पाली: फैक्ट्रियों से निकलने वाले पानी से बांडी नदी बनी जहरीली, किसान परेशान
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पाली: फैक्ट्रियों से निकलने वाले पानी से बांडी नदी बनी जहरीली, किसान परेशान

Pali News: आम आदमी के साथ सबसे ज्यादा अगर कोई प्रदूषण को लेकर बर्बाद हुआ है तो वो है यहां का किसान. फैक्ट्रियों से निकलने वाला तेजाबी पानी सीधा बांडी नदी में जाने से पूरी नदी तेजाबी बन गई है.

पाली:  फैक्ट्रियों से निकलने वाले पानी से बांडी नदी बनी जहरीली, किसान परेशान

Pali News, पाली : राजस्थान के पाली शहर प्रदूषण को लेकर पिछले 50 साल से इसका दंश झेल रहा है. आम आदमी के साथ सबसे ज्यादा अगर कोई प्रदूषण को लेकर बर्बाद हुआ है तो वो है यहां का किसान. फैक्ट्रियों से निकलने वाला तेजाबी पानी सीधा बांडी नदी में जाने से पूरी नदी तेजाबी बन गई है. यहीं नहीं पाली से लेकर बालोतरा तक ये जहर जमीन में फैल चुका है, लेकिन किसी सरकार ने इन धन्ना सेठों के आगे किसानों की पीड़ा को नहीं सुना. 

हालात इस कदर खराब हुए कि नदी किनारे खेतों की हजारों बीघा जमीन बंजर हो गई तो कुएं का पानी जहरीला हो गया. एनजीटी ने करोड़ो का जुर्माना लगाया इसके बावजूद उद्यमी ओर सीईटीपी ट्रस्ट आदेशों को दर किनार करता गया है. वहीं, केंद्र व राज्य सरकार के 75 करोड़ अनुदान के साथ 100 करोड़ का जीरो लिक्विड डिस्चार्ज प्लांट तो बना दिया गया, लेकिन स्थिति जस के तस है. आज भी बांडी नदी प्रदूषित पानी जा रहा है. 

100 करोड़ का प्लांट बनने के बाद बड़े-बड़े दावे किए गए कि एक बूंद पानी बाहर नहीं जाएगा और ट्रीट होने के बाद वो हिबपानी वापस रीयूज होगा. इसके लिए बाकायदा पाइप लाइन से पानी प्लांट तक पहुंचाया जाता है, लेकिन कानून की धज्जियां उड़ाते हुए टेंकरो में भी भरकर प्रदूषित पानी प्लांट तक ले जाते हैं. कई बार ये चालक टैंकर को रात 3 खेतों में ही खाली कर देते हैं. आज भी चोरी छिपे खेल चल रहा है, जब प्लांट बन गया तो कौनसा प्रदूषित पानी नदी में जा रहा है. आज भी पूरी नदी पानी से भरी पड़ी तो पानी भी बह रहा है. 

सोचने वाली बात तो ये है कि प्लॉट सरकारी पैसों से बना हुआ बावजूद कोई अंदर नहीं जा सकता. बिना ट्रस्ट के पदाधिकारियों को अनुमति से3 प्लांट में जाना तो दूर एक पत्ता तक नहीं चलता. ये कई सवाल खड़े करता है, जब सब कुछ सार्वजनिक पारदर्शी बता रहें तो क्यों रोका जा रहा है. 

प्लॉट के चारो ओर स्लरी का ढेर लगा है, गंध इतनी तेज की कोई खड़ा नहीं रह सकत है. इसके बावजूद लोग वहां रहते हैं. बरसात के दिनों में तो उद्यमियी को बल्ले-बल्ले हो जाती है. फैक्ट्रियों का रंगीन तेजाबी पानी रोड़ पर बरसाती पानी के साथ छोड़ देते. कई बार शिकायतें हुई, लेकिन इन धन्ना सेठों के आगे अधिकारी भी नतमस्तक हो जाते. 

आज भी रोड़ पर रंगीन पानी जमा मिल जाएगा, आसपास हौदियों के ओवर फ्लो होंने से भीबपानी स्डक पर गड्ढों में जमा है. उद्यमियों ने चोरी छिपाने के लिए नदी में हाथी डूब गड्ढे बना दिए और सीधा पाइप से पानी छोड़ रहे. किसान आज भी दुखी है न तो मुआवजा मिला न प्रदूषित पानी से छुटकारा. मिलता तो बस आश्वाशन जो पिछले पचास साल से मिल रहा, जो भी सरकार आई सभी ने वोट बैंक समझकर किसानों का उपयोग किया. 

पूर्व विधायक भीमराज भाटी ने तो प्रशासन सहित वर्तमान विधायक ज्ञानचंद पारख परभी सवाल खड़े किए. भ्रष्टाचार का खुले आरोप तक लगा डाले कि विधयाक पारख ने सीईटीपी को सोने के अंडे देने वाली मुर्गी समझ रखा है. 

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