OBC आरक्षण के लिए आयोग का गठन, यूपी नगर निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट के फैसले के 24 घंटे में ऐलान
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OBC आरक्षण के लिए आयोग का गठन, यूपी नगर निकाय चुनाव पर हाईकोर्ट के फैसले के 24 घंटे में ऐलान

UP Nagar Nikay Chunav 2022 : उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के बाद OBC आरक्षण के लिए आयोग का गठन कर दिया है. हाईकोर्ट ने निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग आरक्षण के लिए आयोग गठित करने का आदेश दिया था.

Nagar Nigam Election 2022 in UP

UP Nagar Nikay Chunav 2022 : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण की अनुशंसा के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले के बाद 24 घंटे के भीतर यह निर्णय़ लिया गया है. 

जानकारी के अनुसार, उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने के लिए राज्य सरकार ने आयोग गठित किया है. यूपी सरकार ने 5 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया है. ये आयोग मानकों के आधार पर पिछड़े वर्गों की आबादी को लेकर सर्वे कर शासन को रिपोर्ट सौंपेगी. इस आयोग का अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस राम अवतार सिंह को बनाया गया है. सदस्यों में चोब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, संतोष विश्वकर्मा और ब्रजेश सोनी शामिल हैं. ये आयोग राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित किया गया है, जो जल्द से जल्द सर्वे कर रिपोर्ट शासन को सौंपेगा.

उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को आदेश दिया था कि ओबीसी आरक्षण के लिए रैपिड टेस्ट का फार्मूला सही नहीं था. यूपी सरकार को डेडिकेटेड आयोग बनाकर पिछड़ा वर्ग आरक्षण की प्रक्रिया का पूरा पालन करना चाहिए था. अदालत ने सरकार से कहा था कि या तो वो ओबीसी आरक्षण वाली सीटों को सामान्य घोषित कर चुनाव कराए या पिछड़ा वर्ग आरक्षण के लिए आयोग गठित कर प्रक्रिया को 31 जनवरी तक पूरा करे. 

अदालती फैसले के तुरंत बाद सपा, बसपा जैसे विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला करना शुरू कर दिया था. सपा और बसपा ने बीजेपी पर आरक्षण विरोधी और संविधान विरोधी होने की तोहमत तक मढ़ दी. हालांकि  सरकार ने विपक्षी हमलों की धार को कुंद करने के लिए त्वरित निर्णय़ लेते हुए आयोग का गठन कर दिया है. हालांकि अब देखना होगा कि ये आयोग क्या 31 जनवरी की समयसीमा में अपनी सिफारिशें दे पाता है, या फिर सरकार हाईकोर्ट की बड़ी बेंच या सुप्रीम कोर्ट से इसकी समयसीमा बढ़ाने के लिए अनुरोध करेगी. 

जानें आरक्षण की पूरी प्रक्रिया 

देश में जनसंख्या के आंकड़े प्रकाशित होते हैं यानी जनगणना होती है. उसके तुरंत बाद पिछड़े वर्ग के व्यक्तियों की संख्या का निर्धारण नियमावली  1994 के प्रावधानों के पंचायती राज विभाग द्वारा कराया जाता है.  उसी सर्वे के आधार पर जनसंख्या के आंकड़ों को सम्मिलित करते हुए त्रिस्तरीय पंचायतों के पदों में आरक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है.

पिछली जनगणना वर्ष 2011 में हुई है. पंचायती राज विभाग द्वारा पिछडे वर्गों का रैपिड सर्वे माह मई वर्ष 2015 में कराया गया था. इसी सर्वे के आधार पर त्रिस्तरीय पंचायतों के निर्वाचन वर्ष 2015 और 2021 में कराए गए हैं. निकायों में पिछड़े वर्ग के आरक्षण की व्यवस्था उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 में वर्ष 1994 से की गई है.

कितना मिलेगा आऱक्षण
आरक्षण निकायों में पिछड़ा वर्ग की कुल जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी है. जो कि 27 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा. पिछड़ा वर्ग के लिये आरक्षण देने हेतु अधिनियम में दी गई प्रक्रिया से सर्वे कराए जाने की व्यवस्था की गई है.

2005 में रैपिड सर्वे का आदेश
राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक निकाय में पिछड़ा वर्ग का सर्वेक्षण कराया जाता है. इसके लिए समयांतराल पर नवीनतम आंकड़ों के लिए सर्वे का दिशानिर्देश जारी किया जाता है. वर्ष 2001 की जनगणना के बाद हुए प्रथम निर्वाचन के लिए अधिनियम में दी गई विधिक व्यवस्था के अन्तर्गत वर्ष 2005 में रैपिड सर्वे कराने का आदेश जारी हुआ था. 

नगर निकायों का विस्तार हुआ
इसी तरह बड़ी संख्या में (241) नगर निकायों के सीमा विस्तार और गठन के बाद उन निकायों पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या के लिए रैपिड सर्वे का शासनादेश वर्ष 2022 में जारी हुआ था. यूपी सरकार द्वारा पिछड़ा वर्ग का आरक्षण उनकी नवीनतम सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर कानून में दी गई व्यवस्था के अनुसार आरक्षण तय किया गया.

सरकार ने अदालती फैसले के बाद अपनी स्थिति स्पष्ट की
वर्ष 1994 के बाद अब तक नगर निकायों के सारे चुनाव (1995, 2000, 2006, 2012 एवं 2017) अधिनियम में इन्ही प्रावधानों एवं रैपिड सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर कराए गए हैं.कानून में दी गई प्रक्रिया और रैपिड सर्वे के शासनादेश वर्ष 2022 को कोर्ट द्वारा निरस्त नहीं किया गया हैं.

सरकार का बयान
ओबीसी आयोग का गठन करते हुए योगी सरकार ने कहा, अन्य पिछड़े वर्गों को कानून के अनुसार आरक्षण दिये जाने की दिशा में उच्च न्यायालय के आदेश का अध्ययन करते हुए ये कार्यवाही कर रही है. यह संवैधानिक बाध्यता है कि अन्य पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व निकाय चुनाव में होना चाहिए. राज्य सरकार इस सवैधानिक जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए कटिबद्ध है.

 

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