Jitiya Vrat Katha 2023: जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जिउतिया व्रत भी कहा जाता है इस साल 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इसके लिए महिलाओं ने तैयारियां शुरू हो गई हैं. इस पूजा में व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए.
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Jitiya Vrat Katha 2023: हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का खास महत्व है. इसे जितिया या जिउतिया व्रत भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के मुताबिक, हर साल आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत किया जाता है. इस साल जितिया व्रत 6 अक्टूबर 2023, शुक्रवार को पड़ रहा है. इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, उन्नति और उनकी सुख-समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखेंगी. पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़ी जाती है. मान्यता है कि व्रत कथा के बिना पूजा अधूरी होती है. ऐसे में हम आपको जितिया व्रत की कथा बताने जा रहे हैं.
पहली कथा
जितिया व्रत कथा को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक, इसका महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया. शिविर में सो रहे पांच लोगों को अश्वत्थामा ने पांडव समझकर मार दिया, लेकिन द्रौपदी की पांच संतानें मारी गईं. उसके बाद अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि उसके माथे से निकाल ली. अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने का प्रयास किया. उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे को जीवित्पुत्रिका के नाम से भी जाना जाता है. तब से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा.
दूसरी कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, गंधर्वों के एक राजा थे, जिनका नाम जीमूतवाहन था. जीमूतवाहन शासक बनने से संतुष्ट नहीं थे. जिससे उन्होंने अपने भाइयों को अपने राज्य की सभी जिम्मेदारियां दे दीं और अपने पिता की सेवा के लिए जंगल में चले गए. एक दिन जंगल में भटकते हुए उन्हें एक बुढ़िया रोती हुई मिली. उन्होंने बुढ़िया से रोने का कारण पूछा. इसपर उसने बताया कि वह सांप (नागवंशी) के परिवार से है. उसका एक ही बेटा है. एक शपथ के रूप में हर दिन एक सांप पक्षीराज गरुड़ को चढ़ाया जाता है और उस दिन उसके बेटे का नंबर था.
बुढ़िया की समस्या सुनने के बाद जिमूतवाहन ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह उनके बेटे को जीवित वापस लेकर आएंगे. तब वह खुद गरुड़ का चारा बनने का विचार कर चट्टान पर लेट जाते हैं. तब गरुड़ आता है और अपनी अंगुलियों से लाल कपड़े से ढके हुए जिमूतवाहन को पकड़कर चट्टान पर चढ़ जाता है. उसे हैरानी होती है कि जिसे उसने पकड़ा है वह कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहा है. तब वह जिमूतवाहन से उनके बारे में पूछता है. जिमूतवाहन के बारे में जानकर और उनकी वीरता और परोपकार से प्रसन्न होकर गरुड़ सांपों से कोई और बलिदान नहीं लेने का वादा करता है. इस तरह से जीमूतवाहन ने नागों की रक्षा की. मान्यता है कि तब से ही जीमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हुई. इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र और कल्याण के लिए जितिया व्रत रखती हैं.
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