ब्रह्माणी माता मंदिर जहां अमावस्या को होती है घटस्थापना, 8 दिनों तक औरतें नहीं कर सकती मंदिर की परिक्रमा
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ब्रह्माणी माता मंदिर जहां अमावस्या को होती है घटस्थापना, 8 दिनों तक औरतें नहीं कर सकती मंदिर की परिक्रमा

नगौर जिले के मेड़ता रोड़ का ब्रह्माणी  माता मंदिर देश का अकेला ऐसा मंदिर है जहां देश और दुनिया से एक दिन पहले ही घट स्थापना हो जाती है और उसके ठीक आठवें दिन इसकी पूर्णाहुति भी हो जाती है.

 ब्रह्माणी माता मंदिर जहां अमावस्या को होती है घटस्थापना, 8 दिनों तक औरतें नहीं कर सकती मंदिर की परिक्रमा

Brahmani Mata Mandir: सनातन धर्म में सालभर में दो बार नवरात्र आते हैं. चैत्र और शारदीय. दोनों ही नवरत्रों पर देशभर में मां दुर्गा को 9 रूपों की पूजा होती है. वहीं  शारदीय नवरात्रों का अलग ही महत्व है. इन नवरात्रों में देवी मंदिरों के अलावा भी दुर्गा पूजा पंडालों की स्थापना  की जाती है. प्रतिपदा के दिन घटस्थापना होती है और भक्त 9 दिन तक लोक शक्ति की आराधना करते हैं  लेकिन नगौर जिले के मेड़ता रोड़ का ब्रह्माणी माता मंदिर देश का अकेला ऐसा मंदिर है जहां देश और दुनिया से एक दिन पहले ही घट स्थापना हो जाती है और उसके ठीक आठवें दिन इसकी पूर्णाहुति भी हो जाती है.

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शतभिषा नक्षत्र में होती है घटस्थापना

जानकार बताते हैं कि पहली बार जब कभी यहां घट स्थापना हुई, उस समय अमावस्या के दिन शतभिषा नक्षत्र होने की वजह से जो परंपरा बनाई गई वह आज भी  कायम है.  हालांकि किवंदतियां यह भी है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने यहां एकम के दिन हमला किया था जिसमें 80 पंडित लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गए थे. उसके बाद से ही प्रथमा को शोक दिवस के कारण घटस्थापना अमावस्या को की जाती है. स्थानीय लोगों के अनुसार यहां  पूजा  किसान करते थे और अमावस्या को किसान खेत में काम नहीं करते तो उसी को ध्यान में रखते हुए अमावस्या को घट स्थापना की परंपरा यहां शुरू  हो गई. 

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 महिलाओं को मंदिर की परिक्रमा होती है वर्जित
ब्रह्माणी माता मंदिर में कई और भी ऐसी परम्पराएं हैं जो बाकी स्थानों से बिल्कुल अलग है. अमावस्या को होने वाली आरती के समय यहां जो लोग उपस्थित रहते हैं, उनमें से कुछ लोगों को माता का भाव आता है और वे लोग गृभगृह में प्रवेश करते हैं और उसके बाद सप्तमी तक बिना कुछ खाये पिये केवल चरणामृत के सहारे निराहार रहकर गर्भगृह में ही साधना करते हैं. उसके बाद पंचमी की आरती के दिन गर्भगृह में बैठे श्रद्धालुओं में से किसी एक में माता का भाव आता है और पुजारी परिवार में से किसी एक व्यक्ति का नाम पुकारा जाता है. सप्तमी के दिन उसी व्यक्ति के परिवार का भोग माताजी को लगता है और साधना में बैठे बाकी के लोग बाद में उसी पुजारी के घर का भोजन सात दिन बाद ग्रहण करते हैं. दुर्गा पूजा के इन 8 दिनों में महिलाओं को मंदिर की परिक्रमा वर्जित होती है. 

 बता दें कि इस मंदिर की स्थापना काल के बारे में कहीं कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन शिल्पकला और डेटिंग के आधार पर मंदिर 1500 से 2000 साल पुराना माना गया  है. शिल्पकला के लिहाज से यहां एक तोरणद्वार बना हुआ है जो शिल्पकारी का बेजोड़ नमूना है. ऐसी भी मान्यता है कि इस तोरणद्वार के ऊपर 9 चरण में 7 द्वार थे जिनके ऊपर पुराने समय में नवरात्र में बड़ी जोत जलाई जाती थी जिसे देखकर ही तात्कालिक जोधपुर महाराजा जोत के दर्शन करके व्रत का पालन करते थे.

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मेड़ता रोड़ का यह ब्रह्माणी माता मंदिर अपनी परम्पराओं और चमत्कारों के कारण देशभर में अपनी अलग पहचान रखता है. यही वजह है कि यहां नवरात्र में हजारों श्रद्धालु आते हैं दो साल कोविड की वजह से यहां भी श्रद्धांलुओं पर कई पाबन्दीयां लगी जिसकी वजह से श्रद्धालु भी संयमित संख्या में ही पहुंच रहे थे लेकिन अब पाबन्दीयां हटने के बाद यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है. 

Reporter: Hanuman Tanwar

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