दरअसल गुलजारीलाल नंदा स्वतंत्रता सेनानी थे इसलिए हर महीने उन्हें 500 रुपये का भत्ता मिलता था. लेकिन उन्होंने यह कहते हुए भत्ता लेने से इनकार कर दिया था कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाले भत्ते के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई नहीं लड़ी थी. लेकिन बाद में उनके मित्रों ने किसी तरह से इस भत्ते को स्वीकार करने के लिए उन्हें मना लिया और इसी भत्ते से वह अपना जीवन यापन किया करते थे. उनके पास आय को दूसरा कोई स्रोत नहीं था.

मकान मालिक ने पैरों में गिरकर गुलजारीलाल नंदा से क्षमा मांगी
अखबार का शीर्षक जंगल में आग की तरह फैल गया. अगले ही दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री ने अधिकारियों को वाहनों के बेड़े के साथ उनके घर भेजा. इतने वीआइपी वाहनों के बेड़े को देखकर मकान मालिक दंग रह गया. तब जाकर उसे पता चला कि उसका किराएदार, श्री गुलजारीलाल नंदा, भारत के पूर्व प्रधान मंत्री थे.

मकान मालिक ने दुर्व्यवहार के लिए गुलजारीलाल नंदा के पैरों में पड़कर क्षमा मांगी
अधिकारियों और मंत्रियों  ने गुलजारीलाल नंदा से सरकारी आवास और अन्य सुविधाएं स्वीकार करने का आग्रह किया. लेकिन श्री गुलजारीलाल नंदा ने कहा कि इस बुढ़ापे में ऐसी सुविधाओं का क्या काम, और प्रस्ताव अस्वीकर कर दिया.

गुलजारीलाल नंदा को 1997 में मिला था 'भारत रत्न' सम्मान
गुलजारी लाल नंदा ने अंतिम सांस तक एक आम नागरिक की तरह जीवन जीया. 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और एच डी देवगौड़ा के मिलेजुले प्रयासो से उन्हें "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया. आज के दौर में उनकी तुलना किसी मंत्री से तो क्या पार्षद परिवार से भी कर लें तो ऐसी सादगी देखने को नहीं मिलेगी.

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