Maharana Pratap Death Anniversary :महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि आज, युद्ध में अकबर को भी पिला दिया पानी...
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Maharana Pratap Death Anniversary :महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि आज, युद्ध में अकबर को भी पिला दिया पानी...

Maharana Pratap Death Anniversary :  आज महान योद्धा महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि है. भारत मां के एक ऐसे सपूत जिन्होंने मुगलिया सल्तनत के बादशाह अकबर को भी युद्ध में पानी पिला दिया था. यानी उसके दांत खट्टे कर दिए थे. 

Maharana Pratap Death Anniversary :महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि आज, युद्ध में अकबर को भी पिला दिया पानी...

Maharana Pratap Death Anniversary : भारत में वीर सपूतों की धरती है. समय-समय पर इस धरती को राजपूतों और वीरों ने अपने अदम्य साहस से प्रेरित किया है. महाराणा प्रताप ऐसे ही एक महान योद्धा हैं. वीरता के आगे किसी की भी कहानी नहीं टिकती है. उन्होंने राजस्थान ही नहीं भारत की शान को भी एक विशेष स्थान दिया. मेवाड़ के राजा रहे महाराणा ने जीवन में कभी किसी दासता मंजूर नहीं की.

अपनी सेना से कई गुना ज्यादा ताकतवर अकबर की सेना से लोहा लेकर उन्होंने साबित कर दिया कि वे ही सही मायनों में महाराणा थे. अकबर ने बहुत कोशिश की और आखिरकार उसे उन्हें पकड़ने का ख्याल दिल से निकलना पड़ा. महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को हुआ था और तब तक वे अपने मेवाड़ को बहुत सुरक्षित भी कर चुके थे.

महावीर और युद्ध रणनीति कौशल
मेवाड़ के कुंभलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था. वह उदय सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े बेटे थे. वे एक प्रतापी राजा और युद्ध कौशल में दक्ष थे. उन्होंने मेवाड़ की मुगलों के बार बार हुए हमलों से रक्षा की और आन बान शान के लिए कभी समझौता नहीं किया. कितनी ही विपरीत परिस्थितियां क्यों ना हों उन्होंने कभी हार नहीं मानी.

हल्दी घाटी का युद्ध
महाराणा प्रताप की वीरता की पुष्टि उनके युद्ध की घटनाएं करती हैं जिनमें सबसे प्रमुख 8 जून 1576 ईस्वी में हुए हल्दी घाटी के युद्ध का युद्ध था जिसमें महाराणा प्रताप की लगभग 3,000 घुड़सवारों और 400 भील धनुर्धारियों की सेना ने आमेर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में लगभग 5,000-10,000 लोगों की सेना को लोहे के चने चबवा दिए थे. 

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असंतुलित युद्ध में बराबारी का मुकाबला
तीन घण्टे से अधिक समय तक चले इस युद्ध में महाराणा प्रताप प्रताप जख्मी हो गए थे लेकिन फिर भी मुगलों को हाथ नहीं आए.  कुछ साथियों के साथ वह पहाड़ियों में जाकर छिप गए जिससे वे अपनी सेना को जमा कर फिर से हमला करने के लिए तैयार कर सकें. लेकन तब तक मेवाड़ के मारे गए सैनिकों की संख्या 1,600 तक पहुंच गई थी जबकि मुगल सेना ने 350 घायल सैनिकों के अलावा 3500-7800 सैनिकों की.

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