Chandauli Ka Itihaas:चंद्र वंश के शासकों ने बसाया चंदौली, बौद्ध-जैनियों के केंद्र का राजा धन्वंतरि से कनेक्शन
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand2507913

Chandauli Ka Itihaas:चंद्र वंश के शासकों ने बसाया चंदौली, बौद्ध-जैनियों के केंद्र का राजा धन्वंतरि से कनेक्शन

Chandauli Ka Itihaas: चंदौली की इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है. यह शहर पर्यटन के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है. आज हम इस शहर के इतिहास का जिक्र करेंगे. जानेंगे की कैसे वाराणसी से अलग होकर इस शहर ने देश-दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी?

Chandauli Ka Itihaas

Chandauli Ka Itihaas: यूपी का चंदौली जिला अपने आप में कई ऐतिहासिक कहानियों को समेटे हुए है. फिर चाहे नौगढ़ की राजकुमारी की प्रेम कहानी हो या फिर देश के लिए जान देने वाले वीरों के किस्से, सभी आज भी लोगों के जहन में है. यह शहर कभी वाराणसी का ही हिस्सा हुआ करता था, लेकिन प्रशासनिक वजहों से 1997 में चंदौली जिले का गठन किया गया. यह गंगा नदी के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से में है. इसके इलाके काशी के प्राचीन साम्राज्य का हिस्सा थे. इस जिले से जुड़े कई किंवदंतियां तो हैं ही अब पुरातनता के कई बहुमूल्य साक्ष्य भी पाए गए हैं. इतना ही नहीं पूरे जिले में ईंटों में बिखरे टीले के अवशेष हैं. अधिकांश भाग के लिए जिले का इतिहास का अभी पता नहीं लग पाया है. 

मौजूदा वक्त में चंदौली को चावल का कटोरा के रूप में भी जाना जाता है. यह बहुत पहले से ही शिक्षा का केंद्र रहा है. यह हिंदुओं के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी पवित्र स्थल है. इसका नाम चंद्र साह के नाम पर पड़ा है, जो एक बरहौलिया राजपूत थे और उन्होंने जिले में किला भी बनवाया था.

निर्जन स्थल, टैंक और कुंड
जिले के तहसीलों में कुछ निर्जन स्थल, टैंक और कुंड दिखाई देते हैं और वे अस्पष्ट किंवदंतियों की ओर ले जाते हैं. जिले के प्राचीन स्थल में से एक “बलुवा” है. गंगा नदी के तट पर तहसील सखलधिया के दक्षिणी हिस्से में जहां गंगा पूरब से पश्चिम की दिशा में बहती है. हिंदुओं के लिए हर साल धार्मिक मेले का आयोजन होता है. इस मेले को  “पछीम वाहिनी मेला” कहा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यहां गंगा पूरब से पश्चिम दिशा में बहती है.

महान अघोरेश्वरी का जन्मस्थल
तहसील सखलढ़ा गांव रामगढ़ को महान अघोरेश्वरी संत श्रीकनारम बाबा के जन्म स्थान के रूप में जाना जाता है. चहनिया से दूर वह वैष्णव विश्वास और शिव और शासक विश्वास का एक महान अनुयायी थे और भगवान शक्ति में विश्वास करते थे. उन्होंने मानव जाति की सेवाओं के लिए अपने पूरे जीवन को समर्पित किया. यह स्थान हिंदू धर्म के लिए बेहद पवित्र स्थान माना जाता है. 

हेतमपुर का हेतमपुर किला
शहर के हेतमपुर गांव में हेतमपुर किला भी काफी मशहूर है. ऐसा कहा जाता है कि यह किला 14 वीं से 15 वीं शताब्दी के बीच टॉड मॉल खत्री द्वारा बनाया गया था, जो शेर शाह सूरी के राज्य में निर्माण पर्यवेक्षक था. मुगल काल के बाद इस किले पर हितम खान, तालुकदार और जगिरद का कब्जा रहा. यहां पांच प्रसिद्ध बर्बाद किए गए कोट हैं, जिन्हें भूलनाई कोट, भितारी कोट, बिकली कोट, उदय कोट और दक्षिणी कोट के रूप में जाना जाता है. ये सभी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. कहते हैं कि यह हेट खुद निर्मित हुआ था.

क्या है इसका इतिहास?
काशी साम्राज्य का हिस्सा होने के नाते, चंदौली का इतिहास काशी राज्य और वाराणसी जिले के जैसा ही है. भगवान बुद्ध के जन्म से पहले भारतवर्धन को सोलह महाजनपदों में विभाजित किया गया था. काशी उनमें से एक था और इसकी राजधानी वाराणसी थी. इसके आसपास के इलाकों के साथ आधुनिक वाराणसी को काशी महाजनपद कहा जाता था. वाराणसी शहर देश दुनिया के प्राचीन शहरों में से एक है. इसका नाम पुराण, महाभारत और रामायण में भी जिक्र है. यह हिंदू और बौद्ध और जैन का एक पवित्र स्थान भी है. काशी का नाम सातवें राजा काशी के नाम पर पड़ा. इस वंश के राजा धन्वंतरि सातवीं पीढ़ी के बाद इस क्षेत्र पर शासन करने वाले प्रसिद्ध राजा थे, जिनका नाम चिकित्सा के क्षेत्र में आयुर्वेद के संस्थापक के रूप में प्रसिद्ध हैं.

ब्रह्मदत्त वंश का प्रभुत्व
काशी साम्राज्य महाभारत युद्ध से पहले शताब्दी के दौरान मगध के ब्रह्मदत्त वंश का प्रभुत्व था, लेकिन महाभारत काल के बाद में ब्रह्मदत्त वंश का उदय हुआ. इस पीढ़ी के लगभग 100 राजवंशों को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जिनमें कई शासक चक्रवर्ती सम्राट बने. काशी के राजा मनोज ने अपने कब्जे में कौशल, अंग और मगध के राज्य लिये और अपने साम्राज्य को अपने प्रदेशों से जोड़ा. 1775 में काशी साम्राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के प्रभाव में आया.  

यह भी पढ़ें:  Muzaffarnagar Ka Itihas: हस्तिनापुर-कुरुक्षेत्र जैसे महाभारत युद्ध का गवाह रहा मुजफ्फरनगर, शाहजहां ने कैसे बदला शहर का इतिहास?

Trending news