Dolchi mar holi: हर जगह की अपनी अपनी परम्परायें रीती रिवाज और संस्कृति होती है. देशभर में होली की भी अलग अलग परम्परायें हैं कहीं की लठ मार होली प्रसिद्ध है तो ऐसी ही ख़ास और अनूठी होली की परंपरा है. डीडवाना की डोलची मार होली. डोलची मार होली देशभर में डीडवाना और बीकानेर में ही खेली जाती है.
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Nagaur News: डीडवाना शहर में निकलने वाली ऐतिहासिक डोल्ची मार होली ( राज कि गैर ) आज भी जारी है आज से कुछ सालो पहले इस होली में काफी अनूठापन था जो अब नजर नहीं आता है. मगर आज भी हाकम को डोलची मार कर विधिवत रूप से डीडवाना उपखंड कार्यालय से शुरू होकर शहर भर मे खेली जाने वाली इस होली कि अनूठी परंपरा चल रही है और यहां के नागरिक जो पहले कभी हाकम के साथ होली खेलते थे अब आजाद भारत के अधिकारियों के साथ होली खेलते हैं.
धुलंडी के दिन रंगों से सराबोर होने के बाद सरकार के हाकम (उपखंड अधिकारी ) इस गैर की शुरुवात करते हैं. प्रथम डोलची हाकम के लगाने के बाद ये गैर कचहरी से शुरू होकर नगर भ्रमण करते हुए सभी डोलची मार गेरीयों को वहां से सभी टोलियां एक साथ निकलती है पूरे नगर की परिक्रमा के लिए जिसे गैर कहा जाता है.
इस गैर का प्रचलन राजा महाराजाओं के समय से है. तत्कालीन हाकम को डोलची मार कर इस गेर की शुरुआत की जाती है. लोहे के डिब्बे को विशेष तरीके से काटकर डोलची का आकार दिया जाता है उस में पानी और रंग भरकर गैर खेलने वाले एक दूसरे पर मारते हैं. जिसकी मार काफी तेज होती है. इस डोलची गैर को खेलने के लिए विदेशों तक में बसे डीडवाना के प्रवासी लोग यहाँ खींचे चले आते हैं. डोलची की मार असहनीय होते हुए भी लोग इसका आनंद लेते हैं जिसके पिछे लोगों की मान्यता है.
डोलची की मार खाने के बाद साल भर तक मार खाने वाले को कमर का दर्द नहीं होता. मगर इसका असली मकसद सिर्फ यह है कि आम आदमी और अधिकारियों के बीच कि दुरियां मिटाना है इससे अधिकारियों भी आम आदमी के दुःख दर्द और खुशियों का अहसाश कर सके. कुछ भी कहो मगर यह होली आम आदमी के लिए खास होली है.
डोलची मार होली की इस अनूठी परंपरा को लेकर होली खेलने वाले लोगों में इस दिन का इन्तजार रहता है और इसको लेकर काफी उत्साह भी रहता है. एक और यह परम्परा जंहा अधिकारी और आम आदमी की बराबरी से सम्बन्ध करवाती है तो दूसरी और सामाजिक भेदभाव भी मिटाकर एक दूसरे को जोड़ती है.
भारत विविधताओं का देश है यहां की परम्परायें और लोक संस्कृति हटकर है. बीते कुछ वर्षों में इनमें कुछ कमी आ रही है लोगों का उत्साह कुछ कम होता जा रहा है. जरूरत इस बात की है कि इन परम्पराओं के संरक्षण का प्रयास हो ताकि भारत की विविधताओं वाली रंग बिरंगी छटा युही बनी रहे.