Shiv Puran: शिवरात्रि के महत्व का वर्णन शिव पुराण में शिवजी ने स्वयं किया है...पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ में शिवजी ने सौ करोड़ श्लोकों से सभी पुराणों की रचना की थी। द्वापर युग में महर्षि वेदव्यासजी ने इन पुराणों को संक्षिप्त करके 18 भागों में बांटा...
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Shiv Puran: शिव पुराण 18 महापुराणों में से एक है. शिव पुराण में 7 संहिता हैं और कुल 24 हजार श्लोक में शिवजी की कथा, पूजा की विधि, शिवलिंग की पूजा का रहस्य समाहित है. पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ में शिवजी ने सौ करोड़ श्लोकों से सभी पुराणों की रचना की थी. द्वापर युग में महर्षि वेदव्यासजी ने इन पुराणों को संक्षिप्त करके 18 भागों में बांट दिया था. शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा का रहस्य और शिवरात्रि के महत्व का जो वर्णन किया गया है वह हर शिव भक्त को जानना चाहिए. जिस भक्त ने इस शिवलिंग की पूजा का रहस्य और शिवरात्रि के महत्व को जाना वह शिवजी का प्रिय भक्त होकर शिव का हो गया है . इसलिए शिवलिंग की पूजा का रहस्य और शिवरात्रि के महत्व को ध्यान पूर्वक सभी मनुष्य को जानना चाहिए और इस कथा को सुनना पढ़ना चाहिए. जानते हैं इस लेख में शिव पुराण की कुछ बातें....
ऋषियों ने पूछा रहस्य
एक समय ऋषियों के बीच सूतजी पहुंचे तो ऋषियों ने सूतजी का स्वागत किया और उनसे शिवजी के रहस्यों को बताने का अनुग्रह किया. सूत जी से ऋषियों ने पूछा कि सभी देवी देवताओं की मूर्तियों की पूजा होती है लेकिन लिंग रूप में केवल शिवजी की ही पूजा होती है इसके पीछे का क्या रहस्य है.
सगुण और निर्गुण दोनों रूपों में पूजा
ऋषियों की ये बात सुनकर सूतजी ने कहा कि इसका उत्तर तो खुद शिवजी के अलावा और कोई नहीं दे सकता है. लेकिन जैसा कि मुझे मेरे गुरु व्यासजी को भगवान शिव ने बताया था और मुझे गुरु व्यासजी ने कहा वह सब उसी प्रकार से मैं तुम सबको बताता हूं. उस समय सूतजी ने कहा कि, जितने भी देवी देवता हैं वह सकल यानी साकार रूप में हैं. लेकिन एक महादेव शिवजी ही ब्रह्मरूप में होने से सकल और निष्कल यानी निराकार हैं. इसलिए भगवान शिव की पूजा सगुण और निर्गुण निराकार दोनों रूपों में भी होती है.
बह्माजी और विष्णुजी ने किया था अनुनय
वेदों में उल्लेख मिलता है कि शिवलिंग की पूजा का रहस्य बताते हुए नंदी महाराज ने बताया था कि, एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद छिड़ गया था. जिसके बाद देवता शिवजी के पास गए थे और भगवान शिवजी से आग्रह किया कि ब्रह्माजी और विष्णुजी के इस विवाद का अंत करें. शिवजी विवाद का अंत करने के लिए अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हो गए. इस स्तंभ के आदि अंत का पता लगाने के लिए ब्रह्मा और विष्णुजी अपने-अपने वाहन पर चढ़कर उड़ चले. लेकिन इसके बाद भी आदि अंत का पता न चलने पर दोनों ही वापस आ गए. फिर शिवजी ने अपने परब्रह्म स्वरूप का रहस्य प्रकट किया. कथा अनुसार बह्माजी और विष्णुजी ने भगवान शिव से पूजा योग्य लिंग रूप में प्रकट होने का आग्रह किया. इसके बाद ब्रह्मा और विष्णुजी ने सबसे पहले शिवलिंग की पूजा की. फिर इसके बाद अन्य देवी देवताओं ने शिवजी के निराकार रूप यानी शिवलिंग की पूजा की.
हड़प्पा सभ्यता में मिले साक्ष्य
हड़प्पा और मोहनजोदाड़ो की खुदाई से पत्थर के बने लिंग और योनी मिले. यहां पर एक ऐसी मूर्ति मिली जिसके गर्भ से पौधा निकलते हुए दिखाया गया. ऐसा प्रमाण है कि आरंभिक सभ्यता के लोग प्रकृति के पूजक थे. उस सभ्यता के लोग मानते थे कि संसार की उत्पत्ति लिंग और योनी से हुई है. इसी से लिंग पूजा की परंपरा चल पड़ी. शिवलिंग बताता है कि इस संसार में केवल पुरुष और केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है. दोनों, एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों ही समान हैं.
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