Who is Swami Avimukteshwaranand Saraswati: शंकराचार्य को समाधि दिए जाने से पहले उनकी पार्थिव देह को दूध से स्नान कराया गया. 108 कलश से जलाभिषेक हुआ और चंदन के लेप के बाद उनकी अंतिम यात्रा निकली. उन्हें पालकी में समाधि स्थल तक ले जाया गया, जहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ समाधि दी गई.
Trending Photos
Who is Swami Sadanand: द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को राजकीय सम्मान के साथ हजारों लोगों की मौजूदगी में अंतिम विदाई दी गई. साथ ही उनके उत्तराधिकारियों की भी घोषणा कर दी गई है. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 99 वर्ष की आयु में रविवार को अंतिम सांस ली थी.
शंकराचार्य को समाधि दिए जाने से पहले उनकी पार्थिव देह को दूध से स्नान कराया गया. 108 कलश से जलाभिषेक हुआ और चंदन के लेप के बाद उनकी अंतिम यात्रा निकली. उन्हें पालकी में समाधि स्थल तक ले जाया गया, जहां पूरे राजकीय सम्मान के साथ समाधि दी गई.
द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारियों के नामों का ऐलान भी कर दिया गया है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद सरस्वती को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख घोषित किया गया है. इन दोनों के नाम की घोषणा शंकरचार्य की पार्थिव देह के सामने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निजी सचिव स्वामी सुबुधानंद सरस्वती ने की.
कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद?
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के ब्राह्मणपुर गांव में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का जन्म हुआ था. उनका असली नाम उमाशंकर है. जब उन्होंने ब्रह्मचर्य की दीक्षा ग्रहण की तो उनका नाम ब्रह्मचारी आनंद स्वरूप पड़ गया. इसके बाद उन्होंने स्वरूपानंद से दंडी की दीक्षा हासिल की और दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नाम से पहचाने जाने लगे. अविमुक्तेश्वरानंद काफी वक्त तक वाराणसी में डेरा डाले रहे. वह पहले से ही श्री विद्या मठ के साथ ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम का कामकाज संभाल रहे थे. वह कई विवादित मुद्दों पर बयान दे चुके हैं. वह साईं बाबा के विरोधी माने जाते हैं.
कौन हैं स्वामी सदानंद?
मध्य प्रदेश नरसिंहपुर से ताल्लुक रखने वाले स्वामी सदानंद का नाम रमेश अवस्थी है. यह नाम उनके माता-पिता ने दिया था. लेकिन जब उन्होंने ब्रह्मचर्य की दीक्षा ग्रहण की तो उनको ब्रह्मचारी सदानंद कहा जाने लगा. स्वरूपानंद सरस्वती ने ही द्वारका पीठ की जिम्मेदारी स्वामी सदानंद को सौंपी थी. 18 साल की आयु में ही उन्होंने शंकराचार्य का हाथ थाम लिया था. फिलहाल वो गुजरात के द्वारका शारदा पीठ में शंकराचार्य के प्रतिनिधि के तौर पर वहां का कामकाज देखते रहे हैं.
ये ख़बर आपने पढ़ी देश की नंबर 1 हिंदी वेबसाइट Zeenews.com/Hindi पर