महाशिवरात्रि पर डीडवाना में दिखी गंगा जमुनी तहजीब, नाथ समाज के महंत का मुस्लिम समाज ने किया स्वागत
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महाशिवरात्रि पर डीडवाना में दिखी गंगा जमुनी तहजीब, नाथ समाज के महंत का मुस्लिम समाज ने किया स्वागत

Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि पर डीडवाना में सौहार्द्ध की एक अनूठी परंपरा का कई सालों से चली आ रही है. महाशिवरात्रि पर हर साल नाथ सम्प्रदाय के महंत  मुस्लिम इलाकों में जाते हैं , जहां मुस्लिम समाज  के जरिए नाथ महंत का स्वागत किया जाता है. साथ ही महंत मुस्लिम समाज के लोगों को एक विशेष प्रकार की रोटी देते है. 

 

महाशिवरात्रि पर डीडवाना में दिखी गंगा जमुनी तहजीब, नाथ समाज के महंत का मुस्लिम समाज ने किया स्वागत

Mahashivratri 2023:महाशिवरात्रि के मौके पर जहां शिवालयों में हर-हर महादेव की गूंज रहती है, वही डीडवाना में यह मौका सांप्रदायिक सौहार्द्ध का पैगाम देता है. दरअसल, डीडवाना में सदियों पुरानी हिंदू - मुस्लिम सौहार्द्ध की एक परंपरा है, जिसके तहत महाशिवरात्रि के मौके पर जोगामंडी धाम के महंत मुस्लिम इलाकों में जाते है, जहां मुस्लिम समुदाय के जरिए महंत का स्वागत सत्कार किया जाता है. इस मौके पर महंत के जरिए प्रसाद के रूप में विशेष रोटी मुस्लिम समुदाय को दी जाती है, वहीं मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस अवसर महंत को श्रीफल भेंटकर नाथजी का स्वागत करते हैं.

इसी परंपरा के तहत महाशिवरात्रि के अवसर पर महंत लक्ष्मण नाथ महाराज मोहल्ला सैयदान पहुंचे, जहां सैयद समाज के लोगों ने उनका अभिनंदन किया. इसके बाद वे काजियों के मोहल्ले पहुंचे, जहां भी मुस्लिम काज़ी समाज के लोगों ने भी उनका स्वागत किया. इस मौके पर महंत लक्ष्मण नाथ ने भी विशेष रूप से तैयार की गई रोटी मुस्लिम समुदाय के लोगों को सौंपी.
रोटी देने की है परंपरा
रोटी देने के पीछे मान्यता है कि यह रोटी अन्न को समर्पित होती है, जिसे अनाज के साथ रखने पर घर में बरकत और खुशहाली आती है तथा घर में कभी अन्न की कमी नहीं रहती.

नाथ सम्प्रदाय के इस मठ की एक परंपरा यह भी है कि जोगा मंडी धाम में जब भी नए महंत की नियुक्ति होती है, उसमें मुस्लिम समुदाय के काजी समाज की उपस्थिति आवश्यक रहती है. मुस्लिम समुदाय के जरिए नए महंत को पगड़ी पहनाकर और माथुर समाज के जरिए शॉल ओढ़ाकर नए महंत की नियुक्ति की जाती है.

आपको बता दें कि जोगा मंडी नाम से नाथ संप्रदाय का यह पवित्र मठ 2400 वर्ष पुराना है. यह मठ बाबा गोरखनाथ की चमत्कारी तपोभूमि गद्दी रही है. इस गद्दी के प्रथम 13 मठाधीश वाक् सिद्ध नाथ रहे हैं. यहां पूजा विधान पूर्ण रूप से तांत्रिक पद्धति का रहा है. इस मठ का सिद्धांत सर्वधर्म समभाव रहा है. इसलिए सदियों पहले हिंदू-मुस्लिम समुदाय के पूर्वजों ने सद्भावना की जो नींव डाली थी, वो आज भी बदस्तूर जारी है. दोनों समुदाय के लोग सौहार्द्ध की इस परंपरा का पौराणिक तरीके से अनुसरण कर रहे हैं, साथ ही देश व दुनिया को भी सांप्रदायिक सद्भाव का संदेश दे रहे हैं.

दुनिया भर में भारत की पहचान गंगा जमुनी तहजीब की रही है. सदियों से लोग एक साथ रहते आए हैं. मगर आज के दौर में जब देश में नफरत फैलाई जा रही है, ऐसे दौर में सद्भाव की यह मिसाल अनूठी है.

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