चिलचिलाती धूप में दोपहर 12 से 3 सात अंग्निकुंड के बीच संत कर रहे तपस्या, जानिए वजह
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चिलचिलाती धूप में दोपहर 12 से 3 सात अंग्निकुंड के बीच संत कर रहे तपस्या, जानिए वजह

उदयपुर न्यूज: उदयपुर में एक संत चिलचिलाती धूप में दोपहर 12 से 3 सात अंग्निकुंड के बीच तपस्या कर रहे हैं. उनके इस तप की वजह है  जिससे संस्कृति की रक्षा के साथ विश्व का कल्याण.

 

चिलचिलाती धूप में दोपहर 12 से 3 सात अंग्निकुंड के बीच संत कर रहे तपस्या, जानिए वजह

उदयपुर: सनातन संस्कृति रक्षा और विश्व कल्याण की कामना को लेकर लोग कई तरह के प्रयास करते हैं. वर्तमान दौर में कोई पौराणिक काल की तरह तप कर विश्व कल्याण की कामना करे तो ये कल्पना से परे लगता है. लेकिन उदयपुर के आदिवासी इलाके में एक संत कुछ ऐसा ही कठिन तप कर रहे हैं. जिससे संस्कृति की रक्षा के साथ विश्व का कल्याण हो सके.

मई माह की गर्मी में अपने चारों ओर आग लगा कर साधना में लीन एक संत की एक तस्वीर समाने आई है. ये उदयपुर जिले के आदिवासी अंचल झाडोल के गोपेश्वर महादेव मंदिर की है. जहां आश्रम के संत तुलसीगिरी महाराज पिछले कुछ दिनों से कड़ी तपस्या कर रहे हैं. विश्व कल्याण और सनातन संस्कृति रक्षार्थ जारी तुलसीगिरी महाराज की यह तपस्या बेदह खास और कठिन है. 

महाराज हर रोज खुले आसमान के नीचे दोपहर 12 बजे की कड़ी धूप के बीच अपनी तपस्या शुरू करते हैं जो तीन बजे तक चलती है. इस दौरान उनके तपस्या स्थल के आस पास सात अग्नी कुंड प्रज्वलित किए जाते है. जिसमें विभिन्न औषधियों की आहुतियां दी जाती है. करीब तीन घंटे की इस तपस्या के दौरान संत तुलसीगिरी महाराज पूरी तरह से ध्यान योग में रहते हैं. इस दौरान बड़ी संख्या में आस पास के गांव के लोग तपस्या में लीन महाराज के दर्शन करने पहुंच रहे है. यहां पहुंचने वाले भक्त इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि उनके कारण महाराज की तपस्या में किसी तरह भी तरह का विघ्न नहीं हो.

सप्ताग्नी गुणा तप कर रहे संत तुलसीगिरी

संत की सेवा में लगे पंडित गोविन्द शास्त्री ने बताया कि महाराज सप्ताग्नी गुणा तप कर रहे हैं. जो सनातन संस्कृति और विश्व कल्याण को देने वाला है. यह तप सवा महीने से भी अधिक समय तक चलेगा. अपने अनुष्ठान को लेकर महाराज हर रोज सुबह चार बजे उठे जाते हैं. इसके बाद महादेव का अभिषेक किया जाता है. साथ ही रामायण और रूद्री पाठ का आयोजन होता है. दोहपर 12 बजे सप्त कुंडों के बीच महाराण का तप शुरू हो जाता है. इससे पहले महाराज के पूरे शरीर पर विशेष भष्म का लेप किया जाता है और फिर उनकी तपस्या शुरू होती है.

करीब तीन घंटे तक महाराण ध्यान योग में विभिन्न मंत्रों का जाप करते है. तपस्या का अनुष्ठान पूर्ण होने पर मंदिर परिसर में संत समागम का आयोजन किया जाएगा. जिसमें बड़ी संख्या में संत समाज के लोग जुटेगें. तीन दिन तक आयोजित होने वाले अनुष्ठान में 35 अखाड़ों के साधु संत यहां पर पहुंचेगें. जिसकी तैयारियां भी शुरू कर ली गई है. बताया जा रहा है कि अपनी तपस्या को लेकर महाराज ने 11 जनवरी से मौन व्रत धारण कर रखा है. जो तपस्या पूर्ण होने के बाद ही तोड़ेगें.

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