Satish Poonia, Rajasthan Politics : राजस्थान के कद्दावर नेता सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी नियुक्त किया है, जिसके बाद से राजनीतिक पंडित ये समझने की कोशिश कर रहे हैं, कि आखिर पूनिया को ही हरियाणा क्यों भेजा गया है.
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Rajasthan News : भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी नियुक्त किया है. इससे पहले, उन्हें हरियाणा में लोकसभा चुनाव का प्रभारी भी बनाया गया था, लेकिन भाजपा वहां पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी और 10 में से केवल 5 सीटें ही जीत पाई.
सतीश पूनिया लगभग 4 वर्षों तक राजस्थान भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे. विधानसभा चुनाव से 8 महीने पहले, उन्हें हटाकर सीपी जोशी को उनकी जगह यह जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद ऐसी अटकलें भी लगाई गईं कि भाजपा की सरकार बनने पर पूनिया को कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. हालांकि, आमेर विधानसभा से वे विधायक का चुनाव हार गए.
सतीश पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बनाए जाने के बाद राजनीतिक हलकों में कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं. क्या उन्हें राजस्थान से दूर किया गया है या उनके चुनावी करियर पर विराम लग गया है, इस पर सवाल उठ रहे हैं.
सतीश पूनिया की राजनीतिक यात्रा का आरंभ उनके छात्र जीवन से हुआ. उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न पदों पर कार्य किया. इसके बाद उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा में प्रदेश स्तर पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं.
2004 से 2006 तक पूनिया भारतीय जनता पार्टी, राजस्थान में प्रदेश महासचिव के पद पर रहे और 2006 से 2007 तक प्रदेश मोर्चा प्रभारी के रूप में कार्य किया. 2004 से 2014 तक, उन्होंने चार बार भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महासचिव के रूप में सेवाएं दीं.
सतीश पूनिया को संगठन का 'आदमी' माना जाता है. उन्होंने 30 वर्षों तक भाजपा और उससे जुड़े संगठनों में काम किया. 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा और आमेर विधानसभा सीट से जीत हासिल की. एक साल बाद जब उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया, तो मुख्यधारा के नेताओं ने उन्हें ज्यादा महत्व नहीं दिया. अशोक गहलोत तो उनका नाम तक नहीं लेते थे, हालांकि पूनिया ने गहलोत सरकार के खिलाफ कई आंदोलन किए.
पूनिया को हरियाणा का प्रभारी बनाए जाने के पीछे कई वजहें हो सकती हैं, और इसके राजनीतिक मायने भी महत्वपूर्ण हैं. उनकी नियुक्ति से यह सवाल उठता है कि क्या उनका चुनावी राजनीति का करियर समाप्त हो गया है और पार्टी उनके 30 साल के संगठनात्मक अनुभव का लाभ उठाना चाहती है. भाजपा अपने नेताओं के साथ ऐसे प्रयोग करती रहती है ताकि यह जान सके कि कौन नेता किस क्षेत्र में मजबूत है.
इस संदर्भ में, पूनिया को एक बार फिर संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई है. उनके पक्ष में यह भी जाता है कि उन्होंने 2010 और 2015 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
अगर राजस्थान और हरियाणा के लोकसभा चुनावों को एक साथ देखें, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जाट बहुल क्षेत्रों में भाजपा की स्थिति कमजोर रही थी. राजस्थान में भाजपा का केवल एक ही जाट उम्मीदवार जीत सका था. हरियाणा में जाट मतदाता लगभग 23 प्रतिशत हैं, जो कि सबसे बड़ी संख्या है. इस स्थिति में, जाट समुदाय की नाराजगी को दूर करने के प्रयास में, सतीश पूनिया को हरियाणा भेजकर भाजपा जातीय समीकरण को सुधारने की कोशिश कर सकती है.