Mathura News: आजादी के लिए 70 राजपूतों ने हंसते-हंसते दी थी जान, जानें अडींग किले की कहानी
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Mathura News: आजादी के लिए 70 राजपूतों ने हंसते-हंसते दी थी जान, जानें अडींग किले की कहानी

Mathura News: जब भी भारत की आजादी के बारे में बात होती है. तो कई स्वतंत्रता सेनानी हमारे जहन में आते हैं. लेकिन कई देश से मोहब्बत करने वाले ऐसे भी है जिनकी कहानी ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाई है. आज हम उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित एक ऐसी हवेली के बारे में आपको बताने वाले हैं. यहां अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहे 70 परिवारों को मौत के घाट उतार दिया गया. 

Mathura News:  आजादी के लिए 70 राजपूतों ने हंसते-हंसते दी थी जान, जानें अडींग किले की कहानी

कन्हैया लाल शर्मा/मथुरा: भारत की आजादी जितनी आसान लगती है उतनी है नहीं. देश को आजादी दिलाने के लिए देश भक्तों को किन हदों तक जाना पड़ा है आज हमें इसका अंदाजा नहीं है. आज एक ऐसी ही कहानी है उत्तर प्रदेश के मथुरा में बसे अडींग गांव की यहां एक ही परिवार के 70 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटका दिया गया. 

क्रांतिकारियों से डरे थे अंग्रेज 
1857 की क्रांति की आग इस तेजी से मथुरा में फैली थी कि हर जगह अंग्रेजों के खिलाफ बगावत हो रही थी. अंग्रेजों के भवनों में आग लगा दी गई थी उनके खजाने लूटे जा रहे थे. इस सब पर ब्रिटिश सरकार ने अडींग में आजादी को लेकर आंदोलनों की बढ़ती संख्या देख वहां एक पुलिस चौकी की स्थापना कर दी. इसी बीच सिपाही अख्तियार ने बैरकपुर छावनी में कंपनी कमांडर की गोली मारकर हत्या कर दी. मौत की खबर लगते ही अंग्रेज घबरा गए और एक ही परिवार के 70 लोगों को अडींग के किले में फांसी की सजा दे दी. 

फांसी के बाद ग्रामीणों के साथ बर्बरता
राजपूत परिवार के 70 लोगों को एक साथ फांसी के फंदे पर लटकाने के बाद. अंग्रेजों ने ग्रामीणों पर कई महीनों पर बर्बर जुल्म ढाए गए. आज भी तत्कालीन भरतपुर के नरेश सुराजमल का किला मथुरा-गोवर्धन मार्ग के पास बसे अडींग गांव में मौजूद है. यहां वीर योद्धाओं के कई निशान किले में मिलते है और इतिहास के पन्नों पर उनका नाम अंकित है.  

होली से पहले लगता है अखाड़ा 
स्थानीय बुजुर्ग ने बताया कि घटना को याद करते हुए यहां होली से एक दिन पहले प्राचीन अखाड़े का आयोजन किया जाता है. यहां दूर-दूर से अन्य राज्यों से भी बड़ी संख्या में पहलवान अखाड़े में कुश्ती लड़ने आते हैं. इसी के साथ उन्होंने बताया कि जो भी पहलवान विजेता होता है उसे सम्मान के रूप में ट्रॉफी और रकम दी जाती है. बुजुर्ग ने कहा कि यहां इतनी ऐतिहासिक जगह होने के बाद भी सरकार ने ना तो कोई स्मारक बनवाया है ना हीं कोई गेट है तो सरकार से निवेदन है कि यहां शहीदों की याद में कुछ किया जाए.

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