Azamgarh News : आजमगढ़ जिले के सियरहा गांव में रहने वाला एक परिवार साल 1912 में गुयाना चला गया था. अब उनके पोती-पोता अपने पुरखों की धरती को तलाश करते हुए सियरहा गांव पहुंच गए.
Trending Photos
वेदेन्द्र प्रताप शर्मा/आजमगढ़ : भारत के बाहर बड़ी संख्या में भारतीय बसे हुए हैं, जिनमें गिरमिटिया के लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है. इनका भारत से रिश्ता टूट गया था लेकिन अब गिरमिटिया लोग अपने परिवार को तलाश रहे हैं. उनसे आकर मिल रहे हैं. ऐसे ही 1912 में रामजी गुयाना देश चले गए थे जिनके पोती और पोता भारत आकर अपने परिजनों से मिले.
गिरमिट समाज किसे कहते हैं?
भारत का प्रवासी समाज बहुत बड़ा है. उसमें भी गिरमिट लोगों की संख्या बहुत बड़ी है. गिरमिट समाज वह है जिनको अंग्रेज कई देशों में गन्ने की खेती के लिए ले गए थे. कुछ देशों में तो भारतीय प्रवासी भारतीय प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति भी है. ऐसे ही एक गिरमिट परिवार जिनक पूर्वज आजमगढ़ के सियरहा गांव से गुयाना चले गए थे. आज उसी परिवार से दो भाई बहन अपने परिवार के लोगों से मिलने आए. परिजनों से मिलकर बहुत खुश हुए.
भाई अमेरिका तो बहन कनाडा से
जब दोनों भाई बहनों से बात की. इनमें भाई पंडित महेंद्र तिवारी अमेरिका में रह रहे हैं. वहीं, बहन गिरजामणि कनाडा में रहती हैं. महेंद्र नौकरी से रिटायर हो चुके हैं और पहली बार भारत आए हैं. पहली बार भारत आने व अपने परिवार से मिलने के अनुभव पर महेंद्र तिवारी ने कहा कि वह देखना चाहते थे कि उनके बाबा किस जगह से किस परिवार से आए थे.
परिवार से मिलकर खुश हूं
उन्होंने बताया कि उनके पिता पंडित थे पूजा पाठ करवाते थे लेकिन इनके भाई हिंदी या संस्कृत ही नहीं जानते ये लोग अपनी भाषा से ही दूर हो गए जिससे ये पूजा या पंडिताई कार्य अब नहीं करवा सकते. महेंद्र ने बताया कि हमारे पिता संस्कृत के ज्ञाता थे. अपने परिवार से मिलकर महेंद्र बहुत उत्साहित हूं और फिर आने को बोल रहे हैं.
दूसरी बार भारत आईं गिरजामणि
भारत, गुयाना, अमेरिका और अन्य देशों में बसे भारतीय आज भी भारतीय संस्कृति का बखूबी पालन करते हैं. महेंद्र तिवारी के साथ आईं उनकी बहन गिरजामणि ने बताया कि उनका भारत का दूसरा दौरा है, लेकिन अपने पूर्वजों के घर जाने का पहला अनुभव है. गिरजामणि का कहना है कि गिरमिट महिलाओं का बड़ा योगदान है, भारतीय संस्कृति और धर्म को बचाने में. महिलाएं नियमित मंदिर जाती हैं चाहे उन्हें मंदिर अकेले ही क्यों न जाना पड़े.