Freebie Culture: सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा है कि जो लोग मुफ़्त सुविधाओं को चाहते हैं , वो ये दावा करगे कि हमारे यहां जनता के लिए कल्याणकारी सरकार ( सोशल वेलफेयर स्टेट) की अवधारणा है, लिहाजा इसका फायदा हमें मिलना चाहिए. वहीं जो लोग टैक्स अदा कर रहे है वो इस पर ऐतराज जाहिर कर सकते है कि उनका पैसा विकास के काम पर लगाना चाहिए. लिहाजा हमने इस मसले पर कमेटी के गठन का सुझाव दिया है, जो दोनों पक्षो को सुने.
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Free schemes Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुफ़्त योजनाओं के चलते देश की आर्थिक सेहत खराब हो रही है, ये चिंता का विषय है. जनता की भलाई के लिए लाई जाने वाली योजनाओं और अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान के बीच संतुलन कायम करने की ज़रूरत है. जब हम दूसरे देशों की ओर देखते है तो हमे लगता है कि आर्थिक अनुशासन की ज़रूरत है.
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा है कि जो लोग मुफ़्त सुविधाओं को चाहते हैं , वो ये दावा करगे कि हमारे यहां जनता के लिए कल्याणकारी सरकार ( सोशल वेलफेयर स्टेट) की अवधारणा है, लिहाजा इसका फायदा हमें मिलना चाहिए. वहीं जो लोग टैक्स अदा कर रहे है वो इस पर ऐतराज जाहिर कर सकते है कि उनका पैसा विकास के काम पर लगाना चाहिए. लिहाजा हमने इस मसले पर कमेटी के गठन का सुझाव दिया है, जो दोनों पक्षो को सुने.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में भुखमरी की समस्या है. केन्द्र सरकार के पास इससे निपटने के लिए भी योजना है, लेकिन इस तरह की सोशल वेलफेयर स्कीम और मुफ्तखोरी को अलग अलग देखने की ज़रूरत है. सवाल ये है कि कोर्ट इस मामले में किस हद तक दखल दे सकता है. हम ऐसी घोषणा करने वाले राजनैतिक दलों की मान्यता रदद् नहीं कर सकते, क्योंकि ये अलोकतांत्रिक होगा. ये एक संजीदा मसला है और इसमे सभी की राय आना ज़रूरी है.
केन्द्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. उन्होंने कहा कि जनता की भलाई , सिर्फ मुफ्तखोरी की योजनाओं के जरिए नहीं हो सकती. अगर मुफ़्त योजनाओं के जरिये ही लोगो की भलाई के लिए सोचा गया, तो ये आर्थिक विनाश की वजह बनेगा. उन्होंने कहा कि जब तक सरकार इसे रोकने के लिए क़ानून लाती है, तब तक कोर्ट दखल देकर दिशानिर्देश तय कर सकता है. सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ज़्यादातर मुफ़्त घोषणाये पार्टियों के घोषणापत्रों का हिस्सा नहीं होती. इनकी घोषणा पार्टियों की ओर से रैली में की जाती है.
केंन्द्र सरकार ने मुफ्तखोरी पर लगाम कसने के लिए अपनी ओर से कमेटी के गठन का सुझाव दिया है. सरकार का कहना है कि इस कमेटी में शामिल होने चाहिए...
* रिटायर्ड CAG या नेशनल टैक्स पेयर्स आर्गेनाईजेशन के प्रतिनिधि
*केंद्र सरकार की ओर से वित्त सचिव
* राज्यों के वित्त सचिव
* हर राष्ट्रीय राजनीतिक दल का प्रतिनिधि
* वित्त आयोग के चेयरमैन
* आरबीआई के प्रतिनिधि -डिप्टी गवर्नर
* नीति आयोग- CEO
* चुनाव आयोग के प्रतिनिधि
* योजनाओ का फायदा उठाने वाले लाभार्थी समूह
*FCCI या CII जैसे संगठन
* मुफ्तखोरी के चलते आर्थिक संकट झेल रहे सेक्टर के प्रतिनिधि( मसलन बिजली कंपनियां)
आम आदमी पार्टी का पक्ष
इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट में आम आदमी पार्टी ने भी याचिका दाखिल की है. आम आदमी पार्टी का कहना है कि मुफ़्त पानी, मुफ़्त बिजली, मुफ़्त ट्रांसपोर्ट जैसी सुविधाएं मुफ्तखोरी नहीं कही जा सकती, बल्कि ये एक समतामूलक समाज को बनाने के लिए एक सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है. आज अभिषेक मनु सिंघवी आम आदमी पार्टी की ओर से पेश हुए. उन्होंने कहा कि वेलफेयर स्कीम को मुफ्तखोरी बताकर भ्रम की स्थिति पैदा की जा रही है. कोर्ट देखे कि क्या वाकई ऐसी कमेटी के गठन की ज़रूरत है भी या नहीं.
चीफ जस्टिस ने निजी उदाहरणों का हवाला दिया
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि उनके ससुर किसान है. उस वक़्त जमीदार किसानों को फ्री बिजली नहीं दी जाती थी. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं इसके लिए कोर्ट में अर्जी दायर कर सकता हूं. मैंने इससे इंकार करते हुए कहा कि वे सरकार का नीतिगत मसला है, लेकिन कुछ समय बाद सरकार ने अनाधिकृत कनेक्शन जोड़ने वाले लोगों के कनेक्शन वैध कर दिए. मेरे पास उनको समझाने के लिए कोई जवाब नहीं था. जहां मुझे बंगला मिला, वहां मैं अपने घर की ईट को भी नहीं छू सकता था क्योंकि ये नियमों का उल्लंघन होता और मेरे नजदीक के बंगले वाले लोग अपने फ्लोर की संख्या बढ़ाते रहे. बाद में सरकार ने वो अवैध निर्माण नियमित भी कर दिए. इसलिए ये नया नहीं है कि कई बार नियमों को तोड़ने वालों के काम को मंजूरी मिल जाती है और क़ानून का पालन करने वाले को कई बार नुकसान झेलना पड़ता है. लिहाजा हम चाहते है कि आर्थिक नुकसान और लोगों के कल्याण के लिए लायी जाने वाली योजनाओं के बीच संतुलन रहे। इसके लिए सभी पक्ष सुझाव दे. सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.
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