राजस्थान में 25 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही प्रत्याशी घोषित फिलहाल नहीं किए हैं. ये सीटें राजस्थान की मोस्ट पॉपुलर सीटें मानी जा रही हैं.
बीजेपी सूत्रों की माने तो दौसा की सीट पर पेंच फंसा हुआ है क्योंकि भजन लाल सरकार के कैबिनेट मंत्री किरोड़ी लाल मीणा अपने भाई जगमोहन मीणा को लोकसभा प्रत्याशी बनाना चाहते हैं. वहीं दूसरी ओर वर्तमान सांसद जसकौर मीणा अपनी जगह उनकी बेटी अर्चना मीणा को टिकट दिलाने का प्रयास कर रही हैं. इसी वजह से दौसा सीट पर अभी तक प्रत्याशी का नाम बीजेपी ने घोषित नहीं किया है.
नागौर सीट की बात करें तो इस बार बीजेपी को नागौर सीट पर कड़ी चुनौती मिल सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार बीजेपी ने गठबंधन का निर्णय नहीं लेते हुए ज्योति मिर्धा को उम्मीदवार बनाया है.नागौर जाट बहुल सीट है. यहां से आरएलपी (Rashtriya Loktantrik Party )के मौजूदा सांसद हनुमान बेनीवाल सबसे बड़े नेता हैं. ऐसे में बीजेपी को इस सीट पर जीतने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है.
यूं तो नागौर में जाट समुदाय की बड़ी आबादी है, लेकिन आजादी के बाद से ही नागौर सीट पर मिर्धा परिवार की पकड़ रही है. जाट समुदाय के वोटर्स में मिर्धा परिवार का बहुत सम्मान है, माना जा रहा है कि ज्योति मिर्धा को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने कांग्रेस और रालोपा पार्टी के जाट वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई है.ज्योति मिर्धा मारवाड़ के ताकतवर सियासी परिवार से संबंध रखती है. वह कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्व नाथूराम मिर्धा की पोती है. किसी समय नाथूराम मिर्धा प्रदेश के जाट समाज व किसानों के बड़े नेता थे, उनकी जाट वोटर्स और किसान वोटर्स में मजबूत पकड़ रही है.
कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए गुरुवार को प्रत्याशियों की एक और लिस्ट जारी की. ये तय हो चुका है कि सीकर सीट पर कांग्रेस माकपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी. सीकर में माकपा के अमराराम उम्मीदवार घोषित किए गए हैं. वह चार बार विधायक रह चुके हैं.कांग्रेस ने माकपा के साथ इस सीट पर गठबंधन किया है. पहले कयास लगाए जा रहे थे कि इस सीट से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा चुनाव लड़ सकते हैं.
सीकर से अमराराम 1996 से 2019 तक लगातार 6 चुनाव लड़ चुके हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में अमराराम ने दांतारामगढ़ से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उनकी हार हुई थे. लंबे समय तक विधायक अमराराम धोद से रहे हैं. वहीं बीजेपी की बात करें तो बीजेपी ने स्वामी सुमेधानंद सरस्वती को टिकट दिया है.सीकर सीट से बीजेपी भी पूर्व में लोकसभा चुनाव के दौरान गठबंधन कर चुकी है. 35 साल पहले बीजेपी ये सीट को जनता दल के लिए छोड़ी थी. कांग्रेस के खिलाफ 1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा, जनता दल, सीपीएम सहित अन्य पार्टियों ने गठबंधन किया था.
वहीं बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट की बात करें तो इस सीट पर कांग्रेस के साथ-साथ भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीएपी) का भी प्रभाव है. हालांकि इस सीट से प्रभावशाली नेता महेंद्र जीत सिंह मालवीय हाल ही में भाजपा में शामिल हुए हैं. उन्हें इस सीट से उम्मीदवार बनाया गया है ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वह चुनाव जीत सकते हैं.बांसवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित नहीं किया है.
इसके अलावा करौली-धौलपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में इनमें से बीजेपी ने 2, कांग्रेस ने 5 और बीएसपी ने 1 सीट पर जीती हासिल की थी. इसी के चलते इस सीट पर बीजेपी को कड़ी चुनौती मिल सकती है. जातिगत समीकरणों की बात करें तो करौली-धौलपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटों पर लगभग 3 लाख जाटव हैं. जो कांग्रेस विधायक अनीता जाटव का समर्थन कर रहे हैं. इसी तरह यहां माली जाति का अच्छा बहुमत है जो धौलपुर विधायक शोभारानी कुशवाह के समर्थन में है. हालांकि इस सीट से भी फिलहाल कांग्रेस और बीजेपी ने प्रत्याशी घोषित नहीं किया है.
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