आंबेडकर-नेहरू की समान नागरिक संहिता पर क्या थी सोच, उत्तराखंड यूसीसी बिल के बीच सुर्खियों में संविधान निर्माताओं के बयान
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आंबेडकर-नेहरू की समान नागरिक संहिता पर क्या थी सोच, उत्तराखंड यूसीसी बिल के बीच सुर्खियों में संविधान निर्माताओं के बयान

Unifrom Civil Code: उत्तराखंड विधानसभा में आज यूसीसी बिल पेश किया गया है. इसको लेकर सियासी माहौल गरमाया हुआ है.  संविधान सभा की बैठक में ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बीआर आंबेडकर ने भी यूसीसी के पक्ष दलीलें दी थीं. लेकिन यह लागू नहीं हो पाया था. 

आंबेडकर-नेहरू की समान नागरिक संहिता पर क्या थी सोच, उत्तराखंड यूसीसी बिल के बीच सुर्खियों में संविधान निर्माताओं के बयान

Unifrom Civil Code: समान नगारिक संहिता यानी यूसीसी को लेकर सियासी माहौल गरमाया हुआ है. समान नागरिक संहिता संविधान का अहम हिस्सा है. यूसीसी के समर्थक इसके फायदे गिना रहे हैं जबकि दूसरा पक्ष कमियां बताकर विरोध कर रहा है. संविधान सभा की बैठक में ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष बीआर आंबेडकर ने भी यूसीसी के पक्ष दलीलें दी थीं. लेकिन यह लागू नहीं हो पाया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी इसे पक्ष में थे. 

23 नवंबर 1948 को यूसीसी का मुद्दा पहली बार संविधान सभा में उठाया गया. इसे बॉम्बे (अब मुंबई) से कांग्रेस के सदस्य मीनू मसानी ने प्रस्तावित किया गया था, इस विषय पर जोरदार और व्यापक बहस हुई. उस समय, यूसीसी अनुच्छेद 35 के अंतर्गत आता था.  समान नागरिक संहिता को सबसे पहले महिला सदस्यों का समर्थन मिला. संविधान सभा में 15 महिला सदस्य थीं. हंसा मेहता इन 15 में से एक थीं, और उन्होंने यूसीसी की पैरवी की थी. उनके अलावा, राजकुमारी अमृत कौर, डॉ. भीमराव अंबेडकर, मीनू मसानी, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर ने यूसीसी के कार्यान्वयन का मुखर समर्थन किया और इसके पक्ष में जोरदार तर्क दिया. 

2 दिसंबर 1948 को इस बहस के निष्कर्ष पर बोलते हुए संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर ने कहा था, "इसमें कोई नई बात नहीं है. देश में विवाह, विरासत आदि मसलों को छोड़ कर पहले ही कई समान नागरिक संहिताएं हैं." मुसलमान सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि धर्म कैसे इतनी जगह घेर सकता है कि सारा जीवन ही ढक ले और विधायी नियमों को जमीन पर उतरने से रोके. आखिर हमें ये आजादी किस लिए मिली है? हमें ये आजादी हमारी सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मिली है."

उन्होंने बहस समाप्त करते हुए निष्कर्ष में कहा, ''यूनिफॉर्म सिविल कोड वैकल्पिक व्यवस्था है. ये अपने चरित्र के आधार पर नीति निदेशक सिद्धांत होगा. इसी वजह से राज्य फौरी तौर पर यह प्रावधान लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं. राज्य को जब सही लगे तब इसे लागू कर सकता है. शुरुआती संशोधनों का जवाब देते हुए आंबेडकर ने कहा कि भविष्य में समुदायों की सहमति के आधार पर ही इस प्रावधान पर कानून बनाए जा सकते हैं और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू किया जा सकता है.''

आंबेडकर का भाषण इस बहस पर आखिरी भाषण था. इसके बाद आर्टिकल 35 का ड्राफ्ट संविधान सभा में वोटिंग के लिए रखा गया. वोटिंग के बाद आर्टिकल 35 को नीति निदेशक सिद्धांतों में डाल दिया गया और इसकी संख्या बदल कर आर्टिकल 44 कर दी गई. आंबेडकर ही नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सहित कांग्रेस के ज्यादातर सदस्य भी यूसीसी के समर्थन में थे. 

संविधान के भाग-4 में यूसीसी की बात 
संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक नीति निदेशक तत्व का उल्लेख है. इसमें अनुच्छेद 44 यूसीसी की बात करता है. यानी देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक कानून की व्यवस्था की जानी चाहिए. नीति निदेशक तत्वों को ध्यान में रख कर सरकारों को नियम-कानून और नीतियां बनाने के निर्देश हैं. सरकार या कोई भी नागरिक इनका पालन करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है, बाध्य नहीं.

उत्तराखंड में आज पेश होगा यूसीसी विधेयक
उत्तराखंड में यूसीसी के फाइनल ड्रॉफ्ट पर मुहर लगने के बाद इस विधेयक को 6 फरवरी यानी आज विधानसभा में पेश किया जाएगा. यानी कानून बनते ही उत्तराखंड में यह लागू हो जाएगा.

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