Reservation News: जवाहरलाल नेहरू ने आरक्षण पर क्या कहा था, सुप्रीम कोर्ट के जज ने दोहराई वो बात
Advertisement
trendingNow12364063

Reservation News: जवाहरलाल नेहरू ने आरक्षण पर क्या कहा था, सुप्रीम कोर्ट के जज ने दोहराई वो बात

Supreme Court verdict on SC ST Quota: सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर एक बड़ा फैसला दिया है. SC ने कहा कि राज्यों को कोटा के अंदर कोटा देने के लिए अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है. चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ ने एक के मुकाबले छह मतों के बहुमत से फैसला दिया. एक जज ऐसे थे जिन्होंने आरक्षण पर नेहरू की चर्चा की. 

Reservation News: जवाहरलाल नेहरू ने आरक्षण पर क्या कहा था, सुप्रीम कोर्ट के जज ने दोहराई वो बात

Justice Pankaj Mithal: सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार करने की वकालत की है. खास बात यह है कि गुरुवार को उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1961 में लिखे गए एक पत्र का जिक्र किया. इस लेटर में नेहरू ने किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था. 7 जजों की संविधान पीठ में जस्टिस मिथल भी शामिल थे.

नेहरू के उस लेटर की चर्चा क्यों? 

न्यायमूर्ति मिथल ने कहा, ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 27 जून 1961 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित अपने पत्र में किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था. उन्होंने कहा था कि ऐसी प्रथा को छोड़ दिया जाना चाहिए और नागरिकों की मदद जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर करने पर जोर दिया जाना चाहिए. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मदद की हकदार है लेकिन किसी भी तरह के आरक्षण के रूप में नहीं, विशेषकर सेवाओं में.’ 

आरक्षण पर नेहरू का तर्क

नेहरू ने अपने पत्र में कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने. जिस क्षण हम दोयम दर्जे को बढ़ावा देते हैं, हम खो जाते हैं.’ उन्होंने पत्र में लिखा था, ‘पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा का अवसर देना है. इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, जो अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है. बाकी सबकुछ एक तरह की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरीर की ताकत या स्वास्थ्य में कोई वृद्धि नहीं करता है.’

पढ़िए: कोटे में कोटा... मतलब क्या है? कैसे बदलेगा आरक्षण का सिस्टम

दरअसल, चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से एक दिन पहले व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) में उपवर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है. कोर्ट ने कहा कि ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा

- उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है ताकि उन जातियों को आरक्षण प्रदान किया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं. हालांकि SC ने यह स्पष्ट किया कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा न कि मर्जी और राजनीतिक लाभ के आधार पर. 

- प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत के निर्णय के जरिए ‘ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार’ मामले में शीर्ष अदालत की पांच-सदस्यीय पीठ के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों (एससी) के किसी उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं. 

पढ़ें: SC-ST में 'क्रीमी लेयर' को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, जानिए किस जज ने क्या कहा

- CJI ने अपने 140 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'राज्य संविधान के अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, नस्ल, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव न करना) और 16 (सार्वजनिक रोजगार में अवसर की समानता) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए सामाजिक पिछड़ेपन की विभिन्न श्रेणियों की पहचान करने और नुकसान की स्थिति में विशेष प्रावधान (जैसे आरक्षण देने) के लिए स्वतंत्र है.' 

- प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'ऐतिहासिक और अनुभवजन्य साक्ष्य दर्शाते हैं कि अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप से विजातीय वर्ग हैं. इस प्रकार, अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए राज्य अनुसूचित जातियों को आगे वर्गीकृत कर सकता है, यदि (ए) भेदभाव के लिए एक तर्कसंगत सिद्धांत है; और (बी) तर्कसंगत सिद्धांत का उप-वर्गीकरण के उद्देश्य के साथ संबंध है.' 

- इस विवादास्पद मुद्दे पर कुल 565 पृष्ठों के छह फैसले लिखे गए. प्रधान न्यायाधीश ने अपनी ओर से और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की ओर से फैसले लिखे, जबकि न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी ने अपने-अपने फैसले लिखे. न्यायमूर्ति त्रिवेदी को छोड़कर अन्य पांच न्यायाधीश प्रधान न्यायाधीश के निष्कर्षों से सहमत थे. (भाषा के इनपुट के साथ)

Trending news